चंद्रदेव सिंह राकेश
जमशेदपुर के प्रख्यात समाजसेवी, धर्मप्रेमी व कारोबारी कौशल किशोर सिंह यानी केके सिंह जी की आज 28 जून को जयंती है. सबसे पहले केके बाबू की पुण्य आत्मा को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि व कोटि-कोटि नमन.
केके सिंह जी आज कई रूपों में याद आ रहे और अलग-अलग अवसरों पर हुई बातचीत में विभिन्न मसलों, विषयों या प्रसंगों पर उनके सारगर्भित विचार भी याद आ रहे हैं. झारखंड-बिहार की अग्रणी निर्माण कंपनियों मे से एक केके बिल्डर्स के संस्थापक रहे केके बाबू तन व मन से समाजसेवी थे. सांसारिक जीवन यापन के लिए कारोबार करते थे. शायद यही कारण होता था कि बातचीत में लोककल्याण व समाजसेवा पर ही उनका ज्यादा फोकस रहता था. धर्म के प्रचार-प्रचार में भी उनकी गहरी आस्था रहती थी.
28 जून शुक्रवार को उनकी जयंती के मौके पर महारक्तदान शिविर का आयोजन किया गया है. जमशेदपुर के साकची स्थित रेडक्रास सोसाइटी भवन में यह कार्यक्रम होना है. केके बाबू की पत्नी उर्मिला सिंह जी भी उन्हीं की तरह परोपकारी व समाजसेवी हैं. पुत्र विकास सिंह व पुत्रवधू रश्मि सिंह उनकी विरासत को बड़ी तन्मयता से आगे बढ़ा रहे हैं. इस रक्तदान महाशिविर को विकास सिंह ने व्यापक आयाम दिया है.

बात रक्तदान शिविर की हो रही है तो रक्तदान के विषय मे केके बाबू की कही बातें बहुत याद आ रही हैं. ये बाते हर काल के लिए प्रासंगिक हैं. हर आदमी के लिए उपयोगी हैं. हर किसी के लिए अनुकरणीय हैं. हर किसी के लिए प्रेरक हैं. समाज के लिए कुछ करने मे संसाधनों की आवश्यकता विषय पर बात हो रही थी. सवाल था कि जिसके पास संसाधन न हों लेकिन मन में दान या सेवा करने की इच्छा रहे तब क्या किया जा सकता है?

केके बाबू ने कुछ देर चिंतन किया. फिर कहा- अगर आप समझते हैं कि दान (समाज सेवा) करने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है तो आप गलत समझते हैं. ईश्वर ने आपको एक ऐसा अनमोल धरोहर और संसाधन दे रखा है जिसके दान करने से आप एक नहीं बल्कि तीन जिंदगी बचा सकते हैं, जी हां, तीन जिंदगी. आप सही समझे. यह रक्तदान है जो महादान है. सबसे बड़ा दान. हर इंसान को यह दान अवश्य करना चाहिए.
केके बाबू ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि महान पुण्य है रक्तदान. हालांकि इसको लेकर लोगों के मन में तरह तरह की भ्रांतियां भी रहती हैं. इनकी वजह से लोग रक्तदान करने से कतराते हैं. लोग यह समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमजोर हो जाता है और नियमित खून देने से रोग प्रतिकारक क्षमता कम हो जाती है जिससे बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं.
यह धारणा कि रक्तदान से शरीर कमजोर हो जाता है, पूरी तरह गलत है. सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है. स्वस्थ लोग स्वैच्छिक रक्तदान कर कितने ही अन्य के जीवन को बचा सकते हैं. आमजन को यह ज्ञात होना चाहिए कि मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता. रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है कि कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच हो, जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो, जिसका हीमोग्लोबिन 12.5 हो और जिसे ‘एचआईवी’, ‘हेपाटिटिस’ ‘बी’ या ‘सी’ तथा ब्लड शुगर जैसी बीमारी न हो; बिना किसी भय के रक्तदान कर सकता है.
जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं क्योंकि रक्तदान करने से करने से खून में कोलेस्ट्रॉल जमा नहीं होता. अहम बात यह भी कि हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित लाल रक्त कणिकाएं तीन माह में स्वयं ही मर जाती हैं. इस कारण प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है. आधा लीटर रक्त से तीन लोगों की जान बच सकती है.
हालांकि बड़ी संख्या में लोग सोचते हैं इतने लोग रक्तदान कर रहे हैं तो मुझे अपना खून देने की क्या जरूरत है? मेरा ब्लड ग्रुप तो बहुत आम है इसलिए यह तो किसी को भी आराम से मिल सकता है तथा कई लोग यह सोचते हैं कि मेरा ग्रुप तो रेयर है इसलिए जब किसी को इस ग्रुप की जरूरत होगी तभी मैं रक्त दूंगा. इस संकुचित सोच को बदलने की जरूरत है. किसी की जान बचाने से बड़ा पुण्य दूसरा नहीं हो सकता.
केके बाबू का मानना था कि जागरुकता अभियानों से रक्तदान को लेकर भ्रातियों को दूर करना चाहिए. ज्यादा से ज्यादा रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाना चाहिए. इसे जन आंदोलन का रूप दिया जाना चाहिए.
संयोग देखिए कि रक्तदान को लेकर केके बाबू के विचार लोगों को इतना भा रहे कि रक्तदान जन आंदोलन का रूप लेने की दिशा में अग्रसर है. जमशेदपुर में रेडक्रास सोसाइटी समेत अन्य स्थानों पर बड़े पैमाने पर लगनेवाले शिविर इसकी तस्दीक करते हैं.
एक संयोग और देखिए. केके सिंह की जयंती हम 28 जून को मनाते हैं. आज भी मना रहे हैं. रक्तदान करते हैं. आज भी कर रहे हैं. यह जानकारी भी रोचक है कि रक्तदान के लिए जून महीना बहुत अहमियत रखता है.
रक्त की इसी प्राणदायिनी महत्ता के प्रति जन जागरुकता फैलाने के लिए हमने इस साल भी 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस मनाया था. बताते चलें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए 14 जून का दिन इसलिए चुना था क्योंकि इस दिन सुविख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद कार्ल लेण्ड स्टाइनर (14 जून 1868 -26 जून 1943) का जन्म हुआ था; जिन्होंने इंसानी खून के ‘ए’, ‘बी’, व ‘ओ’ रक्त समूह और रक्त में मिलने वाले एक अहम तत्व ‘आरएच फैक्टर’ की खोज की थी. इस खोज के लिए उन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. चिकित्सा विज्ञान में इस महान योगदान के लिए उन्हें ट्रांसफ्यूजन मेडिसन का पितामह भी कहा जाता है.

तो आइए केके सिंह के प्रेरक व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर हम आज भी रक्तदान करें और भविष्य के लिए भी तैयार रहें. खुद इस महादान में हिस्सा लें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें. यही केके सिंह जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि और मानवता की सेवा होगी.