गोपाष्टमी : पर्व व परंपरा के साथ गौ माता के प्रति बड़ा दायित्व भी

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संजय कुूमार

आस्थावान गोभक्त वर्ष पर्यंत जो मां से दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र के रूप में जो कुछ लेते हैं उसी का आभार गोपाष्टमी के दिन व्यक्त करते हैं।

हिन्दू मान्यता में गाय को मां का दर्जा मिला है। इसलिए गाय को गोमाता भी कहा जाता है। गाय का दूध, मां के दूध के सामान ही माना जाता है। जिसके ऋण को चूका पाना संभव नहीं लेकिन वर्षभर में एक दिन ऐसा आता है जब हम अपनी इस मां के प्रति आभार प्रकट कर इनके सामने नतमस्तक होते हैं। वह पावन दिन है गोपाष्टमीका।

यूं तो सभी धर्मों में मां का दर्जा सबसें ऊंचा माना जाता है। मां की पूजा की परंपरा भी काफी पुरानी है, लेकिन हिन्दू मान्यता में गाय को भी मां का दर्जा मिला है।

जन्म देनेवाली मां के अलावा भरण-पोषण करनेवाली गाय को गोमाता कहा जाता है और गोपाष्टमी के दिन इसी मां को पूजने की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। गोपाष्टमी के पर्व पर गोमाता को तिलक, माल्यार्पण और आरती कर भोग लगाया जाता गया। ऐसा करने से सभी कष्टों का नाश होता है और तनाव से मुक्ति भी मिलती है।

कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी को गोपाष्टमी मनायी जाती है। ब्रज में इस महापर्व का काफी महात्म है। शिव की नगरी में साक्षात नंदी का वास है। भारतवर्ष में गाय के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी पूरी भारतीय अर्थ व्यवस्था गायों पर ही निर्भर करती थी। यहां तक कि किसी समृद्धि का आकलन भी गायों से लगाया जाता था। समुद्र मंथन में मां के प्रकट होने से लेकर भगवान कृष्ण का जीवन गौमय रहा।

विज्ञान ने भी पंचगव्य के महत्व को माना है। गऊ माता में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए मात्र गोपूजा से सभी देवी-देवता खुश हो जाते हैं। साथ ही पंचगव्य ग्रहण कर लेने मात्र से मनुष्य की सभी इन्द्रियां शुद्ध हो जाती हैं।

गोपाष्टमी के पर्व पर गोपूजा करने मात्र से सारे कष्टों से मुक्ति के साथ ही मां का आशीर्वाद भी मिलता है। गौ माता में तीनों गुण दैविक, दैहिक, भौतिक विद्यमान होते हैं। अत: यह तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है।

गौ माता के ही परम्परा पूजन से उनकी कृपा प्राप्ति होती हैं जिससे समस्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है। गो मां सदैव कल्याणकारिणी तथा अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली है। इसी कारण अमृततुल्य दूध, दही, घी,जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।

गोपाष्टमी के पावन पर्व पर गाय की विधिवत पूजा की जाती है। जिसमें गौ चरण जाने के पूर्व गौमाता को स्नानकराया जाता है उसके उपरांत गौमाता का श्रृंगार की विभिन्न वस्तुओं, नवीन वस्त्रों व फूल मालाओं से श्रृंगार कर गले में सुंदर घंटी व पैरों में पैजनिया आदि पहनाकर सजाया जाता है। गो माता के सींगों पर चुनड़ी का पट्टा बांधा जाता है। उसके उपरांत विधिपूर्वक रोली चंदन-केसर-अक्षत आदि से गोमाता के ललाट पर तिलक करना चाहिये।

सजाकर सच्चे ह्रदय से गौ माता का मनन करते हुए निम्न मंत्रोपचार करना चाहिए। इसके बाद धूप दीप से गौमाता की आरती की जानी चाहिये। पूजा के बाद हरा चारा, घास, गुड़, फल व पौष्टिक आहार चना-दाल आदि खिलाकर गौमाता की परिक्रमा व साष्टांग दंडवत प्रणाम कर उनकी चरणरज का तिलक मस्तिष्क पर लगा कर सभी परिजनों बंधु-बान्धवों व विश्व कल्याण की मंगल कामना करनी चाहिये, तदुपरान्त अपनी सामयके अनुसार गोमाता के लिये पौष्टिक चारे आदि की व्यवस्था हेतुयथासम्भव दान करना चाहिये।
सायंकाल में गौ चारण से लौटती गौमाता को दंडवत प्रणाम करके मंत्रोच्चार सहित पूजा कर उनकी चरणरज का तिलक मस्तिष्क पर लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।

कपौराणिक मान्यता है कि गोपाष्टमी पर निर्मल मन से गौमाता का विधिवत पूजन करने से गौमाता का आशीर्वाद मिलता है। सभी की मनोकामना पूरी होती है।
(लेखक विश्व हिंदू परिषद की झारखंड इकाई के प्रचार-प्रसार प्रमुख हैं)

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