नवरात्र के नौ दिनों में नौ देवियों की आराधना का प्रावधान है। मान्यता है कि नवरात्र में इन देवियों की विधि-विधान से पूजा करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। नवरात्र के नौवें और अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है। माता सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना के साथ ही चैत्र नवरात्र के पर्व का समापन हो जाएगा।
सिद्धियों की देवी है मां सिद्धिदात्री
शास्त्रोक्त मान्यता है की देवी सिद्धिदात्री को सिद्धियों की देवी माना जाता है। देवी सिद्धिदात्री की आराधना से भक्त को सभी सिद्धियों की सहज प्राप्ति हो जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान महादेव ने माता सिद्धिदात्री से कई सिद्धियों की प्राप्ति की थी। देवी की कृपा से ही भोलेनाथ का आधा शरीर देवी का हो गया था। इसलिए शिव को ‘अर्द्धनारीश्वर’ भी कहा जाता है मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वाशित्व ये आठ सिद्धियां हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में इनकी संख्या अठारह बताई गई है।
देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप
सिद्धियों को देने वाली देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत सौम्य और बेहद आकर्षक है। माता चार भुजाधारी है और उनके एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख धारण किए हुए है। देवी का वाहन सिंह है और माता कमल पुष्प पर भी विराजमान है।
देवी सिद्धिदात्री का भोग
देवी सिद्धिदात्री का मनपसंद भोग नारियल, खीर, नैवेद्य और पंचामृत हैं।
देवी सिद्धिदात्री की पूजाविधि
नवमी तिथि को देवी सिद्धिदात्री की आराधना से पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। एक पाट पर माता का चित्र स्थापित करें। माता के सामने दीपक और धूपबत्ती जलाएं। माता का ध्यान करते हुए उनको कुमकुम, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, अबीर, गुलाल, फूल, चूड़ियां, लाल चूनरी, श्रंगार सामग्री समर्पित करें। फल, पंचमेवा, खीर, नारियल का भोग लगाएं। माता की आरती उतारें।
मां सिद्धिदात्री का ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां सिद्धिदात्री का स्तोत्र पाठ
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