दिव्येंदु त्रिपाठी
एकरसपन को तोडऩे, मन में गतिशिलता लाने तथा दर्शनीयता की दृष्टिï से घर तथा कमरों के रंगीन होने का अपना अलग ही महत्व है. रंगों का हमारे तन और मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. रंगों के माध्यम से रोगों का इलाज भी किया जाता है.
जैन धर्म साधना के क्रम में विभिन्न रंगों पर ध्यान केंद्रित करने की एक विशिष्टï प्रक्रिया का विस्तार है. इसे लेश्या-साधना कहते हैं. आचार्य तुलसी एवं महाप्रज्ञ जैसे विशिष्टï विद्वानों ने इसकी व्यापक चर्चा अपने पुस्तकों में की है.
भारतीय देवी-देवताओं का भी रंगों से विशिष्टï संबंध है जैसे गणपति का सिंदूरी रंग, विष्णु का नीला रंग, तारा का गहरा नीला रंग, त्रिपुर सुंदरी का बालरवि वर्ण, शिव का कपूर के सदृश, सरस्वती का श्वेत रंग आदि-आदि. ग्रहों के भी अपने-अपने विशिष्टï रंग हैं जैसे मंगल का रंग लाल, बुध का रंग हरा आदि-आदि. अंक विज्ञान में प्रत्येक अंक के अपने-अपने रंग बताए गए हैं.
जब सर्वत्र रंग की इतनी महिमा है तो भला वास्तुशास्त्र क्यों अछूता रहे. वैसे वास्तुशास्त्रीय ग्रंथों में रंगों पर सीधे-सीधे प्रकाश नहीं डाला गया है. मगर चीनी वास्तु विद्या फेंगुशुई में इस पर विशेष प्रकाश डाला गया है.
वास्तुशास्त्र का ज्योतिष से संबंध होने तथा अंक विद्या, टैरोकार्ड, फेंगुशुई आदि के प्रभाव को साम्प्रतिक वास्तुविदों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है.
फेंगुशुई में प्रत्येक दिशा के अपने विशिष्टï तत्व बताए गए हैं. उन तत्वों से संबंधित रंगों पर प्रकाश डाला गया है. प्रत्येक दिशा की सक्रियता तथा शक्ति को बढ़ाने के लिए विशिष्टï प्रकार के रंगों का इस्तेमाल किया जाता है.
फेंगुशुई के मुताबिक ईशानकोण (उत्तर-पूर्व) को सक्रिय करने के लिए पीले तथा मटमैले रंग का इसतेमाल करना चाहिए. इसके अतिरिक्त लाल तथा नारंगी रंग का भी प्रयोग यहां पर हो सकता है. यी नियम नैऋत्यकोण में भी लागू होता है. अर्थातïï् यहां पर भी पीले तथा मटमैले रंग के इस्तेमाल से यहां की सक्रियता बढ़ती है.
उत्तर दिशा की सक्रियता को बढ़ाने के लिए नीले तथा काले रंग का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. साथ ही यहां पर सफेद और रूपहले रंग का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. वाव्यकोण का रंग है सफेद तथा रूपहला. पश्चिम दिशा में सफेद तथा सलेटी रंग का व्यवहार किया जा सकता है. साथ ही यहां पर पीले रंग का व्यवहारन् भी हो सकता है. दक्षिण दिशा में लाल तथा नारंगी रंग का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. साथ ही यहां पर हरे रंग का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए. पूर्व दिशा के लिए सक्रियताकारक रंग है हरा. आग्नेयकोण तथा पूर्व दोनों के लिए नीले रंग का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
रंग चाहे कोई भी हो लेकिन गाढ़ेपन से भरसक बचने का प्रयास करना चाहिए. गाढ़ापन आंखों को गड़ता है, प्रारंभ में भले ही अच्छा लगे.
दिशाओं से संबंधित नकारात्म रंग भी हैं. जिस दिशा के लिए जो रंग नकारात्मक होता है, उस रंग का उस दिशा में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. जैसे पूर्व दिशा और अग्निकोण में सफेद और रूपहले अथवा सलेटी रंग का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. उत्तर दिशा में लाल नारंगी और मिलते-जुलते रंग का व्यवहार नहीं करना चाहिए. दक्षिण दिशा के लिए नकारात्मक रंग है नीला और काला. पश्चिम दिशा के लिए नकारात्मक रंग है लाल तथा नारंगी.
स्थान और व्यवहार के मुताबिक भी रंगों का चयन
स्थान और व्यवहार के मुताबिक भी रंगों का चयन करना चाहिए. किचेन में लल, पीला, कत्था, क्रीम, हरा आदि ठीक रहता है. डायनिंग स्पेस में भी इन्हीं रंगों का इस्तेमाल करना चाहिए. पूजाघर में पीला, नीला तथा सफेद बेहतर रहता है. ड्राइंग रूम में पीला, क्रीम, आसमानी, गुलाबी, कॉफी आदि बेहतर रंग है. बाथरूम तथा शौचालय में दिशा के ही मुताबिक ग्रे, भूरा, लाल, हरा आदि का व्यवहार होना ठीक रहता है.
राशि के मुताबिक भी रंगों का इसतेमाल
आजकल अपनी राशि के मुताबिक भी रंगों का इसतेमाल किया जाता है लेकिन ऐसा व्यक्तिगत कक्ष अथवा निजी शयनगृह में करना अधिक ठीक रहता है. पहले यह तय करना चाहिए कि लग्न तथा राशि में सबल कौन है.
लगन अधिक महत्वपूर्ण होता है. यदि राशि लग्न के छठे, आठवें तथा बारहवें भार में पड़ती हो तो राशि के रंग का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. अन्यथा राशि तथा लग्न दोनों के मुताबिक रंग का इस्तेमाल हो सकता है.
लग्न के मुताबिक रंग का व्यवहार करना ही अधिक बेहतर होता है. राशि के सबल होने का तात्पर्य है कि चंद्रमा क्षीण न हो तथा राशि का स्वामी संबल हो.
यदि लग्न अथवा राशि मेष या वृश्चिक हो तो लाल के हल्के रंग का इस्तेमाल हो सकता है1 साथ ही पीला, क्रीम तथा सफेद भी बेहतर है. यदि लग्न या राशि वृष या तुला हो तो सफेद, हल्का गुलाबी, नीला तथा हल्का हरा शुभ है.
मिथुन राशि में हरा तथा गुलाबी. कर्क में सफेद, चांदनी, हल्का पीला तथा नारंगी. सिंह में गाढ़ा गुलाबी, नारंगी तथा पीला. यदि राशि कन्या हो तो हरा, हल्का पीला तथा गुलाबी रंग बेहतर होता है.
यदि राशि या लग्न धनु हो तो पीला, क्रीम, नारंगी शुभ रंग होता है. यदि लग्न अथवा राशि मकर हो ता नीला, सफेद तथा हरा शुभ रंग होता है. यदि लग्न या राशि कुंभ हो तो हल्का नीला, सफेद, हल्का गुलाबी तथा हरा रंग शुभ प्रभाव देता है. यदि लग्न अथवा राशि मीन हो तो इसके लिए बेहतर रंग है, पीला, क्रीम, सफेद, नारंगी और लाल.
लग्न या राशि के मुताबिक रंगों का चयन व्यक्तित बेडरूम, ऑफिस अथवा केबिन में किया जाना चाहिए. शेष स्थानों के रंग का चयन करते समय दिशाओं से संबंधित रंगों को ही अधिक महत्व देना चाहिए.
कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति को किसी विशेष रंग से लगाव होता है तथा वह उस रंग को शुभ एवं भाग्यशाली मानने लगता है भले ही वह रंग उसकी राशि अथवा लग्न से मेल न खाती हो. ऐसा संभवत पूर्वजन्म की प्रबल राशि-स्थिति के कारण होता है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति को इस रंग का इस्तेमाल निश्चित रूप से करना चाहिए.
ऐसा करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं. इस स्थिति में किसी सैद्घांतिक मानदंड की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए. रंगों के चयन में पारस्परिक सहमति भी एक विशेष मुद्दा है. विशेषकर बेडरूम के रंग में पति-पत्नी के बीच सहमति होनी चाहिए. कहीं ऐसा न हो बेडरूम का रंग एक को अच्छा लगे तथा दूसरे की आंखों में गड़े. यदि पत्नी के राशि-लग्न के मुताबिक रंग का तालमेल न हो पाए तो दिशा के मुताबिक रंगों का इस्तेमाल करना ही अधिक बेहतर रहता है.