राधेश्याम जी जवानपुरिया : सनातन संस्कारों के वाहक, धर्म के पुरोधा

Share this News

चंद्रदेव सिंह राकेश

हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का 14 अक्टूबर शनिवार को समापन हो रहा है। मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है। सनातन सिंधु परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।

ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि. तो हम आज राधेश्याम जी जवानपुरिया को याद कर रहे हैं दो आजीवन सनातन संस्कारों को नई पीढ़ी में आगे बढ़ाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहे और धर्म ध्वजा को लहराते रहने के लिए हर जतन करते रहे.

अब बात राधेश्याम जी द्वारा नई पीढ़ी को दिए संस्कारों की. वे साकची पलंग मार्केट सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति के लाइसेंसी हुआ करते थे. भव्य तरीके से पूजा का आयोजन कराने में बढ़चढक़र इंतजाम कराते थे. महासप्तमी, महाअष्टमी व महानवमी को हजारों लोगों के लिए भोग की व्यवस्था करता थे. भोग ग्रहण कराने को लेकर उनकी श्रद्धा का आलम यह था कि पूजा से कई दिन पहले हजारों लोगों को इसलिए लिए नि:शुल्क कूपन उपलब्घ करा देते थे ताकि भोग प्राप्त करने में, भीड़ की वजह से, दिक्कत नहीं हो.

उनके दिए संस्कारों की बानगी दिखी जमशेदपुर के साकची स्थित न्यू कालीमाटी रोड उस प्रतिष्ठान में जिसकी स्थापनी राधेश्याम जी ने की थी और जिसका संचालन उनके दोनों सुपत्र लोकेश व अंकुश कर रहे हैं. पूजा प्रारंभ होने में अभी चार दिन बाकी हैं. लेकिन लोकेश व अंकुश, अपने पिताजी की तरह, अभी से भोग का कूपन आम लोगों को प्रदान कर रहे हैं. साथ ही आदर से साथ आने का निवेदन भी कर रहे. राधेश्याम जी के दोनों पुत्रों का सेवा भाव देखकर याद सहसा याद आ गया कि दुनिया को छोडक़र अनंत यात्रा जानेवाले भले कभी लौटकर नहीं आते लेकिन उनके नेक कर्म हमेशा याद आते हैं. लोकेश व अंकुश जिस श्रद्धा व आदर के साथ नि:शुल्क भोग कूपन बांट रहे थे, वह दृश्य देखकर बार-बार याद आ रहे थे राधे श्याम जी जवानपुरिया.

वास्तव में आज उनका विराट व्यक्तित्व जेहन में बारबार उतर आ रहा. समाजसेवा के प्रति पूरा समर्पण, धर्म के प्रति अटूट आस्था और राष्ट्र के प्रति शत प्रतिशत कर्तव्य पालन की भावना रखने वाले राधेश्याम जवानपुरिया जी का जीवन संसार इतना व्यापक था कि उसे शब्दों में सहेजना बहुत कठिन है.

मदद मांगने पर निराश नहीं करते

संघ की विचारधारा में रचे बसे रहने के कारण राष्ट्र और समाज के विकास के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. प्राकृतिक आपदा हो या व्यक्तिगत समस्या कोई भी अगर मदद मांगने उनके पास पहुंच जाता था तो निराश होकर नहीं लौटता था. यह गुण उन्हें अपने माता-पिता से विरासत में मिला था और बिना किसी प्रचार-प्रसार के इस संस्कार वे आगे बढ़ाते रहे. राजनीति में भी उनकी अच्छी समझ थी.

भारतीय जनसंघ से जुड़ाव

भारतीय जनसंघ जो अप्रैल 1980 में भारतीय जनता पार्टी के नाम से नए राजनीतिक दल के रूप में सामने आया, से भी उनका गहरा जुड़ाव था. राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत रहने के कारण ही अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में भी उन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और मंदिर निर्माण के आंदोलन में जेल यात्रा के भी पथिक बने थे.

राम मंदिर आंदोलन में गये जेल

राम मंदिर आंदोलन के दौरान जेल में वे विश्व हिंदू परिषद के शीर्ष नेतृत्व के साथ रहे. लिहाजा उनका संपर्क और सोच का स्तर और व्यापक रहा. उसके बाद से वे लगातार राम मंदिर के लिए काम करते रहे. कारोबार का गुण तो उन्हें ईश्वर प्रदत्त पूर्वजों के संस्कारों से मिला था. लेकिन कारोबार भी वे एक सिद्घांत के साथ करते थे. ग्राहकों को भगवान का दर्जा देते थे और गुणवत्तापूर्ण सामग्री उचित कीमत पर मुहैया कराते थे. वे कहा करते थे रोजगार तो जीवनयापन का एक जरिया भर है. भगवान इतना दे देते हैं जितना आवश्यकता होती है. गलत तरीके से कमाया गया पैसा कई मुसीबतों को साथ लेकर आता है. लिहाजा इससे परहेज करना चाहिए.

कई संस्थाओ से रहा जुड़ाव

राधेश्याम जवानपुरिया जी की धर्म के प्रति आस्था का ही परिणाम रहा कि वे साकची बाजार दुर्गापूजा कमेटी के लाइसेंसी रहे और इसकी कमेटी में वर्षों तक विभिन्न पदों पर रहकर सेवा करते रहे. मारवाड़ी सम्मेलन की साकची शाखा के रूप में उन्होंने संगठन को मजबूत करने के कई कदम उठाए थे.

26 दिसंबर 1948 को जन्मे राधेश्याम जवानपुरिया जी के सेवा भाव का अक्श लावारिश लाश दाह संस्कार समिति के कार्यों में भी दिखता रहा. उनका मानना था कि जिसका कोई नहीं यदि उसके लिए कुछ किया जाए तो भगवान इसे जरूर देखते हैं. वे राजस्थान मैत्री संघ, सिंहभूम जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन, सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, राजस्थान सेवा सदन अस्पताल, पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन, साकची थाना शांति समिति, फर्नीचर विक्रेता संघ समेत अनेक संगठनों और संस्थाओं से जुड़े रहे. इन संस्थाओं की गतिविधियों में वे बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते और गलत को गलत कहने में तनिक भी संकोच नहीं करते थे.

आदर्श जीवन मंत्र को अपनाया

जवानपुरिया जी के जीवन का मूलमंत्र यही था कि समाज में कुछ ऐसा कीजिए जो दूसरों के लिए उदाहरण बने और लोग उसे नजीर के रूप में देखें. तभी तो जीवन सही अर्थों में अपना प्रभाव डाल सकेगा. वे ऐसा करने में पूर्णत: सफल रहे.इसीलिए हमारे जैसे अनगिनत मित्रों, शुभचिंतकों और चाहने वालों को वे हमेशा याद आते हैं. तीन साल पहले 9 अगस्त को राधेश्याम जवानपुरिया जी इस भौतिक संसार और नश्वर शरीर को छोडकऱ उस अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए जहां से लौटकर कोई नहीं आता और न ही किसी भी तरह से संवाद की ही गुंजाइश छोड़ता है. हां, अपने नेक कर्मो के जरिए वह दिव्यात्मा बार -बार याद आती है. पितृ पक्ष के अवसर पर अपने आजीज, समाज के सच्चे सेवक और राष्ट्रीय मूल्यों व धरोहर के पैरोकार राधेश्याम जवानपुरिया जी को कोटि-कोटि प्रणाम और विनम्र श्रद्घांजलि.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *