हरगोविंद दास जी दवे : सनातन संस्कारों को आगे बढ़ाया, नई परंपराओं का किया श्रीगणेश

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हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का आज समापन हो रहा है। मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है।
सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।

ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि। श्री हरगोविंद दास जी दवे झारखंड की औद्योगिक नगरी जमशेदपुर में सनातन संस्कारों को विस्तार देने और धर्म ध्वजा को सदैव लहराते रहने के लिए प्रयत्नशील रहने वाले धर्म-समाजसेवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

शहर की प्रमुख सामाजिक संस्था गुजराती सनातन समाज की स्थापना और उसकी भूमिका के विस्तार में इन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। ये शहर की अनेक धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहे उनके बैनर तले दीन-दुखियों की मदद करने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते रहे। विभिन्न धार्मिक आयोजनों के जरिए उन्होंने लौहनगरी में धार्मिक चेतना को नया फलक प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई थी। हरगोविंद दास जी दवे ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। जीवन पथ पर नैतिकता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। मेहनत करके कमाई करने में ही वे विश्वास करते थे और नतीजा देने का काम भगवान पर छोड़ देते थे।

वे 1920 के आसपास जमशेदपुर आए थे और शुरू में मेहनत मजदूरी करके यहां अपना ठिकाना बनाया। गुजरात के निवासी होने के कारण कारोबार की प्रवृत्ति भी उनमें थी इसीलिए उन्होंने जमशेदपुर में भी कारोबार शुरू किया लेकिन बहुत ही छोटे स्तर से। ईमानदारी, मेहनत और समर्पण के बूते इन्होंने धीरे-धीरे अपने कारोबार को बढ़ाया जो कुछ दिनों में एक मुकाम पर पहुंच गया।

18 सितंबर 1984 को जब इनका स्वर्गवास हुआ तब इनके द्वारा छोड़ी गई विरासत अपनी खास पहचान बना चुकी थी।
दवे परिवार आज अपने गौरवशाली विरासत को आगे बढ़ाने को हमेशा तत्पर रहता है।

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