दिव्येन्दु त्रिपाठी
भगवान कार्तिकेय की पत्नी को षष्ठीदेवी कहा गया हैं । इन्हीं का नाम देवसेना भी है । इस आशय की विस्तृत जानकारी देवी भागवत पुराण (नवम स्कंद)और ब्रम्ह वैवर्त पुराण (प्रकृति खंड/ अध्याय-43) में संन्निहित है। वहाँ इनकी उपासना विधि मंत्रादि का भी वर्णन है। इन्हीं देवी को छठी मइया कहा गया है ।बिहार, झारखंड और आसपास के राज्यों में मनाया जानेवाला विशेष पर्व छठ इन्हीं को समर्पित है।
षष्ठी तिथि बहुत महत्वपूर्ण है। ब्रह आदि पुराणों में प्रत्येक तिथि के अधिष्ठातृ देवता और उनके उपासना विधि का जिक्र है जैसे प्रतिपदा-अग्नि,चतुर्थी-गणपति,तृतीया-गौरी,पंचमी-नाग आदि।उसी अनुसार षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय की तिथि कहा जाता है ।दक्षिण भारत में इनसे संबंधित अनेक पर्व प्रचलित हैं जैसे स्कंद षष्ठी । कार्तिकेय को दक्षिण में मुरुगन ,सुब्रमण्यम आदि भी कहा जाता है ।चूंकि देवी षष्ठी उनकी शक्ति हैं इसलिए इन्हें भी यही तिथि प्रदत्त है। प्रकृति के छठे अंश से इनका प्रादुर्भाव माना जाता है।
बच्चों के जन्म होने के पश्चात छठियार मनाने की परंपरा पूरे भारत में प्रचलित हैं।इस दिन छठी माता की ही पूजा होती ।यह एक महत्वपूर्ण संस्कार है जो प्रायः शिशु के जन्म के छठे दिन किया जाता है अथवा छठे दिन के बाद कहीं कहीं आठवैं,बारहवें या सोलहवे दिन किया जाता है । छठी माता को शिशुओं का रक्षक माना जाता है ।
सूर्य षष्ठी से पूरे एक महीने बाद अगहन शुक्ल पक्ष षष्ठी को तमिलनाडु और आसपास स्कंद षष्ठी मनाया जाता है जिसमें स्कंद (कार्तिकेय ) के साथ उनकी पत्नी या शक्ति माता षष्ठी की भी पूजा होती है ।इस अवसर कई स्थानों से शोभायात्राएँ भी निकाली जाती है।
कार्तिकेय के साथ षष्ठी देवी की कुछ प्राचीन मूर्तियाँ भी मिलीं हैं जिनमें एक कुशाणकाल की है जो मथुरा के संग्रहालय में सुरक्षित है । पूरी जगन्नाथ मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के पीछे भी देवी षष्ठी का एक मंदिर है ।षष्ठी देवी के मंदिर पूरे भारत तथा श्रीलंका तक मिल जाते हैं दक्षिण भारत में इन्हें प्रायः भगवान कार्तिक के साथ ही बिठलाया दिखाया जाता है। श्रीलंका के तमिलभाषी समुदाय में देवी षष्ठी और कार्तिकेय की विशेष महत्ता है।एक मंदिर बांकुडा प बंगाल में भी हे जिसे मैंने कुछ साल पहले एक पोस्ट में डाला था ।
भगवान सूर्य की तिथि षष्ठी नहीं बल्कि सप्तमी मानी जाती है। सूर्य के अधिकांश प्रमुख पर्व सप्तमी को पड़ते हैं यथा -मार्तंड सप्तमी ,लोलार्क सप्तमी आदि । महापर्व छठ वस्तुतः देवी षष्ठी और सूर्य दोनों के ही आराधना के निमित्त है लेकिन यह प्रमुखतः षष्ठी से ही संबंधित है सूर्याघ्य से यह परिपूर्ण हैता है ठीक वैसे ही जैसे गणेश चतुर्थी में चंद्रमा को अर्घ्य देने से ।फिर भी पर्व परंपरानुसार सूर्य से जुडा हुआ है।(भविष्यपुराण)