आचार्य मुन्ना पाठक
अभी पितृ पक्ष या पितरों का पक्ष चल रहा है. इसकी शुरुआत 21 सितंबर से हो चुकी है जिसका समापन 6 अक्टूबर को होगा. वितृपक्ष आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को आरंभ होता है और इसका समापन अमावस्या तिथि को होता है.
पितृ पक्ष में मनोनुकूल श्रद्धा पाने हेतु ही पितर पृथ्वी पर आते हैं। हमारी संस्कृति में पितरों का स्थान देवताओं से भी उच्च है। पितरों की प्रसन्नता के बिना देवता भी प्रसन्न नहीं होते। इसलिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध किया जाना आवश्यक है। अपने देवों, परिवार, संस्कृति और ईष्ट के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त कर उन्हें तृप्त करना होता है।
पितरों के आशीष से धन, ऐश्वर्य एवं सभी सुखोपभोग की प्राप्ति होती है। इसलिए पितृपक्ष में पितरों को सम्मानपूर्वक आह्वान कर बुलाना चाहिए और खीर-पूड़ी, मधु मिश्रित अनेक स्वादिष्ट पकवानों से उन्हें तृप्त करना चाहिए।
कहते हैं पितरों के आशीर्वाद देवताओं से भी अधिकप्रबल होते हैं। अत: श्राद्ध पक्ष में विधि-विधान के साथ पितरों को तुष्ट करना ही प्रमुख ध्येय होना चाहिए। इस ध्येय के फलस्वरूप ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिससे प्रसन्न होकर वे अपनी संतानों को आशीर्वाद देते हैं। पितरों के आशीष से धन, ऐश्वर्य एवं सभी सुखोपभोग की प्राप्ति होती है।
इसलिए पितृपक्ष में पितरों को सम्मानपूर्वक आह्वान कर बुलाना चाहिए और खीर-पूड़ी, मधु मिश्रित अनेक स्वादिष्ट पकवानों से उन्हें तृप्त करना चाहिए। स्वादिष्ट भोजन से तृप्त हुए पितर अपने पुत्र-पौत्रों को दीर्घायु, आरोग्य, धन-धान्य से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद देते हैं। अपनी पीढ़ी के स्वजनों द्वारा किए जाने वाले तर्पण-अर्पण की इच्छा से वशीभूत होकर आसक्तिवश पितरों की आत्मा मोक्ष पाने के लिए खिंची चली आती है। यह पितृसत्ता लालायित रहती है अपनी संतान को आशीष देने एवं उन्हें हर समय प्रसन्न देखने के लिए। ऐसे में जो श्रद्धारूपी श्राद्ध करता है उसे पितृ प्रसन्न हो आशीर्वाद देते हैं। तर्पण से पितरों को शांति मिलती है और पिंडदान से मुक्ति। अत: जो हमारे जो स्वजन सशरीर अब हमारे बीच नहीं है उनकी तृप्ति और संतोष के लिए शुभ संकल्प और श्रद्धापूर्वक तर्पण करना सबसे जरूरी है तभी पितृ प्रसन्न होते हैं।