चंद्र देव सिंह राकेश
झारखंड व इससे सटे ओडिशा के इलाकों में डॉ. दिनेश षाडग़ी एक ऐसा नाम है जिसे सियासत के साथ साथ समाजसेवा के क्षेत्र में भी बहुत ही आदर व प्रतिष्ठा हासिल है. राज्य के बंगाल-ओडिशा के सीमावर्ती बहरागोड़ा इलाके की माटी का यह लाल हमारे राजनीतिक स समाजसेवा के आकाश में एक ऐसा चमकता सितारा है जिसपर उन्हें जानने व चाहने वालों को गर्व रहता है. डॉ. षाड़ंगी एक सफल चिकित्सक, समाजेवी, साहित्यसेवी, धर्मसेवी व जन प्रतिनिधि हैं. इनका व्यक्तित्व व्यापक व संपर्कों का दायरा अत्यंत विस्तृत है. 12 फरवरी को इनके जीवन में एक नया अध्याय जुडऩे जा रहा है जब वे अपने सफल वैवाहिक जीवन में शदी की 46 वीं साल गिरह मनाकर इसकी स्वर्णजयंती की ओर प्रस्थान करेंगे. उन्होंने पिछले साल 14 जुलाई को जीवन के 75 वर्ष पूरे करने पर अपना अमृत महोत्ससव मनाया था.
वहुआयामी व्यक्तित्व
जीवन-मरण के गंभीर संकट को मात देकर स्वस्थ होनेवाले चिकित्सक, राजनीतिज्ञ, समाजसेवी, चिंतक, बहुभाषाविद, प्रखर वक्ता डॅा. साहब को की सेवाओं का दायरा काफी विस्तृत रहा है. कभी लालू यादव के करीबी नेता के रूप में उनकी पहचान थी. समाजवादी पृष्ठभूमि से जनता दल होते हुए भाजपा में आए और अपनी लोकप्रियता के बल पर बहरागोड़ा जैसे लाल दुर्ग पर भाजपा टिकट पर जीतकर भगवा लहराया.
नहीं बने परिवारवादी
हालांकि भगवा खेमे में शामिल होने के बावजूद डॉ. साहब ने समाजवाद की अच्छाइयों का कभी त्याग नही किया और ना ही लालू व मुलायम की तरह समाजवाद को छोडक़र घोर परिवारवादी बने. उनके छोटे पुत्र कुणाल षाड़ंगी का राजनीति में तभी पदार्पण हुआ जब इन्होंने अपने आप को सक्रिय राजनीति से अलग कर लिया.
2000 से 2005 का कार्यकाल बेमिसाल
2000 से 2005 का कार्यकाल डॉ. साहब के राजनैतिक जीवन का चरम उत्कर्ष था. बाबूलाल मरांडी की सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री स्वतंत्र प्रभार तथा 2003 में अर्जुन मुंडा की सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर के रूप में स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, चिकित्सीय शिक्षा, अनुसंधान का कार्यभार संभाला था. इनके कार्यकाल में झारखंड की जनता को स्वास्थ्य से संबंधित जो अभूतपूर्व सुविधाएं मिली थीं. ं जो इस पिछड़े राज्य के निवासियों ने सपने में भी नहीं सोचा था. तमाम नये अस्पताल और इमारतें, रिम्स जैसे संस्थान गरीबों और गर्भवतियों केलिए दवाओं के साथ-साथ तमाम सुविधाएं भी मिलीं.
असाध्य रोग चिकित्सा योजना के जनक
डॉ. साहब राज्य में असाध्य रोग चिकित्सा योजना के जनक हैं इस योजना में गरीबी रेखा से नीचे के असहाय गरीबों के लिये असाध्य रोगों की चिकत्सा हेतु एक लाख पचास हजार रुपये दिए जाने का प्रावधान था. सबसे आश्चर्य की बात है कि इन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में शिक्षा के ऊपर उतना ही ध्यान दिया जितना एक शिक्षा मंत्री दे सकता है. तमाम स्कूलों की जीर्ण-शीर्ण इमारतें नयीं बन गयीं. पठन-पाठन के लिए भी तमाम सुविधाएं मिलीं
सरकार ने प्रतिभा का नहीं उठाया फायदा
पहला कार्यकाल समाप्त होने पर दोबारा चुनाव में इन्होंने जीत तो दर्ज की पर झारखंड सरकार ने इनकी क्षमता और योग्यता का पूरा फायदा नहीं उठाया. फिर भी डॉ. साहब अपनी पूरी क्षमता से विकास कार्य करते रहे..
इसी बीच डा. साहब का स्वास्थ्य गिरने लगा था। वो समय भी आया जब चारों ओर घोर निराशा थी, लेकिन तभी चमत्कार हुआ और पुनरनवा (वो बहुपयोगी औषधीय पौधा जो वर्षात के बाद मृतप्राय हो जाता है लेकिन वर्षा ऋतु आने पर दोबारा हरा-भरा हो जाता है) की
तरह दोबारा धीरे-धीरे स्वस्थ हो गये. जीवन के 75 बसंत देखने वाले डॉ. साहब से कुछ दिनों पहले पूछा था कि आप दोबारा समाजसेवा के क्षेत्र में इतने सक्रिय क्यों हैं इतनी गंभीर स्वास्थ्य की समस्याओ को झेलने के बाद भी ? उनका जवाब था कि अब जितना भी जीवन अब बचा है वो देश और समाज को समर्पित कर दूंगा.
12 फरवरी को उनके जीवन का यादगार अवसर है. डॉ. बिनी षाड़ंगी के साथ शादी के 46 साल पूरे हो रहे हैं. उनकी पत्नी भी उनकी तरह की जानी मानी समाजसेविका हैं. सफल चिकित्सक तो वे भी हैं.
डॉ. साहब आपके झारखंड को बहुत उम्मीद है. समाज आपकी सेवाओं का इंतजार कर रहा. जनता का आशीर्वाद आपके साथ है. शादी की स्वर्ण जयंती और भी दमदार तरीके से हमलोग आपके साथ मनाएंगे. हमारी ओर से बहुत-बहुत बधाई व असीम शुभकामाएं.