संजय
हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का आज समापन होना है। मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है।
सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।
ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि।
बिहार के बक्सर जिला (तब शाहाबाद) के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत डुमरी गांव में जन्में श्री बैजू कुंवर जी (वैद्यनाथ कुमार) एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने ताउम्र सनातन संस्कारों को आगे बढ़ाने के लिए हर जतन किये।
उन्होंने गांव में खेती-बारी को संभालने की जगह नौकरी करने का इरादा किया और जशेदपुर के केबुल कंपनी (इंडियन केबल इंडस्ट्रीज लिमिटेड) में नौकरी ज्वाइन की। इसके बाद जीवन पर्यंत जमशेदपुर में रहे। उनकी जिंदगी अंतिम कई दशक जमशेदपुर स्थित बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी में बीते।
उनसे मुलाकात तो कुछेक बार हुई लेकिन पहली बार जब उन्हें देखा तब उनके प्रभावी व्यक्तित्व का बोध हो गया। संक्षिप्त बातचीत से ही अहसास हो गया कि हिंदू धर्म में इनकी गहरी आस्था है। संस्कारों में अटूट विश्वास है और ये चाहते हैं कि नई पीढ़ी में भी ये संस्कार रचे बसे। इसके लिए हर अभिभावक को यथासंभव उपक्रम करना चाहिए। संयोग ऐसा कि गायत्री परिवार की रीति-नीति के अनुसार इनके घर में धर्मध्वजा लहराने का काम अनवरत जारी है।
श्री बैजू कुंवर जी ने अपने परिवार में संस्कारों ये दीक्षित करने का जो काम शुरू किया था उसका प्रतिबिंब उनके छोटे बेटे प्रमोद कुमार (टुनटुन) में साफ दृष्टिगोचर नजर आया। जब बैजू बाबू कि उम्र आठवें दशक में पहुंच गई थी तब उम्रजनित बीमारियों ने उन्हें चुनौती देना शुरू कर दिया था। तब हर बुजुर्ग की तरह उन्हें भी घर में किसी मददगार की जरूरत होती थी।
प्रमोद ने अपने पिताजी की दिनचर्या के अनुसार अपना रूटिन तय करने के काम को प्राथमिकता दी। इस क्रम में उनके सामने अपनी नौकरी संचालन से जुड़ी चुनौतियां बड़ा अवरोध बनकर आती रही। लेकिन पिता सेवा को सर्वोच्च कर्तव्य मानने वाले प्रमोद ने इसके आगे बाकी चीजों को दूसरे पायदान पर रखा।
हमने गहराई से महसूस किया कि प्रमोद पिता की सेवा को ही अपना सबकुछ समझते है और अपने जीवन से जुड़ी तमाम चुनौतियों एवं परेशानियों को पिता के आशीर्वाद के भरोसे छोड़ दिया है। एक बड़े मीडिया हाउस से जुड़े प्रमोद ने अपने शानदार करियर के दौरान शहर से तबादले की शर्त पर प्रोन्नति के प्रस्ताव को इसलिए नहीं स्वीकार किया क्योंकि उनके सामने पिता की सेवा को जारी रखना मुश्किल हो जाता। उन्होंने शहर नहीं छोडऩे का फैसला किया। स्पष्ट बता दिया कि पिता की सेवा उनके लिए पहली प्राथमिकता है। दूसरे शहर में जाकर पदोन्नति लेना वे पितृ सेवा के आगे मंजूर नहीं करेंगे।
कमाल देखिए कि प्रमोद ने पिता की सेवा के लिए जो जोखिम उठाया उसकी तत्काल बड़ी कृपा के रूप में क्षतिपूर्ति सामने आई। पहले मीडिया हाउस से ज्यादा बड़ा एक दूसरे मीडिया हाउस ने प्रमोद को अपने शहर में ही अपेक्षकृत बड़े पद पर रहने का ऑफर दे दिया।
यह जीवंत उदाहरण है कि पिता की सेवा का प्रतिफल किस रूप में मिलता है। अभी यह कृपा आगे भी अपनी महिमा दिखाती जा रही है।
श्री बैजू कुंवर जी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उन्होंने जो संस्कार दिए हैं उसे प्रमोद और परिवार के अन्य सदस्य बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं।
निजी कंपनी में नौकरी के बावजूद प्रमोद ने अपनी पिता की जिस तरह से सेवा की शायद उसी का तकाजा है कि नश्वर शरीर त्यागने के बाद भी बैजू बाबू अपने पुत्र और परिवार पर आर्शीवचन बनाए हुए हैं। आरक्षण व्यवस्था के इस कठिन काल में प्रमोद की पुत्री का एनआईटी जमशेदपुर जैसे राष्ट्रीय ख्याति के इंजीनियरिंग शिक्षण संस्थान में दाखिला होना इसकी तस्दीक करता है।
बैजू बाबू का परिवार सुख-शांति के साथ दिन दुनी रात चौगुनी की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है तो निश्ििचत रूप से यह बैजू बाबू और उस परिवार के अन्य पितरों के आशीर्वाद को दर्शाता है।
पितृ पक्ष के इस पावन अवसर पर बैजू बाबू को
सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।