प्नचुर धन चाहिए तो कुबेर जी को इस दिशा में कीजिए स्थापित

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दिव्येंदु त्रिपाठी

भारत में उत्तर दिशा का नाम लेते ही पर्वतराज हिमालय की ओर सहज रूप से ध्यान चला जाता है. जिसके बारे में महाकवि कालीदास ने ‘हिमालयो नम: नगाधिराज:’ आदि प्रशस्तियां प्रदान की है. हिमालय योगियों, ऋषियों एवं लामाओं की साधना भूमि है.

योगियों के भी योगी महादेव शिव का निवास इसे ही माना गया है. जब शिव की बात होगी तो उनके अनन्य भक्त कुबेर की बात भी अवश्य होगी. वे इसी हिमालय के निवासी एवं यक्षों के राजा माने जाते हैं.

कुबेर उत्तर दिशा के अधिपति

वास्तुशास्त्र में कुबेर को उत्तर दिशा का अधिपति माना गया है. ये धन-संपत्ति के देवता हैं. अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर ये धनादि की प्रचुरता प्रदान करते हैं. इस प्रकार उत्तर दिशा का सीधा संबंध धन-संपत्ति तथा वित्त से है. बशर्ते यह वास्तुशारुत्र के नियमों के अनुसार सुरक्षित और संतुलित हो. वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा को यथासंभव हल्का, खाली तथा नीचा होना चाहिए.

उत्तर दिशा को रखें हल्का

यहां पर यथासंभव कम निर्माण होना चाहिए. वह भूमि बहुत समृद्घि देने वाली होती है जहां की जमीन उत्तर में निम्न और ढलावदार हो. साथ ही अगर पूर्व की भूमि भी ढलावदार हो तो क्या कहना. उच्च तथा नीच के विषय में पूर्व तथा उत्तर में समान नियम लागू होते हैं.

हवा एवं प्रकाश का आगमन हो

उत्तर दिशा से प्रचुर मात्रा में हवा तथा प्रकाश का आगमन होना चाहिए. यदि उत्तर दिशा से हवा-प्रकाश का आगमन घर में नहीं हो रहा हो तो आर्थिक समस्याएं यदा-कदा आती ही रहती हैं. उत्तर दिशा का भारी होना तथा अत्यधिक ऊंचा होना वित्तीय संकट का प्रतीक है. यह मानो कुबेर के आशीर्वाद को जबरन रोकने के समान है. उत्तर दिशा की अपेक्षा दक्षिण अथवा पश्चिम अथवा दोनों का नीचा होना अनेक प्रकार के संकटों का प्रतीक है. इसलिए घर बनाते समय उत्तर दिशा के संदर्भ में काफी सोच-विचार करना चाहिए.

उत्तर की बालकनी से आती समृद्धि
फ्लैट लेते अथवा बनवाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि वहां की उत्तर दिशा प्रकाशयुक्त हो. उत्तर दिशा में बालकनी अथवा टेरेस मिल जाए तो यह आर्थिक समृद्घि देने वाली होगी. उत्तर दिशा में मास्टर बेडरूम नहीं होना चाहिए. कनिष्ठ सदस्यों के कमरे यहां पर हो सकते हैं. यदि उत्तर दिशा में किसी प्रकार का कटाव अथवा बेडौलपन हो तो ऐसा होना आर्थिक कठिनाइयों को जन्म दे सकता है.

उत्तर दिशा में शौचालय ठीक नहीं

उत्तर दिशा में शौचालय की उपस्थिति अत्यंत अशुभ होती है. यह कुबेर के स्थान को अपवित्र करती है. इससे वित्त का दुरूपयोग होता है. लेकिन याद दिला दें कि ईशानकोण एवं पूर्व दिशा के शौचालय इससे भी अधिक हानिकारक होते हैं. उत्तर दिशा में सीढ़ीघर भी वित्तीय स्थिति को दुष्प्रभावित करता है. लेकिन उत्तर दिशा में स्नानगृह, जलप्रवाह अथवा जल भंडारण आदि हो तो इसे बहुत ही अच्छा माना जाता है. यहां का जलस्रोत आर्थिक अथवा व्यापारिक विकास को मार्ग दे सकता है. यहां के रसोईघर का प्रभाव सामान्य रहता है. वैसे यह बहुत अशुभ नहीं होता. यदि रसोईघर वायव्य कोण तथा मध्य उत्तर के बीच में हो तो वह कुछ सकारात्मक प्रभावों वाला होता है. वहां पर यदि भंडार घर हो तो अतिउत्तम.

