मानगो बड़ा हनुमान मंदिर के जरिए लहरा रही श्री श्री 108 महंत बाबा विश्वभंर दास जी महाराज की धर्म ध्वजा

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मृत्युंजय सिंह गौतम

जमशेदपुर : किसी मनुष्य का भौतिक जीवन सही अर्थ में तभी सार्थक माना जाता या होता है जब उसने अपने जीवन काल में देश-समाज-धर्म-संस्कृति-मानवता के लिए कुछ दान किया हो. यदि कोई इंसान इनसे जुड़े कर्मों को संपादित करता है तो उनकी ख्याति सदियों तक समाज के सामने एक प्रेरणा के रूप में जीवित रहती है.
आज आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हमें एक ऐसी पुण्य आत्मा का बार बार स्मरण हो रहा जिसने देश की प्रमुख औद्योगिक नगरी जमशेदपुर में सनातन धर्म की ध्वजा को तहराते रहने के लिए ऐसा कार्य किया जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी याद करेंगे और उससे प्रेरित भी होते रहेंगे.

जी. हम बात कर रहे हैं जमशेदपुर के सबसे बड़े हनुमान मंदिर के संस्थापक पूज्य संत ब्रह्मलीन  श्री श्री 108 महंत बाबा विश्वभंर दास जी महाराज की जिनकी आज आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पुण्य तिथि है. 2024 में यह तिथि 18 जुलाई गुरुवार को पड़ रही है.

