77वां जन्मदिन : झारखंड की रत्नगर्भा धरती पर सृजन के साधक गोविंद अग्रवाल दोदराजका

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चंद्रदेव सिंह राकेश
जमशेदपुर : झारखंड में रत्नगर्भा धरती की पहचान रखने वाले कोल्हान की उद्यमियों, कारोबारियों और राजनीतिज्ञयो की जन्मभूमि-कर्मभूमि के रूप में वैश्विक पहचान है. यहां टाटा घराने की स्टील और वाहन समेत अनेक कंपनियां हैं. औद्योगिक शहर जमशेदपुर तो टाटा का ही बसाया हुआ है. अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा और रघुवर दास के रूप में इस धरती ने झारखंड को तीन मुख्यमंत्री भी दिए हैं. लेकिन यह जानकर आपको सुखद अनुभूति होगी कि कोल्हान की इस माटी पर सृजन के रचयिता भी हुए हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर इस माटी का नाम विख्यात किया है. सृजन के एक ऐसे ही साधक हैं गोविंद दोदराजका अग्रवाल जिनका आज 15 अगस्त को 77वां जन्मदिन है.
गोविंद दोदराजका अग्रवाल को कोल्हान में कवि सम्मेलन का बीजारोपण करने वाले साहित्य सेवी के रूप में जाना जाता है. रेलनगरी चक्रधरपुर से 1961 से कवि सम्मेलन की शुरूआत करने वाले गोविंद बाबू अब जमशेदपुर को केंद्र बनाकर अपनी इस सेवा को आगे बढ़ा रहे हैं. पिछले 50 वर्षों के दौरान राष्ट्रीय स्तर के जितने भी कवि हुए उनका गोविंद बाबू से व्यक्तिगत जुड़ाव रहा. उनमें से अधिकांश तो वे जमशेदपुर या चक्रधरपुर के कवि सम्मेलनों में बुला चुके हैं. जो कवि सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं आ सके वे गोविंद बाबू के व्यक्तिगत अतिथि बनकर जमशेदपुर पधार चुके हैं. रामधारी सिंह दिनकर, गोपाल सिंह नेपाली, बाबा नागार्जुन से लेकर आज के सर्वाधिक चर्चित कुमार विश्वास तक. कविता और कवियों में गोविंद बाबू की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि झारखंड में कविता का मंच किसी का हो, कवि सम्मेलन का आयोजन कोई करता हो लेकिन उसमें आने वाले कवि जमशेदपुर के गोविंद दोदराजका की याद जरूर करते हैं. कवि सम्मेलन के विकास में उनके योगदान को रेखांकित अवश्य करते हैं.
कविता-साहित्य और पत्रकारिता में गोविंद दोदराजका की गहरी रूचि का प्रमाण 2014 में लखनऊ से प्रकाशित 450 पृष्ठों की साहित्यिक पत्रिका साहित्य गंधा को देखने व पढऩे से होती है. इस पत्रिका का प्रकाशन गोविंद बाबू के सौजन्य से ही होता है. इस पत्रिका में निबंध, कविता, बाल साहित्य, यात्रा वृतांत तथा ठहाका, आलेख, संस्मरण, व्यंग्य और गीतों का समावेश रहता है.
साहित्य के विकास में गोविंद बाबू लंबे समय से सक्रिय हैं. 1968 से 1973 तक इन्होंने साहित्यिक पत्रिका निवेदिता का संपादन किया था. 1973-74 में पटना से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका के संपादक रहे थे.
15 अगस्त 1945 को रेलनगरी में अवतरण
गोविंद बाबू का जन्म 15 अगस्त 1945 को झारखंड की रेलनगरी चक्रधरपुर में एक कुलीन व संस्कारी मारवाड़ी परिवार में हुआ था. इनके पिता सत्यनारायण दोदराजका मूल रूप से राजस्थान के नवलगढ़ के रहने वाले थे. गोविंद जी के दादाजी जयदेव दोदराजका करीब डेढ़ सौ साल पहले रोजी-रोटी की तलाश में चक्रधरपुर में आकर बस गए थे. उस जमाने में राजस्थान से यहां आकर बसना असंभव को संभव करने जैसा माना जाता था. चक्रधरपुर में गोविंद बाबू के पिताजी का गल्ला का व्यवसाय था. बाद में उन्होंने रेलवे में ठेकेदारी शुरू कर दी.
कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से पढ़ाई
चक्रधरपुर के मारवाड़ी हाईस्कूल से 1961 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने कोलकाता के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया और वहीं से बी कॉम किया. इसके बाद उन्होंने रांची विश्वविद्यालय में लॉ की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया लेकिन पिताजी ने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए इन्हें चक्रधरपुर बुला लिया और गोविंद बाबू पूरी तरह से इसी में रम गए.
50 वर्षों के अपने पेशेवर जीवन में इन्होंने कड़ी मेहनत और ईमानदारी से एक सफल बिजनेसमैन की भी पहचान बनाई है. इनके कारोबार का दायरा भी बहुत विस्तृत है. हालांकि ये चाहते हैं कि लोग इन्हें साहित्य सेवी के रूप में ही जानें. उसूलों के पक्के गोविंद जी ने कभी गलत का समर्थन नहीं किया और उसूलों के खिलाफ जाकर समझौता भी नहीं किया. विपरीत से विपरीत परिस्थिति आने पर भी ये अपने सिद्घांतों पर अटल रहे. ईश्वर ने भी इसे देखा और भगवान कृपा से सारे संकट और चुनौतियां समाप्त होती गईं और इनकी सफलता के नये-नये द्वार खुलते चले गए.
आज निर्माण क्षेत्र में इनका नाम अग्रिम पंक्ति में लिया जाता है. इनकी कंपनी अपनी गुणवत्ता के लिए विशिष्टï पहचान बनाने में सफल हुई है. दिनोंदिन इनका कारोबार बढ़ रहा तो सामाजिक और साहित्य सेवा का दायरा भी.
पारिवारिक परिचय
परिवार में बड़ी बहन को छोडक़र दो भाई गिरधारी दोदराजका, अशोक दोदराजका और चार बहनें हैं. इनकी माता का नाम नर्मदा दोदराजका था. पत्नी सीमा दोदराजका से इनकी कमाल की केमिस्ट्री है. इनके हर काम में पत्नी का पूर्ण सहयोग प्राप्त होता है. दो बेटे आदर्श दोदराजका और आनंद दोदराजका कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं. बेटी अणिमा अग्रवाल भी माता-पिता के संस्कारों का वाहक है. पोते-पोतियों से भरा परिवार गोविंद बाबू के संस्कारों में आगे बढ़ रहा है.
अनेक संस्थाओं से जुड़ाव
साहित्य, कारोबार और सामाजिक जीवन से जुड़ी अनेक संस्थाओं से गोविंद बाबू का गहरा जुड़ाव है. लायंस क्लब, रेड क्रॉस सोसइटी, बिल्डर एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, साहित्यिक संस्था सुरभि समेत मारवाड़ी समाज के अनेक संगठनों के विकास में ये बढ़चढ़ कर भाग लेते रहे हैं. इसी तरह इन्हें चक्रधरपुर और जमशेदपुर समेत रांची, राउरकेला, कोलकाता, जयपुर, लखनऊ, नागपुर और नई दिल्ली जैसे अनेक शहरों में विभिन्न संस्थाओं के मंच पर देश की जानी मानी हस्तियों के हाथों सम्मानित किया जा चुका है.
जीवन के 78वें वर्ष में प्रवेश करने वाले गोविंद अग्रवाल दोदराजका अब साहित्य सेवा के अलावा धर्म और समाजसेवा को भी नया आयाम प्रदान करने में शिद्दत से जुटे हुए हैं. विश्व हिंदू परिषद से जुड़े विश्व गीता संस्थान का इन्हें वरिष्ठ राष्टï्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है. इस नये दायित्व के जरिए वे गीता को जन-जन से जोडऩे के नये मिशन पर सक्रिय हो चुके हैं.
गोविंद बाबू के जीवन के 78वें वर्ष में प्रवेश के मौके पर बहुत-बहुत बधाई व असीम शुभकामनाएं.

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