उत्तर दिशा में भोजन-कक्ष, इंडोरगेम के लिए कक्ष, पूजाघर, फुलवारी, अध्ययन कक्ष, अतिथि कक्ष, कला कक्ष आदि शुभ प्रभावों वाले होते हैं. ऐसा माना जाता है कि घरेलू मुद्रा कोष (तिजोरी) उत्तर दिशा के कमरे में रहे तो धन टिकाऊ साबित होता है. समय के साथ बैंकिंग प्रणली का अब काफी विकास तथा विस्तार हो चुका है. फिर भी तिजोरी के स्थान पर नकदी, आभूषण, डेबिट-के्रडिट कार्ड, बैंकिंग के प्रपत्र आदि रखे जा सकते हैं.
भारतीय ज्ञान की परंपरा में वैवाहिक संबंधों पर काफी चर्चा हुई है. वास्तुशास्त्र में भी इस पर विशेष प्रावधान किए गए हैं. यदि मध्य उत्तर और वायव्यकोण के बीच में प्रेमालाप अथवा शारीरिक संबंधों के लिए कक्ष बनाया जाए तो ऐसे में प्रेम की प्रगाढ़ता उत्पन्न होती है. रतिक्रीड़ा सफल रहती है.

उत्तर दिशा में बेसमेंट रखना सही नहीं
उत्तर दिशा तहखाने अथवा बेसमेंट के लिए उपयुक्त दिशा है ठीक पूर्व की तरह. उत्तर दिशा मुख्य द्वार के लिए बहुत उचित तथा प्रशस्त मानी जाती है. सामान्यत: माना जाता है कि उत्तर में मुख्यद्वार हो तो आर्थिक समृद्घि आती है. कैरियर और व्यापार में सफलता प्राप्त होती है. इस विषय में एक उपयोगी सूत्र है. उत्तर दिशा की लंबाई को नौ बराबर-बराबर भागों में बांटे. फिर पूर्व दिशा से तीन भाग छोडक़र बीच के तीन भाग को मुख्यद्वार के लिए प्रशस्त माना जाता है.
इन्हें क्रमश: भुजंग द्वार, सोमद्वार तथा भल्लात द्वार कहा जाता है. यदि आपके घर का मुख्य द्वार बिल्कुल यहीं कहीं है तो बहुत अच्छी बात है. उत्तर के अन्य द्वार भी खराब नहीं होते.
अन्य दिशाओं की भांति उत्तर दिशा को भी तीन भाग में बांटा जा सकता है- व्यापक, संपूर्ण तथा मुख्य. उत्तर दिशा की लंबाई को नौ भागों में बांटा जाए तो ये सारे भाग सम्मिलित रूप से व्यापक उत्तर कहलाएंगे. बीच के तीन भाग को मुख्य उत्तर एवं दोनों कोणों को छोडक़र बीच के सात भाग को संपूर्ण उत्तर कहा जाता है. उत्तर दिशा से संबंधित लिखे गए सारे तथ्य कोणों पर लागू नहीं होते वे बीच के सात भागों पर ही लागू होते हैं.
उत्तर दिशा के देवता कुबेर तथा संबंधित ग्रह बुध है. यदि उत्तर दिशा में कोई भीषण वास्तु दोष हो तो कुबेरोपासना एवं बुधग्रह की शांति की दिशा में प्रयास करना चाहिए. गणपति की पूजा से भी उत्तर दिशा के दोष कम होते हैं.

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