आदित्य शेखर
अभी हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष चल रहा है. शनिवार 14 अक्टूबर को इसका समापन होगा.
मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है। सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी विभुतियों को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।
ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. ये सही मायने में समाज रत्न हैं जिनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. एक ऐसी ही विभूति थे बनारसी लाल जी अग्रवाल. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि।
बनारसी लाल जी अग्रवाल जमशेदपुर-आदित्यपुर समेत पूरे कोल्हान के लिए किसी परिचय के मोहताज नहीं। नाम एक रूप अनेक। वे एक ऐसे निष्काम कर्मयोगी थे जो हमेशा मौन साधना में ही रमे रहते थे। सेवा को जीवन का उद्देश्य बना रखा था लेकिन कभी भी इसके जरिए मेवा मिलने की लालसा नहीं रखी और न ही इसके लिए कुछ प्रयास ही किया।
अपने स्तर से जो कुछ भी हुआ दूसरों को देते रहे-समाज को, संस्था को, संगठन या व्यक्ति विशेष को। अपनी धर्मपरायणा पत्नी केशरी देवी के साथ वे हमेशा धर्म सेवा में लगे रहते थे।
बनारसी लाल जी का जन्म 1931 में हुआ था। चूंकि उन दिनों देश परतंत्र था और आजादी की लड़ाई के लिए भारतीय युवा अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने को संकल्पित रहते थे लिहाजा स्कूली जीवन में ही बनारसी लाल अग्रवाल भी आजादी की लड़ाई में भूमिका निभाने लगे थे। साथ ही साथ विरासत में मिली समाजसेवा से भी खुद को जोड़े रखा।
युवावस्था में चूंकि परिवार चलाने के लिए कुछ करना भी जरूरी था लिहाजा कारोबार को उन्होंने जीवन जीने का जरिया बनाया लेकिन जन-मन-धन से देश और समाज के लिए सोचते रहे और यथाशक्ति करते रहे।
उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे समाज या देश के लिए जो ुछ करते थे उसे व्यक्तिगत कर्तव्य मानते थे और बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि कोई दूसरा इस विषय में जाने।
इनकी स्पष्ट मान्यता थी कि यदि देश और समाज के लिए कुछ भी करते हैं तो उसका प्रचार कैसा? और क्यो? प्रचार के लिए सेवा नहीं की जाती। सेवा मनुष्य के अंदर से जागृत होती है। यही कारण रहा कि प्रचार-प्रसार की इस दुनिया से बनारसी लाल अग्रवाल ने खुद को दूर रखा।
लिहाजा उनकी समाजसेवा एक तरह से गोपनीय तरीके से ही गई सेवा रही। बनारसी लाल अग्रवाल एक दूरदर्शी कारोबारी, सच्चे समाजसेवी के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के एक मजबूत पैरोकार भी थे। संयमित जीवन, उच्च विचार व धार्मिक सरोकार के साथ जीने वाले व्यक्ति थे बनारसी लाल अग्रवाल।
हमारे मनीषियों ने कहा है कि जो व्यक्ति नैतिक रूप से मजबूत रहता है, धर्म में विश्वास करता है, हर रोज सूर्योदय का दर्शन करता है उसका जीवन शांति और खुशहाली के साथ व्यतीत होता है।
बनारसी लाल अग्रवाल ने आजीवन इसी सूत्र वाक्य पर अमल किया। सुख संयोग यह कि उनकी धर्मपत्नी केशरी देवी ने उनका हर कदम पर साथ दिया था। यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि यदि केशरी देवी नहीं होतीं तो बनारसी बाबू का सावा क्षेत्र शायद ही इतना व्यापक हो पाता।
समाज को अपने ऐसे महान व्यक्तित्व पर गर्व है। धर्म- समाज और लोगों के विकास की राह में बनारसी लाल अग्रवाल का व्यक्तित्व हमेशा प्रेरणास्रोत बना रहेगा