मयंक गुप्ता की अगुवाई में लोक कल्याण के लिए पूजा-अर्चना
मृत्युंजय सिंह गौतम
जमशेदपुर के कदमा उलियान क्षेत्र में स्थित मां तारा मंदिर का तीसरा स्थापना दिवस रविवार एक सितंबर को मनाया गया। युवा सनातनी और सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने वाले मयंक गुप्ता ने मिताली संघ के साथ मिलकर स्थापना दिवस से जुड़ कार्यों को बखूबी संपन्न कराया।
मयंक गुप्ता और मिताली संघ के सदस्यों को पुजारी उत्तम चटर्जी ने विशेष पूजा-अर्चना कराई।
इनलोगों ने मां तारा से लोक कल्याण और समस्त जनता की सुख-समृद्घि और उन्नति की कामना की। संध्या समय भजन-कीर्तन का भी आयोजन किया गया। सुबह से शाम तक बड़ी संख्या में श्रद्घालु मां के दरबार में पहुंचे। भक्ति में लीन रहे। पूरे समय पूरा इलाका मां तारा के जयकारों से गूंजता रहा।
अब आपको बताने जा रहे मां तारा के बारे में। मां तारा को महाविद्या तारा देवी के रूप में भी जाना जाता है। मां तारा देवी को श्मशान की देवी कहा जाता है. साथ ही यह भी माना जाता है कि वह मुक्ति देने वाली देवी हैं.
बौद्ध धर्म में भी मां तारा की पूजा-अर्चना को बहुत महत्व दिया जाता है.
मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने भी मां तारा की आराधना की थी और, यही नहीं गुरु वशिष्ठ ने भी पूर्णता प्राप्त करने के लिए मां तारा की आराधना की थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां तारा देवी की उत्पत्ति उस समय हुई थी जब समुद्र मंथन से विष निकला तो उसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था.
विष ग्रहण करने के बाद भगवान शिव के शरीर में अत्याधिक जलन और पीड़ा होने लगी थी.
भगवान शिव को पीड़ा से मुक्त करने के लिए मां काली ने दूसरा स्वरूप धारण किया और भगवान शिव को स्तनपान कराया, जिसके बाद उनके शरीर की जलन शांत हुई थी.
तारा देवी मां काली का ही दूसरा स्वरूप हैं.
मां तारा देवी की उत्पत्ति से जुड़ी एक और पौराणिक कथा प्रचलित है. जिसके अनुसार, मां तारा देवी का जन्म मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में चोलना नदी के किनारे पर हुआ था. हयग्रीव नाम के एक दैत्य का वध करने हेतु मां महाकाली ने नील वर्ण धारण किया था. महाकाल संहिता के अनुसार, चैत्र शुक्ल अष्टमी को देवी तारा प्रकट हुई थीं इसलिए यह तिथि तारा-अष्टमी कहलाती हैं और चैत्र शुक्ल नवमी की रात्रि को तारा-रात्रि कहा जाता है.