मृत्युंजय सिंह गौतम
आज रविवार सात जुलाई 2024 है.आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि. इसी शुभ दिन को भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकलेगी. अब से कुछ ही देर के बाद. दिन चार बजे से. जगन्नाथपुरी समेत देश के कई शहरों व विदेश की धरती पर भी यह ऐतिहासिक धार्मिक कार्यक्रम होगा.
हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं.
इस बार रथ यात्रा द्वितीया तिथि 7 जुलाई को 3.44 बजे अहले सुबह से प्रारंभ हो चुकी है. द्वितीया तिथि 8 जुलाई अहले सुबह 4.14 बजे समाप्त है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर सर्वार्थ सिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है.
यदि आप रथयात्रा में शामिल होने पुरी गए हैं. तो उसके पुण्य का तो पूछिए ही मत. यदि किसी कारण से पुरी नहीं जा सके हैं, अपने शहर या निकट के स्थान से निकलनेवाली रथयात्रा में शामिल होकर पुण्य का भागी बन सकते हैं.
ऱथयात्रा को लेकर धार्मिक मान्यताएं
ऐसा माना जाता है रथ यात्रा का साक्षात दर्शन करने से ही 1000 यज्ञों का पुण्य फल मिल जाता है. रथ यात्रा के दौरान नवग्रहों की पूजा की जाती है.
ऐसा मानना है कि रथ यात्रा में शामिल होने से अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है और शुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ता है.
रथ यात्रा हर साल रथ यात्रा आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि से लेकर आषाढ़ मास एकादशी तक चलती है. इस पर्व के बारे में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने भक्तों के मध्य विराजमान रहते हैं.
ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथजी का रथ खींचने से व्यक्ति अपने दुर्भाग्य को दूरकर सौभाग्य को प्राप्त करता है. भगवान की रथयात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
— जो भगवान के सहस्रनामों का पाठ करते हुए रथ की प्रदक्षिणा करते हैं, वे भगवान विष्णु के समान होकर वैकुंठ धाम में निवास करते हैं.
— भगवान नाम का संकीर्तन करने मात्र से सौ जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है, रथ में स्थित पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी का दर्शन करके मनुष्य अपने करोड़ जन्मों के पापों का नाश कर लेता है.
– जो भक्त रथ यात्रा के दौरान नृत्य कर भगवान का गीत गाते हैं, वे अपने कष्ठों को वहीं छोडक़र अपने जीवन के सुख में वृद्धि करते हैं.
— रथ मार्ग में जो भक्त भगवान को साष्टाङ्ग प्रणाम करते हैं, वे अनादिकाल से अपने ऊपर चढ़े हुए पाप कृत कर्मों को त्यागकर मुक्त हो जाते हैं.
-जो मनुष्य रथ यात्रा अथवा भगवान के कार्य के लिए दान करता है, उसका थोड़ा भी दान अक्षय फल के समान माना गया है.
रथयात्रा से जुड़ी कथाएं
पहली कथा : प्राचीन काल में एक राजा ने श्रीकृष्ण, बलराम तथा सुभद्राजी की काष्ठ मूर्तियां एक ब्राह्मण वेशधारी विश्वकर्मा से बनवाईं. राजा ने भगवान के विग्रह स्वरूप को रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया, भव्य प्राण-प्रतिष्ठा कर विधि-विधान से पूजन किया. राजा की श्रद्धा भक्ति को देखकर भगवान विष्णु ने राजा को प्रत्यक्ष दर्शन दिए जिसके फलस्वरूप राजा अनादिकाल से अपने ऊपर चढ़े हुए पापों को त्याग कर मृत्यु उपरांत मोक्ष को प्राप्त हुआ.
दूसरी कथा : एक बार देवी सुभद्रा ने अपने भाई श्रीकृष्ण और बलराम से नगर दर्शन की इच्छा प्रकट की, जिसे पूरी करने के लिए तीनों रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले, तभी से प्रति वर्ष रथयात्रा का आयोजन होता है.
तीसरी कथा : प्राचीनकाल में जब यातायात के साधन कम थे और वर्षा ऋतु में जब आवागमन बंद हो जाता था, तब इस पर्व पर सभी भगवान को रथ मे घुमाकर अपने वाहनों को चार माह के लिए सुरक्षित जगह पर रख देते थे.
वर्षा ऋतु की समाप्ति पर दशहरा उत्सव मनाते समय निकालते थे. यहां रथों को खींचते समय एक खास बात यह देखी जाती है कि भगवान के रथों को घोड़ों द्वारा नहीं, वरन भगवान के असंख्य भक्तजनों द्वारा खींचा जाता है.