औद्योगिक नगरी जमशेदपुर की पहचान लघु भारत यानी मिनी इंडिया के रूप में भी रही है. हर प्रांत और समाज की संस्कृति के दर्शन होते रहे हैं.और हर समाज में ऐसी विभूतियां भी होती रही है जो समाज में भाईचारा व एकजुटता के लिए हमेशा प्रयास करती रही. शहर के सामाजिक जीवन, खासकर भोजपुरिया समाज, में एक ऐसी ही हस्ती थे भारद्वाज ओझा. करीब चार दशक तक जमशेदपुर में रहे और उस दौरान गीत संगीत और गवनई- बजनई के जरिए वे जमशेदपुर के भोजपुरिया समाज में भाईचारा व एकजुटता का भाव बढ़ाते रहे.
बिहार के बक्सर जिले के खरहाटाण गांव में जन्में भारद्वाज ओझा ने स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद टाटा की ओर रुख किया. तब उनके फूफा आर एस पांडे टाटा कंपनी के एक आला अधिकारी हुआ करते थे. फुआ राधिका देवी की प्रेरणा से भारद्वाज ओझा ने टाटा कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली और इसके साथ ही शुरू हुआ उनका सामाजिक जीवन.
कंपनी की ड्यूटी के बाद वह पूरी तरह से गीत संगीत मे रम जाते थे. अक्सर हर दिन शहर के किसी न किसी इलाके में गवनई बजनई या गीत सगीत का कार्यक्रम कराते थे. इस क्रम में तब के प्रसिद्ध भोजपुरी गायकों को भी जमशेदपुर में बुलाकर प्रस्तुति दिलाते थे.
उस जमाने में भोजपुरी गायकों को ब्यास उपनाम से पुकारा जाता था, बच्चन मिश्रा, वीरेंद्र सिंह, गायत्री ठाकुर , लल्लन यादव, राधा किशन यादव , राम इकबाल और तिलेश्वर जैसे गायको या कलाकारों को उन्होंने कई बार जमशेदपुर में बुलाया था.
जाने-माने भोजपुरी गायक भरत शर्मा ने जब गायकी की शुरुआत की थी तब भारद्वाज ओझा ने ही नहीं उनका पहला कार्यक्रम जमशेदपुर में कराया था, भरत शर्मा ओझा जी के जवारी है.
साकची में कंपनी के फ्लैट में रहने से पहले भारद्वाज ओझा बागबेड़ा में रहा करते थे, वहां उनकी मंडली सजा करती थी .1970 में उन्होंने आरपीएफ मैदान में जन्माष्टमी के अवसर पर दुगोला कार्यक्रम की शुरुआत की थी उस जमाने में हजारों लोग इसे देखने सुनने के लिए उमड़ते थे. बागबेड़ा में रामलीला के आयोजन में भी उनकी अहम भूमिका रहती थी.
गीतकार और गायक नगीना पांडे उनके गहरे मित्र थे. प्रसिद्ध तबला वादक दयानाथ उपाध्याय उन के सानिध्य में कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे=
भारद्वाज ओझा गीत संगीत को सामाजिक रुप से मिलने जुलने का एक अवसर मानते थे और उन्हें लगता था कि इसतरह के आयोजन से समाज में भाईचारा बढ़ता है और एकजुटता की भावना विकसित होती है.इसीलिए करीब 40 साल तक जमशेदपुर में रहने के बाद 1994 में जब उन्होंने अपने गृह जिला मुख्यालय बक्सर को नया ठिकाना बनाया तब जमशेदपुर छोड़ते समय उनके चेहरे पर संतोष का भाव था.
उन्हें गर्व था कि जिस विश्वास के साथ उन्होंने भोजपुरिया समाज को एकजुटता के सूत्र में संगीत के जरिए बांधने का प्रयास किया वह पूरी तरह सफल रहा. उनके जैसे भोजपुरी प्रेमियों के योगदान की बदौलत ही जमशेदपुर में भोजपुर, भोजपुरी और भोजपुरिया को एक ऐसी ताकत मिली जिसकी बदौलत समाज के हर क्षेत्र में आज भी इनकी धमक और चमक देखी सुनी जा सकती ह बक्सर में रहते हुए भी भारद्वाज ओझा गीत संगीत में रमे रहे.
उनके सौभाग्य का कमाल देखिए कि बक्सर में भी उनका आवास उसी स्थान पर बना जहां पर अपने जमाने के प्रख्यात लोक नर्तक चाईं ओझा रहा करते थे. ईश्वर ने बक्सर में भी भारद्वाज ओझा की मंडली सजा दी और वे जमशेदपुर की तरह ही महर्षि विश्वामित्र की नगरी में भी कार्यक्रम आयोजित कर भोजपुरी के नए कलाकारों को आगे बढ़ने का रास्ता बनाते रहेआज के जमाने के प्रख्यात भोजपुरी गायक विष्णु ओझा जी कभी बक्सर में उनके कार्यक्रमों में नवोदित कलाकार के रूप में शामिल हुआ करते थे.
खुशी की बात है उनके जेष्ठ पुत्र डॉ दिलीप कुमार ओझा भी उन्हीं की तरह सामाजिक रूप से सक्रिय हैं और भोजपुरी को आगे बढ़ाने में शिद्दत से जुटे हुए हैं
सनातन हिंदू डॉट कॉम परिवार की ओर से स्वर्गीय भारद्वाज ओझा जी को कोटि कोटि प्रणाम व विनम्र श्रद्धांजलि.