धर्मेंद्र कुमार
यह अटल सत्य है कि जो इस धरती पर आया है उसे एक न एक दिन अपना नश्वर शरीर त्यागकर उस लोक को प्रस्थान कर जाना है जहां से किसी तरह से भी संवाद या संपर्क की कोई गुंजाइश नहीं रहती है. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि बड़ा किस्मत वाला ही किसी पुण्य दिन को इस अनंत यात्रा पर प्रस्थान करता है. हमारे साथ औद्योगिक नगरी जमशेदपुर के जुबिली पार्क में हर दिन सुबह में मॉर्निंग वाक को आने वाले सैकड़ों लोगों के लिए आज कार्तिक पूर्णिमा व सिख धर्म के संस्थापक गुरूनानक देव जी महाराज के प्रकाश पर्व के दिन उस हर दिल अजीज इंसान के परलोक गमन की सूचना प्राप्त हुई जिसे जमशेदपुर सोनारी निवासी सरदार मनोहर सिंह के रूप में जानता व पहचानता रहा है.
आज सुबह-सुबह निरंजन विशोई जी से सरदार मनोहर सिंह के अब इस दुनिया में नहीं रहने की सूचना प्राप्त हुई. सरदार साहब के साथ विशोई जी की करीब चार दशक से दोस्ती थी. अपने दोस्त के नहीं रहने की सूचना साझा करने के साथ ही वे फफक-फफक कर रो पड़े. इसके साथ ही सरदार मनोहर सिंह के निधन की खबर तेजी से उनके चाहने वाले तक पहुंच गयी.
सबसे पहले वाहे गुरु से हमारी प्रार्थना है कि वे सरदार मनोहर सिंह की पवित्र आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें व शोकाकुल परिजनों को इस कठिन समय में संबल प्रदान करें.
सरदार मनोहर सिंह जी सच्चे समाजसेवी, परम परोपकारी और धर्मनिष्ठ नागरिक थे. वे यारों के यार थे. संबंधों के निर्वहन तक के लिए त्याग की किसी सीमा तक जाने में उन्हें तनिक भी हिचक नहीं होती थी. गरीबों, जरूरतमंदों या उनसे कुछ मांगने वालों को वे बिलकुल भी निराश नहीं करते थे. वाहे गुरु ने उनको जितना दिया था उसे वे समाज हित में खर्च करने में तनिक भी कंजूसी नहीं करते थे. धार्मिक व सामाजिक आयोजनों में वे बढ़चढ़कर भाग लेते थे. किसी संकट या परेशानी में फंसे मित्रों व परिचितों का हौसला बढ़ाना उनकी आदत में शुमार था.
जुबिली पार्कर्में वे सुबह की सैर करने वालों केे लिए तो वे अनमोल हीरे की तरह थे. उनकी निश्चल हंसी, बात करने का निराला अंदाज और चुटिली बातों को भी मजाकिया अंदाज में कह देने का अंदाज हर किसी को प्रभावित कर लेता था. उनकी व्यक्तित्व की यही विशेषता उन्हें कायल बना देती थी और हर कोई हर सुबह उन्हें शिदï्दत से तलाशता रहता था.
अपने जीवन में 75 से ज्यादा बसंत देख चुके सरदार मनोहर सिंह जी अपना अमृत काल का आनंद बेटी के यहां कानपुर में उठा रहे थे. अपनी दोनों बेटियों को उन्होंने बेटे की तरह सुयोग्य बनाया था. पत्नी के देहावसान केे बाद पिछले कुछ समय से वे बेटियों के पास कानपुर या लखनऊ रह रहे थे.
सरदार मनोहर सिंह जी कुछ दिन पहले ही जमशेदपुर में अपने मॉर्निंग वॉकर दोस्तों को यह जानकारी दी थी कि वे जल्द ही जमशेदपुर आएंगे और सोनारी स्थित अपने उसी पैतृक आवास में रहेंगे जिसकी विशालता और भव्यता को देखकर अमूृमन हर कोई रस्क करता रहा है. लेकिन नियति ने तो उनके लिए कुछ दूसरा ही प्लान कर रखा था. वे तो जमशेदपुर नहीं आए लेकिन आई उनके नहीं रहने की स्तब्धकारी सूचना. जिसे सुनकर कोई आवाक रह गया, कोई हैरान रह गया, कोई परेशान हो उठा और कोई नि:शब्द हो गया. किसी अजीज के नहीं रहने पर अमूमन होता भी ऐसा ही है.
बेशक सरदार मनोहर सिंह जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे अपने आचार-व्यवहार व कर्मो से हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे. फिराक गोरखपुरी ने शायद इन्हीं जैसे लोगों के लिए लिखा था-
ऐ मौत आकर
खामोश कर गयी तू
सदियों दिलों के अंदर
हम गूंजते रहेंगे.
सरदार मनोहर सिंह जी को हमारी विनम्र श्रद्घांजलि और कोटि-कोटि प्रणाम.