टुनटुन कुंवर
जमशेदपुर/बक्सर : समाजसेवी व बक्सर की माटी के लाल बिपिन बिहारी कुमार जिन्हें लोग नन्हक कुंवर के रूप में जानते और पहचानते थे अब इस दुनिया में नहीं रहे. जमशेदपुर के गोविंदपुर में रहने वाले नन्हक कुंवर का 77 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. वे अपने पीछे भरा-पूरा परिवार समेत शुभ चिंतकों और चहेतों की लंबी श्रृंखला छोड़ गए हैं.
अपने मिलनसार स्वभाव, मृदुवचन व मजाकिया अंदाज से वे अपरिचित को भी अपना मुरीद बना देने वाले कुंवर का जन्म बिहार के ऐतिहासिक बक्सर जिले के डुमराव अनुमंडल अंतर्गत सिमरी थाना के तख्त गांव डुमरी में हुआ था. इस गांव को लोग साहु के डुमरी के रूप में भी जानते हैं.
नन्हक कुंवर के व्यक्तित्व में समाजसेवा का गुण गांव की माटी से ही मिला था. बक्सर जिले में समाजसेवा के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य के लिए डुमरी को खास पहचान हासिल है. डमुरी निवासी समाजसेवी धरीक्षणा कुंवर ने आज से 100 साल पहले अपने गांव, डुमरांव और बक्सर समेत अनेक स्थानों पर समाजसेवा की जो लौ जलाई वो सदियों तक प्रज्ज्वलित रहेगी. डुमराव का डीके कॉलेज इसका एक सजीव उदाहरण है.
नन्हक कुंवर में समाजसेवा के प्रति लगाव अपने गांव की इसी मिट्टी से पनपा. आरंभिक पढ़ाई लिखाई गांव में हुई. बाद में रोजगार के लिए जमशेदपुर आए और टाटा मोटर्स में नौकरी ज्वाइन की. बाद में टाटा हिटैची में उनका तबादला हो गया. इसी कंपनी से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया.
कंपनी से अवकाश के बाद वे पूरी तरह समाजसेवा को समर्पित हो गए. धार्मिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे लेकिन अपने बक्सर और अपने भूमिहार समाज में उनकी पहचान इनसाइक्लोपीडिया जैसी थी. गांव से लेकर जमशेदपुर तक की हर छोटी-बड़ी जानकारी उन्हें कंठस्थ थी.
डुमरी के जमशेदपुर में निवास करने वाले सैकड़ों लोगों के बारे में वे पूरी जानकारी रखते थे. भूमिहार समाज के इतिहास से लेकर वर्तमान तक के सफर पर उनका पूरी पकड़ थी.
जब स्वामी सहजानंद सरस्वती अपने किसान आंदोलन के क्रम में सिमरी क्षेत्र में सक्रिय रहा करते थे तब कम उम्र होने के बावजूद नन्हक कुंवर ने उसमें अपनी भागीदारी निभाई थी और उनकी कथनी और करनी पर स्वामी सहजानंद सरस्वमी के विराट व्यक्तित्व का जबरदस्त असर आजीवन रहा.
आज की नई पीढ़ी को जब भी बक्सर, डुमरी या भूमिहार समाज से जुड़ी कोई पुरानी या नई जानकारी जुटानी रहती थी तो वे सीधे उनसे ही संपर्क किया जाता था.
अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज और परंपरा के भी व गहरे जानकार थे. इनसे जुड़ी बारीक से बारीक जानकारी भी वे सेकेंड भर के अंदर बता देते थे. यही कारण रहा कि जब मानगो के स्वर्णरेखा नदी के भुईयांडीह घाट पर जब उनका अंतिम संस्कार हो रहा था तो उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे लोगों के सैलाब के बीच हर किसी की जुबां से यही वाक्य सुनने को मिल रहा था कि अब बक्सर, डुमरी और भूमिहार समाज की किसी संदर्भ जानकरी की आवश्यकता पड़ेगी तो किससे पूछा जाएगा?
इनसाइक्लोपीडिया के समान किसी के नन्हक भईया, किसी के नन्हक चाचा और किसी के नन्हक बाबा तो अब इस दुनिया में रहे नहीं. इनसाइक्लोपीडिया वाला उनका गुण अब कहां मिलेगा.
उनके चार पुत्रों, धीरज कुमार, संतोष कुमार, नीरज कुमार, और पंकज कुमार के ऊपर उनकी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है. ईश्वर की कृपा देखिए कि उन्होंने कामदा एकादशी के दिन अंतिम सांस ली. टाटा मोटर्स कर्मी उनके बड़े पुत्र धीरज पिता से गहरे रूप से जुड़े रहे हैं और वे चाहते हैं कि पिताजी जो विरासत छोड़ गए हैं उसे उनके भाई समाज-परिवार के सहयोग और समर्थन से आगे बढ़ाएं. उनके दूसरे पुत्र नीरज अहमदाबाद के प्रसिद्घ ताज होटल में कार्यरत हैं. तीसरे बेटे संतोष जमशेदपुर में कारोबर करते हैं और सबसे छोटे और चौथे पुत्र पंकज मुंबई में फैशन डिजाइनर हैं.
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