अमरेंद्र बाबू : नेकी कर दरिया में डाल को बनाया जीवन का मंत्र, लोगों के दिलों पर किया राज

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चंद्रदेव सिंह राकेश

पितृ पक्ष का समापन होने जा रहा. इसके साथ ही अपने लोक से 15 दिनों के लिए धरती पर आयीं दिव्यात्माएं भी शनिवार 14 अक्टूबर को अपने लोक वापस लौट जाएंगी. इस पावन अवधि में सनातन सिंधु डॉट कॉम लगातार ऐसी महान आत्माओं को याद कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन संस्कारों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभायी.

धर्म व सेवा के कार्यो में बढ़ चढक़र हिस्सा लिया और समाज के विकास में जिनका अनुकरणीय योगदान पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया जाता रहेगा. तो इस श्रद्धांजलि श्रृंखला में हम विनम्रता के साथ याद कर रहे अमरेंद्र बाबू को जो जमशेदपुर में रहे तो बहुत ही कम समय तक. लेकिन अपने नेक कर्मों से हर किसी के दिलों पर राज करते रहे.

दरअसल झारखंड की औद्योगिक राजधानी की पहचान रखने वाले शहर जमशेदपुर के बारीडीह की पॉश आवासीय कॉलोनी विजया गार्डन और आसपास के इलाके के लोग अपने हर दिल अजीज अमरेंद्र बाबू को उनके परलोक गमन के बाद भी शिद्दत से याद करते हैं. आज भी लोगों को यह बात समझ में नहीं आयी कि ईश्वर ने अमरेंद्र बाबू को अपने पास बुलाने में इतनी जल्दी क्यों की थी?

वास्तव में अमरेंद्र बाबू का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उनके नहीं रहने पर आज भी हर कोई ऐसी कमी महसूस कर रहा जिसकी भरपाई सहज नहीं. कुछ साल पहले ही विजय गार्डन का निवासी बने थे लेकिन दूसरों की मदद करने के अपने स्वभाव और मिलनसार व्यवहार की बदौलत अल्प समय में ही उन्होंने यहां के सामाजिक ताना-बाना में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा ली थी वे सामाजिक जीवन के अंग बन गए थे.

पावन भूमि बक्सर के लाल

अमरेंद्र बाबू मूल रूप से बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव के रहने वाले थे. उनका पूरा नाम अमरेंद्र कुमार राव था. डुमराव के प्रतिष्ठित परिवार में 19 मई, 1933 को जन्में अमरेंद्र बाबू को सेवा का संस्कार विरासत में मिला था. उन्हें अपने माता पिता जी से यही शिक्षा मिली थी कि जीवन में नेकी कर दरिया में डाल के सिद्धांत पर अमल करते हुए चलने से जीवन सुखमय, शांतिमय और समृद्धिमय रहता है. इस जीवन सूत्र पर अमल कर उन्होंने पाया था कि माता-पिता से जो सीख मिली वह शत-प्रतिशत सही निकली. उनका पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन ऐसा सफल रहा है जिसे देखकर हर कोई रश्क करना चाहेगा.

कोयलांचल में बिताया पेशेवर जीवन

उन्होंने अपना अधिकांश पेशेवर जीवन झारखंड के कोयलांचल धनबाद में बिताया. उन्होंने भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के मानव संसाधन विभाग में काम किया और इस प्रतिष्ठित संगठन के मुख्य कार्मिक प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्त हुए.

मेहनतकश लोगों का रखा ध्यान

नौकरी के मेहनतकश वर्गों के हितों की देखभाल करने के लिए कड़ी मेहनत की और उन लोगों की खातिर अधिकारियों सभी से खरी खरी बात करने से नहीं हिचकते थे. मजदूरों को उनका वाजिब हक दिलाने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते थे. उनके पास जो भी मदद के लिए आता था वह सकारात्मक भाव से ही लौटता था. सामाजिक और धार्मिक कार्यों में भी एक बढ़ चढक़र हिस्सा लेते थे.

सेवानिवृति के बाद जमशेदपुर में बसे

अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वे जमशेदपुर के बारीडीह स्थित विजया गार्डन में आकर रहने लगे. यहां के लोग और आबोहवा का जादू उनके पर इस कदर चला उन्होंने तय कर लिया है कि रिटायरमेंट के बाद का जीवन यही व्यतीत करेंगे.

दामाद के सौजन्य से आये, अपनी पहचान बनाई

शुरुआत में लोगों ने उन्हें विजया गार्डन में ही रहने वाले शहर के प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ और गोलमुरी- बाराद्वारी स्थित श्री विष्णु नेत्रालय के संचालक डॉक्टर विभूति भूषण के ससुर के रूप में जाना लेकिन अपनी सामाजिक सक्रियता लोगों की मदद करने की तत्परता और आसपास के लोगों पर अपने प्यार करने की आदत की बदौलत अमरेंद्र बाबू ने अपनी अलग पहचान बना ली. लोग उन्हें अमरेंद्र बाबू के रूप में जानने, पहचानने और आदर देने लगे. वैसे भी बक्सर की माटी से जुड़े लोग जहां कहीं जाते हैं अपने दमदार व्यक्तित्व के बूते अपनी पहचान बनाने में सफल रहते ही हैं अमरेंद्र बाबू ने भी इसी उदाहरण को चरितार्थ किया था.

प्रभु ने अचानक बुला लिया अपने पास

उनके जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा था समाज के लिए उनका समर्पण भी जारी था सेवा का दायरा भी बढ़ रहा था और सबसे दूर के दूसरे इलाकों में भी वे अपनी सामाजिक सक्रियता बढ़ाने की दिशा में बढ़ रहे थे लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. इसी 6 अगस्त, 2022 को एक संक्षिप्त बीमारी के बाद दिल्ली में उनका निधन हो गया.

आगे बढ़ती रहे विरासत

परिवार के सदस्यों के साथ हमारे जैसे परिचित शुभचिंतक भी अमरेंद्र बाबू के नहीं रहने पर अपने जीवन में शून्य का अहसास कर रहे हैं. एक ऐसे खालीपन के अनुभूति हो रही है जिसका भरना ईश्वर के हाथों में है. पितृ पक्ष में अमरेंद्र बाबू को सादर नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि.

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