हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार, परम आदरणीय और प्रात: स्मरणीय आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की जयंती के अवसर पर आज जमशेदपुर के आदित्यपुर निवासी प्रखर चिंतक, समाज विज्ञानी, अधिवक्ता व समाजवादी विचारधारा के सनातनी पैरोकार रवींद्र नाथ चौबे ने आचार्य द्विवेदी की लेखनी के आधार पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। प्रस्तुत है रवींद्र नाथ चौबे की कलम से आचार्य द्विवेदी को दी गई श्रद्धांजलि।
कहा जाता है कि महाभारत और पुराणों को लिखने के बाद महर्षि व्यासदेव अनुताप से भरने के बाद यह लिखा कि
मेरी बौद्धिक विकलता के तीन अपराध –अरूप की रूपकल्पना ,अनिर्वचनीय का स्तुति निर्वचन, सर्वव्यापी का स्थान विशेष में निर्देश –तुम क्षमा करो
हे अखिल विश्व के गुरुदेव आपका कोई रूप नहीं है, फिर भी ध्यान के द्वारा इन ग्रंथों में रूप की कल्पना की है ,आप निर्वचनीय हैं फिर भी मैंने स्तुति के द्वारा व्याख्या करने की कोशिश की है , तुम समस्त भुवन में व्याप्त हो,इस ब्रह्माण्ड के अणु-परमाणु में व्याप्त हो तथापि तीर्थ यात्रा आदि विधान से उस व्यापित्व को खंडित किया है इसलिए मेरी बुद्धि विकलता के तीनों अपराधों के लिए क्षमा करो।
इसी अनुताप के अवधि में नारद जी भेंट होती है और नारद जी ने उनको इस अनुताप को समाप्त करने के लिए श्री कृष्ण के चरित्र पर विश्व रूप से लिखने को प्रेरित किया और उसके बाद महर्षि व्यासदेव ने श्रीमद्भागवत महापुराण लिखा और तब उन्हें शांति प्राप्त हुई।
एक तरह से श्रीमद्भागवत के रूप में प्रार्थना करने से ही शांति घटित हुई।
रवीन्द्र नाथ टैगोर कहते हैं कि वे आनंदरूपम् अमृतम् हैं। कहा गया है कि वे इच्छामय ,प्रेममय और आनंदमय हैं। इसलिए सिर्फ विज्ञान या ध्यान से उन्हें हम नहीं जानते, इच्छा के द्वारा ही इच्छा स्वरूप और आनंद स्वरूप को जानना पड़ता है।
हमारे भीतर इस इच्छा का निकेतन हृदय है ।हमारा इच्छारसमय हृदय जगद्व्यापी इच्छा रस की नाड़ी से बंधा हुआ है।वही से आनंद रस पीकर जी रहा है।न पाने से उसका प्राण निकल जाता है। वह अमृत चाहता है, प्रेम चाहता है।जो कुछ चाहता है ,वह इसलिए चाहता है वह क्षुद्र रूप से संसार में और चरम रुप में भगवान में वही व्याप्त है।
इसलिए उपनिषद के ऋषियों ने कहा है
कौन शरीर की चेष्टा करता और कौन जी सकता था, यदि आकाश में वह आनंद न होता।
दो इच्छाओं के बीच दुति का कार्य करती है प्रार्थना। इसलिए असाधारण साहस के साथ वैष्णव भक्त ने कहा है कि जगत् के विचित्र सौंदर्य के भगवान के बंशी, जो नाना सुरों में बज रही है वह सिर्फ हमारे लिए प्रार्थना है।
भक्त लोग इस राम को जानते हैं और राम भी भक्तों को पहचानते हैं। ऐसे में
नैन की व्यथा बैन जानती है,बैन की वेदना श्रवण। पिण्ड का दुःख प्राण जानता है और प्राण का दुःख मरण।आस का दुःख प्यास को मालूम है,प्यास का दुःख पानी को।
प्रस्तुति मृत्युंजय सिंह गौतम