जमशेदपुर के मानगो में न्यू पुरुलिया रोड पर विशाल व भव्य हनुमान मंदिर, जिसे आम बोलचाल की भाषा में बड़ा हनुमान मंदिर कहते हैं, की स्थापना बाबा विश्वभंर दास की महाराज ने ही की थी. वैसे इस मंदिर का शास्त्रसम्मत नाम त्रयंबक महादेव मंदिर है.
बाबा जी अद्भूत व्यक्तित्व के धनी थे. परम ज्ञानी. प्र्रखंड विद्वान. मानवता के पर्याय. सेवा के सारथी और धर्म ध्वजा को लहराने वाले योद्धा. विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी अपने नेक व मजबूत इरादे पर फौलादी इच्छाशक्ति के साथ डटे रहनेवाला सनानती.
मंदिर में लगे शिलापट्ट के जानकारी मिलती है कि बाबा विश्वभंर दास जी महाराज ने अपने नश्वर शरीर का त्याग विक्रम संवत 2056 यानी 1999 में 25 जुलाई को किया था. मंदिर में बाबाजी की मूर्ति का अनावरण 13 जुलाई 2000 को उनके भक्तों द्वारा किया गया था.
बाबा जी के बारे में मान्यता थी कि वे सिद्ध पुरूष थे. हनुमान जी के अनन्य भक्त थे. धर्म के प्रचार प्रसार में निस्वार्थ कर्मयोगी की भांति लगे रहते थे.
वे किसी स्थान से आकर जमशेदपुर को अपना कर्मस्थल बनाया, इस बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी तो नहीं मिलती है पर बताया जाता है कि उनकी बोली-भाषा के यह बोध होता था कि वे उत्तर प्रदेश के काशी यानी वाराणसी क्षेत्र के रहने वाले थे. बाल्यकाल में ही संन्यास ले लिया था.
बाबा जी सनातन धर्म में दान के मायने की गूढ़ व्याख्या करते थे और उसपर अमल कर दूसरों के लिए उदाहरण भी पेश करते थे. उनके भक्ति भाव के देखते हुए ही 20 वीं शताब्दी में मानगो के जंगल क्षेत्र में मंदिर निर्माण के संकल्प को मूर्त रूप देने में ईश्वर की कृपा के मार्ग प्रशस्त होता गया.
जिस विशाल भूखंड पर यह मंदिर निर्मित हुआ है उसका मालिकाना हक उस समय वन विभाग के पास हुआ करता था. तब बाबा जी बहुत ही छोटे स्तर व सीमित साधनों से वहां हनुमान जी समेत अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते थे.
धर्म में उनकी गहरी व अटूट आस्था के देखते हुए जमशेदपुर में पदस्थापित वन विभाग के एक बड़े अधिकारी ने बाबा जी को मंदिर निर्माण के लिए आगे बढऩे और उसमें अपने स्तर से पूरा सहयोग करने का वचन दिया. इसके बाद मंदिर निर्माण का कार्य आगे बढ़ा और आज इस विशाल रूप में यह हम सबके सामने है.
धार्मिक लोगों से मिले दान से बना यह मंदिर सनातन धर्म की ध्वजा को लहरा रहा है. हम देखते हैं दान के धन से बना यह मंदिर धर्म के साथ साथ समाज की सेवा मे बड़ा योगदान कर रहा है.
बाबा विश्वभंर दास जी महाराज की सूत्र वाक्य हुआ करता था – सेवा धर्म निभाए. सेवा धर्म को अंगीकार करके ही परोपकार की सोच को आगे बढ़ाया जा सकता है.  
बाबा विश्वंभर दास जी महाराज ने इस मंदिर का
इसलिए निर्माण कराया ताकि जमशेदपुर खासकर मानगो इलाके को लोगों को धार्मिक, सामाजिक और मानवता के क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के लाभ हों.
बाबा विश्वंभर दास जी महाराज लोगों को यही लाभ दिलाने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहा करते थे. वर्ष भर कोई न कोई धार्मिक आयोजन कराते रहते थे. धर्म के क्षेत्र में अपने व्यापक संपर्क-संबंधों के माध्यम से देश के जानेमाने संत महात्मा को हमेशा मंदिर परिसर में आमंत्रित कर कार्यक्रम संपादित कराते रहते थे.
बाबा विश्वंभर दास जी महाराज अक्सर याद दिलाते थे कि  मंदिर के बिना कोई शहर या गांव रहने लायक नहीं होता. मंदिर का एक मुख्य कार्य आध्यात्मिकता से भरा माहौल बनाना होता है. मंदिर शांतिपूर्ण चिंतन का अवसर प्रदान करता है.
बाबा बाबा विश्वंभर दास जी महाराज का सपना इस विशाल मंदिर को पटना के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर की तर्ज पर आध्यात्मिक संस्कृति का स्थान बनाना था.
मानगो बड़ा हनुमान मंदिर में धर्म व समाज हित में कई व बड़े कार्य हुए हैं. कई कार्य अपनी पूर्णता की बारी आने का इंतजार कर रहे हैं. समय के साथ हर कार्य पूर्ण होता है. मंदिर से जुड़े कार्य भी पूरा होंगे. मंदिर में भगवान शिव के त्रयंबक रूप की स्थापना का कार्य मूर्त रूप लेने की प्रतीक्षा कर रहा.
मंदिर समिति से जुड़े लोगों व सभी सनातनियों को बाबा जी के इस सपनेभरे संकल्प को पूरा करने के लिए आगे आना चाहिए. उम्मीद की जा सकती है कि बाबा जी की 2025 में पडऩेवाली पुण्य तिथि या उससे पहले की इस दिशा में सार्थक शुभारंभ हो जाएगा.
प्रशंसा इस बात की होनी चाहिए कि  बाबा जी की पुण्य तिथि पर आज 18 जुलाई को दो दिवसीय कार्यक्रम का समापन होगा.  इसके जरिए नई पीढ़ी को बाबा जी के व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में जानने-समझने व प्रेरित होना का सुअवसर प्राप्त होगा. इसलिए कार्यक्रम के आयोजकों व संचालकों को विशेष साधुवाद.


अंत में आदरणीय परम पूज्य बाबा जी को शत शत नमन का भावभीनी श्रद्धांजलि.

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