सुषमा स्वराज ने अपने योगदान से भारत के लोगों पर छोड़ी अमिट छाप

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मृत्युंजय सिंह गौतम

आज पुण्यतिथि पर विशेष

सुषमा स्वराज का राजनीतिक जीवन भारतीय राजनीति में अमिट छाप छोडऩे वाला रहा। सुषमा स्वराज का 41 वर्षों का राजनीतिक जीवन उपलब्धियों से भरा रहा। भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और प्रखर वक्ता के रूप में उनकी पहचान बनी। उनका निधन 6 अगस्त को हुआ था और उन्होंने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली थी।

सुषमा स्वराज की सोच और कार्यशैली को समझना हो तो उनके ट्विटर अकाउंट को देखना एक अच्छा तरीका हो सकता है। यूक्रेन युद्ध के दौरान जब भारतीय छात्र फंसे थे, तब उनका एक ट्वीट वायरल हुआ था जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि कोई भारतीय मंगल ग्रह पर भी फंसा होगा, तो विदेश मंत्रालय उसकी सकुशल वापसी सुनिश्चित करेगा। ऑपरेशन राहत और ऑपरेशन संकटमोचक जैसे सफल अभियानों ने उनकी काबिलियत को दर्शाया।
उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में मंत्रालय की सूरत को पूरी तरह से बदल दिया। उनके कार्यकाल के दौरान विदेश मंत्रालय आम भारतीय के लिए एक पहुँचनीय विभाग बन गया। सुषमा स्वराज जितनी सहज और आत्मीय थीं, उतनी ही काम को लेकर समर्पित और सख्त भी थीं। चाहे वो पाकिस्तान में फंसी गीता की मदद हो या आतंकवादियों के बीच फंसे भारतीयों की वतन वापसी की चुनौती, उन्होंने हर स्थिति में सफलतापूर्वक हस्तक्षेप किया। उनकी इस लगन और मानवता को आज भी सम्मान और गर्व के साथ याद किया जाता है।

राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
सुषमा स्वराज ने अपनी राजनीति की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य के रूप में की थी और जेपी आंदोलन के साथ आपातकाल के दौरान उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी गहरी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समझ ने उन्हें भारतीय और वैश्विक राजनीति का महत्वपूर्ण चेहरा बना दिया।

सबसे युवा कैबिनेट मंत्री
 सुषमा स्वराज हरियाणा की सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनीं। देवीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार में उन्होंने मात्र 25 वर्ष की आयु में यह पद संभाला। इसके बाद, वह हरियाणा विधानसभा की दो बार विधायक रहीं और चार वर्षों तक हरियाणा जनता पार्टी की राज्य इकाई की अध्यक्ष भी रही थीं।

भाजपा में प्रवेश
1980 में सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुईं और पार्टी के सचिव के रूप में कार्य किया। दो वर्षों तक अखिल भारतीय सचिव के रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।

संसदीय करियर
 1990 में सुषमा स्वराज को राज्यसभा का सदस्य चुना गया। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली 13 दिन की भाजपा सरकार में उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। 1998 में वाजपेयी सरकार के सत्ता में आने पर वह एक बार फिर सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में भी नियुक्त की गईं।

लोकसभा चुनाव
1999 में कर्नाटक के बेल्लारी से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा, हालांकि हार गईं लेकिन उनकी प्रतिष्ठा और कद में वृद्धि हुई। वाजपेयी सरकार के तीसरे कार्यकाल में 2003 से मई 2004 तक उन्होंने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री और संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में कार्य किया।

सोनिया गांधी के खिलाफ विरोध
2004 में यूपीए सरकार के गठन के समय, सुषमा स्वराज ने सोनिया गांधी का विरोध किया और कहा कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो वह सिर मुंडवा लेंगी। लेकिन, अंतत: डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।

विपक्ष की नेता
2009 में सुषमा स्वराज ने अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी की जगह विपक्ष की पहली महिला नेता बनीं और 2014 तक इस पद पर रहीं।

विदेश मंत्री के रूप में कार्यकाल
2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद सुषमा स्वराज को विदेश मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। वह इंदिरा गांधी के बाद भारत की दूसरी महिला विदेश मंत्री बनीं।

ऑपरेशन राहत
2015 में यमन में सऊदी गठबंधन सेना और हौथी विद्रोहियों के बीच युद्ध के दौरान ऑपरेशन राहत चलाया और 5,000 भारतीयों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की।

ऑपरेशन संकटमोचक
 2016 में दक्षिण सूडान के युद्ध में फंसे भारतीयों के लिए चलाया गया ऑपरेशन संकटमोचक, जिसमें करीब 500 लोगों को भारत लाया गया।

सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री के रूप में भारत की कूटनीति को बेहतर तरीके से संचालित किया और मानवीय व्यवहार की मिसाल कायम की। पांच वर्षों के अपने कार्यकाल के दौरान, वह ट्विटर के जरिए हमेशा आम भारतीयों के संपर्क में रहीं और भारत को कूटनीतिक स्तर पर मजबूती दी।

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बावजूद, सुषमा स्वराज ने 67 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनके योगदान और यादें आज भी लोगों के दिलों में ताजगी बनी हुई हैं।
पुण्य तिथि के मौके पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि व कोटि कोटि प्रणाम। 

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