दीनबंधु दवे : सेवा एवं संस्कार की विरासत को दिया नया आयाम

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हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का आज समापन हो रहा है। मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है।
सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।

ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि। दीनबंधु दवे का जन्म 25 दिसंबर 1933 को हुआ था। 11 सितंबर 2020 तक इनका नश्वर शरीर भूलोक पर रहते हुए धर्म व समाज की सेवा का अगुआ बना रहा।

अपने पिता स्व. हरगोविंद दास जी दवे से विरासत में मिले धार्मिक व सामाजिक दायित्वों का इन्होंने सफलतापूर्वक निर्वहन किया। ये भी पिता की तरह धार्मिक और सामाजिक कार्यों में सदैव आगे रहते थे। बात चाहे गुजराती सनातन समाज की हो या अन्य संस्थाओं की। सबके साथ इनकी सक्रियता बनी रहती थी। ये कारोबार के क्षेत्र में भी नैतिकता का ध्यान रखते थे और साफ-सुथरे तरीके से कारोबार का संचालन करते थे। अपनी छवि और ईमानदारी के प्रति सजगता के चलते ही इन्होंने कपड़े के व्यवसाय को प्राथमिकता दी। बाद में इन्होंने बिष्टुपुर में होटल दर्शन की स्थापना की।

इनके चार पुत्र और दो पुत्रियों इन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए इनसे प्राप्त सीख को अपना संबल बनाए हुए हैं। कहते हेैं पिता के कर्म से पुत्र-पुत्रियों की तरक्की होती है। स्व. हरगोविंद दास जी दवे और उनके पुत्र दीनबंधु जी दवे के सत्कर्म इस तथ्य को रेखांकित करते हैं। दवे परिवार अपने शीर्ष पुरुषों को देवतुल्य मानते हुए आज इनके पदचिह्न पर अपनी सेवा के कदम को पवित्रता के साथ आगे बढ़ा रहा है। दोनों महापुरूष सिर्फ दवे परिवार के लिए ही नहीं बल्कि धर्म और समाज की सेवा में सक्रिय रहने वाले तमाम लोगों के लिए प्रेरणास्वरूप हैं। दीनबंधु जी के पुत्रों हरीश दवे, नरेश दवे योगेश दवे व भवेश दवे अपने पिता से मिले सनातन मूल्यों के वाहक है। दीन वंधु दवे जी को कोटि-कोटि नमन और हृदय से श्रद्धांजलि।

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