सिस्‍टम से निराश बाप ने खुद ही 8 साल तक कातिल को खोजा, साइड मिरर से खुला राज

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किसी पिता के लिए उसके बेटे को खोना अत्यंत दुखदायी होता है, और जब वह पिता खुद जासूसी में जुट जाता है, तो वह किसी मिशन को पूरा करने के लिए सजग होता है। यह कहानी वो दर्दनाक अनुभव का है जो एक पिता ने अपने बेटे को खोने के बाद किया और उसने एक बड़े राज का पर्दाफाश किया। गुरुग्राम के जीतेंद्र चौधरी बेटे के गम को दिल के एक कोने में दबाकर कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया. पुलिस से मिन्नतें करते रहे. अदालत का दरवाजा खटखटाया. हर तरफ से नाउम्मीदी. लेकिन उनके दिल और दिमाग ने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो बेटे अमित चौधरी के गुनहगार का राजफाश जरूर करेंगे.

अगर अमित चौधरी जिंदा होता तो उसकी उम्र 23 साल की होती. लेकिन 2015 में एक हादसे में उसकी जान चली गई. अमित चौधरी के परिवार के लिए 5 जून 2015 काला दिन साबित हुआ. 10वीं में पढ़ने वाला अमित अपने चाचा के साथ सेक्टर 57 स्थित रेलवे विहार के करीब टहल रहा था. उसे क्या पता था कि कुछ पल बाद वो खूबसूरत दुनिया को नहीं देख सकेगा. हादसा गुरुग्राम के सेक्टर 57 में स्थित रेलवे विहार के पास हुआ था, जहां वह अपने चाचा के साथ घूम रहे थे। एक कार से टक्कर मारने से अमित बुरी तरह जख्मी हो गए और उनकी मौत हो गई।

मौत की खबर बाप और मां तक गई. हर कोई बदहवास. मां और बाप को यकीन नहीं हो रहा था कि उसके कलेजे का टुकड़ा अब उसके साथ नहीं है. हालांकि बेटे की मौत को स्वीकार कर उसके पिता पुलिस स्टेशन पहुंचे. पुलिस ने उसी दिन यानी 5 जून को ही मुकदमा दर्ज कराया. पुलिस ने जांच शुरू की लेकिन कार और उसके ड्राइवर के बारे में जब जानकारी नहीं मिली तो केस को बंद कर दिया.

गुरुग्राम पुलिस से जीतेंद्र चौधरी ने लगातार निवेदन किए कि जांच को दोबारा शुरू किया जाए। लेकिन पुलिस वालों ने किसी भी तरह की मदद नहीं की, जिसके बाद उन्होंने खुद ही गुनहगार को खोजने का निर्णय लिया। वह हादसे की जगह पर पहुंचे और वहां कार का साइड मिरर पाया। उन्होंने आस-पास के गैराजों में जाकर हादसे के बारे में पूछताछ की, लेकिन किसी ने भी कोई जानकारी नहीं दी। इसके बावजूद, उनका हौसला कमजोर नहीं पड़ा। एक मैकेनिक ने उन्हें बताया कि जिस साइड मिरर को वह दिखा रहे थे, वह स्विफ्ट वीडीआई की था। इस जानकारी के बाद, उन्हें उम्मीद मिली। उन्होंने मारुति के शोरूम में जाकर साइड मिरर की बैच नंबर से जानकारी प्राप्त की। इस सारी जानकारी के साथ, उन्होंने 2015 में ही पुलिस को संपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की, लेकिन पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया।

अदालत को देना पड़ा दखल

2016 में, पुलिस द्वारा जारी जवाब के बाद, जीतेंद्र चौधरी ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के द्वारा दरख्वास्त करने और केस को फिर से खोलने की अपील की। ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास (JMFC) की अदालत ने पुलिस से रिपोर्ट की मांग की, लेकिन पुलिस ने उसी तरह का उत्तर दिया कि कार और उसका चालक अब तक खोजे जा रहे हैं। JMFC ने इस उत्तर को स्वीकार लिया और 27 जुलाई 2016 को इसे मंजूरी दी। हालांकि, पुलिस ने जीतेंद्र चौधरी को जानकारी नहीं दी। लगभग दो साल बाद, 2018 में, जीतेंद्र चौधरी ने पुनः JMFC अदालत के दरवाजे पर खटखटाया। उन्होंने साबित किया कि उनके पास अतिरिक्त साक्ष्य हैं जिन्हें शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन JMFC ने यह नकारते हुए कहा कि यह याचिका वाद्य नहीं है, हालांकि यह कहा गया कि पीड़ित पक्ष एसएचओ के माध्यम से पुनरावलोकन की अपील कर सकता है। इसके बाद, जीतेंद्र चौधरी ने सेशन कोर्ट में जाकर JMFC के फैसले का चुनौती दी, हालांकि यह अपील खारिज हो गई। इस समय के बीच, जीतेंद्र ने 2020 में कोविड के कारण होने वाली रुकावट का सामना किया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

आरोपी के खिलाफ चार्जशीट

तीन साल बाद, 2023 में, जीतेंद्र चौधरी ने फिर से लड़ाई लड़ने का निर्णय किया। इस दौरान, JMFC ने माना कि पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। अगर केस को बंद करना ही था, तो शिकायतकर्ता को सूचित करना चाहिए था। इस आधार पर, एक बार फिर जांच करने का आदेश दिया गया। इसके बीच-बीच में, पुलिस का रवैया ढीला रहा, जिसके बावजूद, अदालत ने पुलिस को कड़ी संख्या में डांट लगाई और उसका प्रभाव भी हुआ। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ अंतिम चार्जशीट दाखिल कर दी। इस लम्बी लड़ाई के बाद, अमित के पिता ने कहा कि देर से ही सही, न्याय मिला है।

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