शिवपूजन सिंह : स्वर्ग लोक से कर रहे पुत्र बढ़े पिता के धरमे की उक्ति को चरितार्थ

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भोजपुरी में एक प्रसिद्ध कहावत है खेती उपजे अपना करमे, पुत्र बढ़ पिता के धरमे यानी खेती में उपज अपने कर्मों की बदौलत होती है और पिता के धर्म से पुत्र का विकास होता है. जी, हां। जमशेदपुर के आदित्यपुर निवासी राम दर्शन सिंह यानी आरडी सिंह के सफल जीवन को देखकर सहजा यह उक्ति जेहन में कौंध जाती है.
नर्सिंग व फार्मेसी की शिक्षा के प्रसार प्रसार में शिद्दत से जुडे आरडी सिंह ने शिक्षा दान को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है और आनेवाले दिनों में स्कूल से लेकर उच्च शिक्षण केंद्र की स्थापना की योजना पर शिद्दत से काम कर रहे हैं.
लेकिन आज हमें आपको आरडी सिंह के बारे में नहीं बल्कि उनके दिवंगत पिता शिवपूजन सिंह जी के बारे में बताना है जिनके पुण्य प्रताप व सपनों के अनुसार पुत्र आरडी सिंह शिक्षा के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाए हुए हैं.
दरअसल शिव पूजन सिंह के आदर्श शिक्षक थे. बिहार से रोहतास जिले के कोसेन्द्रा गांव के निवासी शिव पूजन बाबू की गिनती अपने जमाने में पूरे शाहाबाद (आरा) जिले में हुआ करती थी. आज वह जिला भोजपुर, बक्सर, रोहतास व कैमूर में बंट चुका है. शिवपूजन बाबू का गांव के डाकघर रोहतास जिले का कोआथ है जो विक्रमगंज के नजदीक पड़ता है.
अंग्रेजी शासनकाल में बीएससी की ड़िग्री लेनेवाले शिवपूजन बाबू का संकल्प राष्ट्र  निर्माण में भागीदीरा निभाने का था और वे इस काम को शिक्षा के प्रचार के जरिए करना चाहते थे. इसीलिए उन्होंने शिक्षक बनते ही इस मिशन को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया।
शिक्षक की नौकरी उस जमाने में किसी बड़ी चुनौती जैसी हुआ करती थी. वेतन समेत अन्य सुविधाएं बिल्कुल नगण्य लेकिन समाज की अपेक्षाएं बहुत ज्यादा. लोगों को लगता था कि आजादी तो मिल गई लेकिन असली समाज सुधार शिक्षक लोग ही कर सकेंगे.
शिवपूजन बाबू के व्यक्तित्व पर देश की आजादी की लड़ाई की अक्स साफ दिखता था. चरित्र निर्माण पर उनका पूरा जोर रहता था. समय की पाबंदी उनके

व्यक्तित्व की विशेष पहचान बन चुकी थी और अनुशासन के साथ जीने की कला एक आदत. वे स्कूली बच्चों को जीवन में इन मूल्यों व कार्यों को आत्मसात करने की बराबर सीख दिया करते थे.
शिवपूजन बाबू धार्मिक प्रवृत्ति के इंसान थे. गरीबों व जरुरमंदों की मदद उनकी दिनचर्या का हिस्सा हुआ करती थी. वे कथनी व करनी में शतप्रतिशत समानता रखते थे. इसीलिए लोग उन्हें समाज का आदर्श मानते थे.
उनके द्वारा दी गई आदर्शयुक्त शिक्षा का ही प्रतिफल है कि उनसे बढ़े बच्चे जीवन के हर क्षेत्र में सफल रहे.
उनके परिवार पर भी उनके अच्छे कर्मों का प्रतिफल साफ नजर आता है. शिवपूजन बाबू व उनके भाई का परिवार उनके आदर्शों का आत्मसात करते आगे बढ़ रहा है. जीवन जीने के मंत्रों का आत्मसात कर रहा है.  उनका पुण्य प्रताप तो अह सात समंदर पार अमेरिका तक पहुंच गया है जहां उनका पौत्र सौरभ शुभम इंजीनियरिंग  करने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है.
आरा जिले में ऐसे हजारों लोग हैं जिन्होंने शिवपूजन बाबू से शिक्षा के अलावा संस्कार के पाठ पढ़े और उनके बताए -दिखाए रास्ते पर चलकर आज अलग-अलग क्षेत्रों में सफलता का डंका बजा रहे हैं.
शिवपूजन बाबू के शिष्य परंपरा व शिक्षा दान का दायरा और विस्तृत हुआ रहता यदि विधाता ने उन्हें महज 40 साल की उम्र में अपने पास नहीं बुला लिया होता. वैसे भी महान लोग इनकी ही उम्र के आसपास इस धरती पर रह पाते हैं. बात चाहे आदि शंकराचार्य की हो या स्वामी विवेकानंद जी की. इनके अलावे में ऐसे मनीषियों की संख्या लाखों में है जिनका भौतिक जीवन 30-40 साल ही रहा लेकिन इस छोटे से कालखंड में ही समाज का ऐसा भला कर गए जिसे करना सामान्य इंसान के लिए सौ साल का जीवन भी छोटा पड़ जाता है.
वर्ष 2022 के पितृ पक्ष के अंतिम सनातन सिंधु डॉट काम परिवार शिव पूजन बाबू जैसी महान हस्ती को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए  दिवंगत  पुण्यात्मा  को कोटि कोटि नमन करता है.

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