केके सिंह: नेत्र ज्योति दान को मानते थे सर्वोपरि, विरासत को आगे बढ़ा रहा परिवार, 2025 में भी उनकी  स्मृति में  हो रहा नेत्र ज्योति महायज्ञ 

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चंद्रदेव  सिंह राकेश 

जमशेदपुर : समाज और  धर्म  को आगे बढ़ाने के लिए कुछ करने व समाज में किसी भी जरूरतमंद को मदद करने की बात आएगी तो जमशेदपुर-कोल्हान में ब्रह्मर्षि विकास मंच के संस्थापक कौशल किशोर सिंह जी (केके सिंह) , जिन्हें आदर-प्यार से लोग केके बाबू कहा करते थे, अवश्य याद आएंगे। वे आजीवन धर्म को आगे बढ़ाने व समाज की सेवा के लिए जो कुछ बन पड़ा उसका निर्वहन करते रहे.

रक्तदान व नेत्र ज्योति दान को मानते थे सर्वोपरि 

केके बाबू  रक्तदान व नेत्र ज्योति दान को सर्वोपरि मानते थे. खुद तो करते ही थे.  दूसरे को भी प्रेरित करने थे. अनुकरणीय बात यह की उनकी धर्मपत्नी उर्मिला सिंह, पुत्र विकास सिंह, पुत्रवधू रश्मि सिंह समेत पूरा परिवार केके बाबू की इस विरासत को आगे बढ़ाने में लगा है.

हर वर्ष उनकी पुण्य तिथि 4 जनवरी को नेत्र ज्योति महायज्ञ का आयोजन उसकी स्मृति में किया जाता है. इस वर्ष 2025 में उनकी 9 वीं पुण्य तिथि पर य़ह आयोजन हो रहा है.

अब  बात केके बाबू के विराट व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं की. 

समाज के लिए ही बने थे केके बाबू

कहा भी गया है कि इस धरती पर वैसे ही इंसान के कर्मों को लोग याद करते हैं और संजोकर रखते हैं जो समाज के लिए खुद को न्योछावर कर देता है. केके बाबू एक ऐसे इंसान थे जो वास्तव में समाज के लिए ही बने थे. समाजसेवा में बढ़-चढक़र हिस्सा लेना उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया था.

सही मायने में वे सच्चे कर्मवीर, पक्के धर्मवीर और बड़े समाजवीर थे. वे दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढते थे और दूसरों के दर्द में अपने दुख की तलाश कर लेते थे. यही वजह थी कि व्यक्ति या संस्था को मदद करने में वे तनिक भी संकोच नहीं करते थे. जरा सी भी देर नहीं लगाते थे. जो बन पाया तत्काल मदद कर देते थे.

लेकिन उनके व्यक्तित्व की एक विशेषता यह भी थी कि किसी अपेक्षा या उम्मीद की कीमत पर सेवा या मदद नहीं करते थे. नेकी कर दरिया में डाल के नीति वाक्य पर चलते हुए वे अपने सामाजिक कार्यों को अंजाम देते थे. अपनी इसी विशिष्टता के चलते वे लोगों के दिलों में राज करते थे. वे समग्र समाज के गौरव थे.

छपरा की माटी से निकला संस्कारों का वाहक

बिहार के तत्कालीन छपरा जिले (अभी गोपालगंज) की विलक्षण माटी में 28 जून 1947 को पैदा हुए थे कौशल किशोर सिंह, जिन्हें जमशेदपुर-झारखंड ने प्यार से केके बाबू के नाम से जाना-पहचाना. लौहनगरी के बिल्डर जगत को कारोबार की नई परिभाषा देने वाले केके सिंह समाजसेवा के क्षेत्र में भी उतनी ही सशक्त और व्यापक पहचान रखते थे. केके बिल्डर्स के प्रमोटर के रूप में उनके द्वारा मानगो डिमना रोड के राजीव पथ में बनाई गई अत्याधुनिक आवासीय कॉलोनी मून सिटी आज सैकड़ों लोगों के घर के सपनों को साकार कर अपनी विशिष्टï पहचान की खुशबू पूरे झारखंड में बिखेर रही है.

झारखंड में बजाया प्रतिभा का डंका

जमशेदपुर, कोल्हान और झारखंड के ढांचागत विकास में भी छपरा के लाल केके सिंह ने अपनी मेहनत और प्रतिभा का डंका बजाया. उनके द्वारा बनाए गये अनेक पुल और रोड झारखंड को विकास की राह पर दौड़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। सुदूर ग्रामीण इलाकों को पुल-पुलिया और सडक़ से जोडऩे में केके सिंह का योगदान मिल का पत्थर बन चुका है.

निष्काम कर्मयोगी की तरह किया काम

सामाजिक जीवन में भी उनका योगदान असंख्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. योग गुरु बाबा रामदेव के पतंजलि योग पीठ की शाखा को जमशेदपुर में जमाने-बढ़ाने में इन्होंने निष्काम कर्मयोगी की भांति काम किया था. भारत और भारतीयता के लिए काम करने वाली अनेक संस्थाओं को तन-मन-धन से सहयोग देकर उनके सेवा दायरे को विस्तार देने में आजीवन सक्रिय रहे थे.केके सिंह. ब्रह्मïर्षि विकास मंच की गतिविधियों से सर्व समाज को जोडऩे में भी एक सेतु के रूप में हमेशा सक्रिय रहे थे.

जिससे जुड़े उसी का होकर रह गये

उनके व्यक्तित्व की एक विशेषता यह भी थी कि वे जिस संस्था और संगठन से जुड़ते थे बस उसी के होकर रह जाते थे। 4 जनवरी 2016 को दुनिया को छोडक़र वे उस अनंत यात्रा पर निकल गए जहां से लौटकर कोई नहीं आता. पितृ पक्ष के अवसर पर अपने अजीज, समाज के सच्चे सेवक और राष्ट्रीय मूल्यों व धरोहर के पैरोकार कौशल किशोर सिंह जी यानी केके सिंह जी को कोटि-कोटि प्रणाम और विनम्र श्रद्घांजलि. परम संतोष की बात यह कि उनकी धर्मपत्नी उर्मिला सिंह के मार्गदर्शन में सुपुत्र विकास सिंह व पुत्रवधू रश्मि सिंह केके बाबू की र्धािर्मक व सामाजिक विरासत को आगे बढ़ाने में तन-मन-धन से सक्रिय है.

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