नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक लॉ स्टूडेंट की सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो शैक्षिक प्रमाण-पत्रों और डिग्रियों के संदर्भ में है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जहां अभिभावक का नाम होता है, वहां माता और पिता दोनों का नाम होना चाहिए। इसके साथ ही, केवल पिता के नाम की अहमियत नहीं है। यह फैसला शैक्षिक डॉक्यूमेंट्स पर मां का नाम अनिवार्य करने का है।
इस निर्णय के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने भी सरकारी दस्तावेजों पर एक बड़ा बदलाव किया है। अब सभी डॉक्यूमेंट्स में बच्चे के नाम के बाद मां का नाम, फिर पिता का नाम और सरनेम आएगा। महाराष्ट्र सरकार ने इस निर्णय को कैबिनेट मीटिंग में स्वीकृति दी।
यह नियम 01 मई 2024 से लागू होगा। इसका मतलब है कि 1 मई के बाद जन्म लेने वालों के सभी डॉक्यूमेंट्स में मां का नाम आवश्यक होगा। सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस नियम का पालन सभी सरकारी डॉक्यूमेंट्स के लिए अनिवार्य होगा। सरकार ने कहा कि 1 मई या उसके बाद जन्म लेने वालों के स्कूल, पे स्लिप, परीक्षा प्रमाण पत्र और रेवेन्यू डॉक्यूमेंट के लिए इसी फॉर्मेट में अपना नाम रजिस्टर कराना होगा। महिला एवं बाल विकास विभाग ने पहले कहा था कि इस फैसले को माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचान देने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा सकता है।
इस निर्णय को अदालत ने सामाजिक महत्व के दृष्टिकोण से लिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह एक बड़ा सामाजिक मुद्दा है और माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के लिए एक कदम है।
दिल्ली की गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिट से लॉ की पढ़ाई कर रही एक छात्रा ने जब अपनी डिग्री पर मां का नाम नहीं मिलने पर दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाकर्ता रितिका प्रसाद लॉ ग्रेजुएट हैं, उनका कहा था कि उन्होंने पांच साल पहले बीए एलएलबी कोर्ट में एडमिशन लिया था। जब कोर्स पूरा हुआ और डिग्री दी गई है तो उस पर केवल पिता का नाम लिखा था। रितिका का कहना था कि डिग्री पर मां और पिता दोनों का नाम होना चाहिए।
‘यह एक बड़ा सामाजिक महत्व का मुद्दा है’
कोर्ट का कहना है कि यह एक बड़ा सामाजिक महत्व का मुद्दा है। इस संबंध में UGC ने 06 जून 2014 को एक सर्कुलर जारी किया था, बावजूद इसकी अनदेखी की गई है। कोर्ट ने इस पर भी खुद प्रकट किया है। कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को 15 दिन के अंदर मां के नाम के साथ नया सर्टिफिकेट जारी करने का समय दिया।