टुनटुन
जमशेदपुर : रविवार 15 दिसंबर को जमशेदपुर के बागबेड़ा निवासी सुरेश मिश्रा जी का श्राद्धकर्म था. अपनी सनातन संस्कृति के अनुरूप पूरे विधि विधान से कर्मकांड के माध्यम से दिव्य लोक में उनकी पुण्यात्मा को प्रतिष्ठित करने का कार्य विद्वान पंडित कर रहे थे.
उस दौरान बार बार हमारे जेहन में अपने मुहल्ले वाले सुरेश चाचा (सुरेश मिश्रा जी) की याद बरबक्स आ रही थी. समझ नहीं पा रहा था कि उनको लोग आज किस रूप में याद कर रहे होंगे? बागबेड़ा जैसे कस्बाई शहरी चरित्र वाले इलाके में शिक्षा के विकास व समाज की एकजुटता की पहल करने वाले मौन साधक के रूप में, भोजपुरिया संस्कृति को आगे बढ़ाने वाले योद्धा के रूप में या जमशेदपुर के साकची थाना के थाना प्रभारी आनंद मिश्रा के पिताजी के रूप में.
सुरेश मिश्रा जी लंबे समय तक बागबेड़ा में रहे. टाटा स्टील की लंबी सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद कई साल तक वे बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी स्थित अपने मकान में है.
हाल के दिनों में हर उम्र दराज अभिभावक की तरह आनंद मिश्रा के जमशेदपुर के ही कदमा अनिल सुर पथ इलाके के घर पर रहने लगे थे.
वैसे भी एक निश्चित उम्र की सीमा पार कर लेने के बाद अघिकांश लोगों को अपने बनाए घर को छोडक़र बच्चों के साथ रहने की अनिवार्य व्यवस्था को अंगीकार करना ही पड़ता है, आज के मोबाइल क्रांति के दौर में तो यह व्यवस्ता अनिवार्य सी होती जा रही.
खैर. हम वापस आते हैं सुरेश मिश्र जी सुदीर्घ व अनुकरणीय जीवन यात्रा पर. वे बिहार के भोजपुर (आरा) जिले के प्रसिद्ध गांव तेतरयिा (बाघाकुल) के मूल निवासी थी.
आरा के सलेमपुर के पास तेतरिया गांव के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में उनका जन्म हुआ था. आरंभिक शिक्षा दीक्षा गांव व आरा में हुई थी. बाद में टाटा स्टील (तब टिस्को) की नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की थी.
करीब चार दशक तक टाटा स्टील में नौकरी करने के बाद वे रिटायर हुए थे. हालांकि वे टिस्कोकर्मी थे जरूर लेकिन उनके भीतर समाजसेवा को जज्बा हमेशा जिंदा रहा.
वे शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर ज्यादा देते थे. हमेशा कहा करते थे और करने का भी प्रयास करते थे कि शिक्षा के ही जीवन को सही
रास्ता मिल सकता है और समाज के साथ साथ देश का भी विकास हो सकता है.
उनकी इनसी मान्यता से प्रेरित होकर उनके अनुज दिनेश कुमार मिश्रा (डीके मिश्रा)ने आज से करीब आधी शताब्दी पहले बागबेड़ा जैसे कम विकसित इलाके मेें निजी स्कूल का संचालन शुरू किया, उस दौर में इस तरह की पहल बड़ी चुनौती हुआ करती थी. असंभव सी दिखती थी.
तब बागबेड़ा इलाके में स्कूलों की कमी थी. अपने अग्रज सुरेश मिश्रा की मिली प्रेरणा का ही प्रतिफल रहा कि दिनेश मिश्र इलाके में सफल स्कूल संचालनकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित हुए. उनके स्कूल से निकले हजारों छात्र आज सफल जिंदगी जी रहे हैं.
हमने सुना है कि जब सुरेश मिश्रा जी अपने गांव से टाटा के लिए निकले थे तो उनके पिता देवजनम मिश्रा ने सीख दी थी कि टाटा तो जा रहे तो लेकिन अपनी संस्कृति व संस्कार को हमेशा बनाए रखना. नई पीढ़ी को इन्हें आत्मसात करने के लिए प्रेरित करते रहना. वे आजीवन पिता से मिली सीख पर अमल करते रहे.
समाज को एकजुट करने व रखने की पहल के तहत ही बागबेड़ा में ब्राह्मण समाज को एक मंच पर लाने का कार्य संपादित हुआ. सुरेश मिश्रा जी के अनुज डीके मिश्रा इस काम को बखूबी संभाल रहे हैं.
एक अभिभावक के रूप में भी उन्होंने सफल भूमिका निभाई. अपने बाकी दो भाइयों रामविलास मिश्रा व दिनेश कुमार मिश्रा के साथ वे परिवार के संस्कारों को आगे बढ़ाते रहे.
उनके इस निष्काम सेवा का ही सुफल रहा कि उनके पुत्र आनंद मिश्रा, पुत्री अनिता कुमारी व पुत्र अजीत मिश्रा अपने जीवन पथ पर सफलता व खुशहाली के साथ आगे बढ़ रहे हैं.
सुरेश मिश्रा जी को याद करते हुए हमारी समाज के तमाम लोगों से यही विनती है कि दूसरों की भलाई व आपसी एकजुटता के संकल्प के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहने का संकल्प लिया जाए. शिक्षा के विकास व जरूरतमंदों को मदद करने के संकल्प को जीवन के एजेंडे में शामिल किया जाए. अपने सनातनी संस्कृति व सरोकारों को आत्मसाथ करने की सीख नई पीढ़ी को दी जाए. ऐसे करके ही हम सुरेश मिश्रा जी जैसी महान हस्ती को सच्ची श्रद्धांजलि देे सकेंगे,
पुण्यात्मा को सादन नमन.