प्रभु दयाल जी झुनझुनवाला: चाकुलिया में गृहस्थ संत की तरह समाज सेवा को बनाया जीवन का ध्येय

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चंद्रदेव सिंह राकेश

हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का शनिवार 14 अक्टूबर को समापन हो रहा है. मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं. इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है. उन्हें याद किया जाता है. सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये.

ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि. प्रभु दयाल जी झुनझुनवाला एक ऐसे गृहस्थ इंसान थे जो अपने जीवन को किसी महात्मा की मानिंद व्यतीत किया. तमाम सांसारिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए इन्होंने सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और लोकसेवा को अपनी प्राथमिकता सूची में ऊपर रखा.

एक ऐसे महात्मा थे जिन्होंने अपना सारा जीवन अपने क्षेत्र के हर जाति वर्ग के लोगों की आध्यात्मिक चेतना जगाने के लिए अर्पित कर दिया था. चैतन्य महाप्रभु की इस देवभूमि पर उन्होंने हरकीर्तन के मार्ग पर और आगे बढऩे के लिए लोगों को प्रेरित करने का काम किया. प्रभु दयाल जी ने ये धार्मिक प्रवृत्ति के संस्कार बचपन से ही अपने माता-पिता (रामेश्वर लाल जी झुनझुनवाला व गणपति देवी जी) से आए थे। धीरे-धीरे उनकी रूचि अध्यात्म में और गहरी होती गई.

तरूणावस्था में ही उनके संपर्क भारत के प्रसिद्ध ऋषि-मुनियों से हो गये थे जिनमें प्रमुख थे स्वामी रामसुख दास जी महाराज, श्री अखंडानंद जी सरस्वती, श्री रामकिंकर जी उपाध्याय, मां आनंदमयी जी, श्री सुदर्शन सिंह जी चक्र, श्री डोंगरजी महाराज, बक्सर वाले मामाजी, श्रृंगेरीपीठ के शंकराचार्य, श्री विष्णुकांत जी शास्त्री इत्यादि. उन्होंने अपने जीवन काल में काफी बड़े आयोजन करने का कार्यभार संभाला था। लेकिन आयोजक के रूप में श्री हनुमान जी को ही उन्होंने माना.
इन प्रमुख आयोजनों में मानस चतुष्तशती समापन समारोह (1976), चैतन्य महाप्रभु पंचशती समारोह (1986), नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती, मां आनंदमयी जयंती (1996), गोवर्धनपूजा समारोह को बड़े धूमधाम से और बड़े व्यवस्थित तरीके से मनाया गया था. इन आयोजनों में ही क्षेत्र के लाखों लोगों ने लाभ लिया ही साथ ही साथ देश के विभिन्न हिस्सों से भी लोग काफी संख्या में लोग पधारे थे और संतों की वाणी का लाभ उठाया था. इतने वर्षों के बाद आज भी लोग उन आयोजनों की चर्चा करते नहीं थकते. भागवत पाठ में इनकी काफी रूचि थी और अपने जीवन काल में इन्होंने स्वयं संपूर्ण भागवत पाठ कई बार किया.

चैतन्य महाप्रभु पंचशती समारोह के अवसर पर पांच सौ करोड़ राम नाम पूरे भारत वर्ष में कापियों में लिखे हुए चाकुलिया में एकत्र हुआ था. इन कापियों को यहां से सुखताल भेजा गया था जो कि बाद में वहां हनुमान धाम में स्थित 72 फीट ऊंचे श्री हनुमान जी के विग्रह के अंदर रखा गया. अपनी जिंदगी के अंतिम वर्षों तक भी भारत के विभिन्न तीर्थ स्थलों का इन्होंने चाकुलिया वासियों को ग्रुप में भ्रमण करवाया. हर वर्ष वे इस क्षेत्र की कीर्तन मंडलियों को तीर्थ स्थानों में ले जाते थे.

आध्यात्मिक प्रवृत्ति के साथ-साथ उनकी साहित्य में भी काफी रूचि रही. चाकुलिया में आजाद हिंद पुस्तकालय की इन्होंने स्थापना की और लोगों को इससे जोड़ा। इन्होंने इंद्रधनुष के नाम से एक संस्था बनायी और उसके माध्यम से कई कार्यक्रम किए जिसमें प्रमुख था बांगला जात्रा का मंचन जिसे देखने हर वर्ष काफी संख्या में लोग जुटते थे.

कवि सम्मेलनों से इनका काफी लगाव रहा और चाकुलिया में हर वर्ष कवि सम्मेलन का आयोजन कराते थे. ऐसे तो यहां बहुत कवियों का जमावड़ा रहा किंतु यहां आने वाले प्रमुख कवियों में शामिल थे श्री काका हाथिरसी, श्री बाल्मिकी बैरागी, श्री संतोषानंद, श्री रामरीख मनोहर, श्री निर्भय हाथरसि, श्री विमलेश, श्री सुरेंद्र शर्मा, श्री ओमप्रकाश आदित्य, श्रीमती प्रभा ठाकुर, श्रीमती एकता शबनम इत्यादि. चाकुलिया में अवस्थित करीब सारी संस्थाओं का कार्यभार इन्होंने संभाला और अपने दायित्व को पूर्णरूपेण निभाया था. राणी सती मंदिर, सत्यनारायण ठाकुर बाड़ी, चाकुलिया गौशाला ने इनके कार्यकाल में काफी उन्नति की. सामाजिक चेतना में कई वर्षों तक इन्होंने वनवासी कल्याण आश्रम का काम भी संभाला। आरएसएस के कई कार्यक्रम इनके संरक्षण में हुए.

जीवन के अंतिम पलों तक इन्होंने श्री हनुमानजी का ध्यान किया और हाथ जोडक़र अंतिम सांसें लीं. शायद इनको अपनी मृत्यु का पूर्वानुमान हो गया था. इसीलिए इनकी देहांत का वक्त ठीक उसी नक्षत्र में हुआ था जिस नक्षत्र में भीष्म पितामह ने भगवान श्रीकृष्ण के सामने शरीर को छोड़ा था.

पितृ पक्ष के इस पावन अवसर पर सनातन सिंधु डॉट काम की ओर से प्रभु दयाल जी झुनझुनवाला को शत-शत नमन और हृदय से श्रद्धांजलि.

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