चंद्रदेव सिंह राकेश
आज 10 दिसंबर है. जमशेदपुर से दूर हूं. लेकिन आज सुबह से ही मन लौहनगरी व मुसाबनी इलाके में भ्रमण कर रहा . वह महान आत्मा बार-बार याद आ रही जो एक तरह से धर्म हो समाज सेवा का पर्याय थी और हमारे जैसे अनगिनत लोगों ने सीख मिली कि जीवन को सार्थक करना है तो जितना हो सके दूसरों की मदद कीजिए. यह महान आत्मा है धर्म और समाज सेवा के पर्याय रहे छबीलदस जी अग्रवाल की.
वास्तव में बात जब धर्म व समाज सेवा की होती है तो छबीलदस जी बहुत याद आ जाते हैं. लगता है कि हम उन्हीं के सानिध्य में धर्मसेवा या समाज सेवा के किसी प्रकल्प को आगे बढ़ाने में जुटे हैं. लग ही नहीं रहा कि अब अपने नश्वर शरीर के साथ वे हमारे बीच नहीं हैं. अपने अमिट कार्यों से हम हमेशा अपनों के बीच महसूस किए जाते हैं. और रहेंगे भी.
आज के ही दिन निकले थे अनंत यात्रा पर
कहा जाता है कि समय के गुजरने में देर नहीं लगती. यह बिल्कुल सही है. अपने छबील दास जी को ही देखिए. उनके निधन से 12 साल कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला. आज 10 दिसंबर को वे हमें बहुत ही शिद्दत से याद आ रहे. आज ही के दिन वर्ष 2010 को वे उस अनंत यात्रा पर निकल गए थे जहां से कोई लौट कर नहीं आता और न ही किसी तरह के संवाद की गुंजाइश ही छोड़ता है. वह इंसान अपने सत्कर्मों के जरिए देश दुनिया और अपने चाहनेवालों के बीच याद किया जाता है.
समाज को रोशनी दे रहे उनके संस्कार
छबील दास की अग्रवाल की आज 12 वीं पुण्य तिथि है. हम भी उनकी आत्मा को नमन करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. सच कहा जाए तो हमारे अजीज छबीलदास जी अग्रवाल हमारे बीच न होकर भी उस दिशाज्ञान देनेवाली रोशनी की तरह आज भी हमारा पथ प्रदर्शित करते हैं, उनके संस्कारों की पूंजी आज भी समाज सेवा की भावना को संजीवनी प्रदान करती है. उनके बारे में सिर्फ यही कहा जा सकता है –
शत् शत् नमन आपको,
लारवों है प्रणाम।
कर्म ही था जीवन आपका,
कर्म ही था मान।।
वास्तव में छबील दास जी अग्रवाल का है जिन्होंने समाज-धर्म सेवा के दीपक को कस्वाई चरित्रवाले झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के मुसाबनी-घाटशिला इलाके में जलाया लेकिन उस सेवा रूपी दीपक की रौशनी से आज जमशेदपुर जैसा शहर भी प्रकाशवान है.आज छबीलदास जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे उस दिशाज्ञान देनेवाली रौशनी की तरह हैं.उनके सिद्धांत व कर्म आज भी नई पीढ़ी को धर्म-सेवा के लिए प्रेरित करते हैं.
हरियाणा में जन्म, झारखंड कर्मस्थली
छबीलदास जी अग्रवाल का जन्म 11 नवंबर 1936 को हरियाणा के हांसी में हुआ था. माता भूला देवी व पिता जगन्नाथ जी अग्रवाल के साथ हरियाणा से आकर छबीलदास जी ने मुसाबनी में अपना कारोबार आरंभ किया. वह साल था 1952. उन्होंने कारोबार को जीवन का ध्येय न मानकर जीने का एक जरिया भर माना. उनका मानना था कि बहुत किस्मत से मिले इस मानव जीवन को तभी साकार किया जा सकता है जब इंसान खुद को समाज व धर्म सेवा को समर्पित कर दे। छबीलदास जी ने ऐसा किया भी.
अनेक मंदिरों व संस्थाओं के संस्थापक
समाज व धर्म सेवा में उनका नाम व काम विख्यात है. समाज के काम में वे आजीवन सक्रिय रहे. कई मंदिरों समेत अनेक संस्थाओं को स्थापित करने या बढ़ाने में उन्होंने अथक प्ररिश्रम किया. जब वे मुसाबनी इलाके मेें आए थे, तब वह इलाका काफी पिछड़ा हुआ था. उन्होंने शिक्षा के विकास पर ध्यान दिया। उनका मानना था कि शिक्षा ही विकास का रास्ता खोल सकती है. इसलिए सरस्वती विद्या मंदिर व शिशु मंदिर की स्थापना में अहम भूमिका निभाई. धर्म ध्वजा लहराने का संस्कार को उन्हें विरासत में मिला था.
इसीलिए कई मंदिरों के निर्माण या संचालन से लेकर धार्मिक आयोजनाों या तीर्थ यात्राओं को आयोजित कराने में आजीवन बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. वे मुसाबनी के विश्वनाथ मंदिर कमेटी से कई दशक तक जुड़े रहे और मार्गदर्शन करते रहे. मारवाड़ी समाज की एकता व विकास के लिए भी वे सदा तत्पर रहे.अग्रसेन भवन के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि उनसे जो भी मिलता था, उनका अपना हुआ बिना नहीं रह पाता था. वे लोगों को मान सम्मान देना अपना नैतिक कर्तव्य मानते थे और लोग भी दिल से उनका आदर करते थे. विभिन्न संस्थाओं या संगठनों द्वारा उन्हें अपने कार्यक्रमोंं बुलाकर सम्मानित किया जाता था.
धर्मपत्नी से भी मिला भरपूर सहयोग
छबीलदास जी की धर्मपत्नी शांति देवी जी का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिला. वे 26 दिसंबर 1956 को विवाह के बंधन में बंधे थे. उन्होंने अपने पुत्र-पुत्रियों को भी धर्म-समाज सेवा के वही संस्कार दिए जो उन्हें विरासत में मिले थे. उनके संस्कारों की पूंजी से उनके छह पुत्र व दो पुत्रियों की धार्मिक-सामाजिक जीवन यात्रा को संजीवनी मिल रही है.
हमारे जैसे छबील दास के असंख्य शुभचिंतकों को इस बात से संतोष की अनुभूति है कि उनका परिवार उनकी विरासत को आगे बढ़ाने में तन-मन-धन से लगा है.
उनके परिवार के कृष्ण कुमार अग्रवाल, संचालक छबीलदास शांति देवी अग्रवाल सेवा संस्थान, राजेन्द्र कुमार अग्रवाल, बजरंग लाल अग्रवाल, संजय कुमार अग्रवाल, मनोज अग्रवाल, विनय अग्रवाल (पुत्र) रोहित, मोहित, हर्ष, आयुष, आदित्य, अर्णव, केशव (पौत्र ), रिधान, रियान, शौर्य, हर्षिल (प्रपौत्र) समेत समस्त परिजन के मन का भाव यही रहता है :
आपके संस्कारों की पूंजी प्रदान करती
पूरे परिवार की जीवन यात्रा को संजीवनी
आपकी बदौलत है हमारा समूचा अस्तित्व
आपकी आज्ञाओं के सहारे हैं हम सभी
मूंद कर नयन अपने रौशन कर गये पथ हमारे,
मान है अभिमान है हमको, हम हैं निशानी आपकी
अपने छबीलदास जी को उनकी 12 वीं पुण्यतिथि पर शत-शत नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि