शिवनंदन सिंह
रुक-रुक कर है कदम बढ़ाना
पर जीवन में चलते जाना
राह नहीं आसान मगर पर
कैसे भी है मंजिल पाना
हर जत्थे के साथ में रहना
सरल नहीं है इसे निभाना
सब हैं ईश, ईश हीं सब हैं
जीवन का हो यह पैमाना
चुभन कहीं हो गर रिश्तों से
दिल के अन्दर है दफनाना
रिश्तों से रिश्तों का उलझन
बारीकी से ही सुलझाना
धड़कन तनहा प्यार में कैसा
उधर भी थोड़ा आग लगाना
वक्त तराशे जब जीवन को
उनसे भी एक नजर मिलाना।
(कवि जमशेदपुर, झारखंड में रहते हैं)