ज्योतिषाचार्य डॉ.रमेश कुमार उपाध्याय
सनातन शास्त्रों मे कहा गया है कि- वास्तुशास्त्रप्रवक्षामि लोकनां हित कामया अर्थात वास्तु शास्त्र के माध्यम से लोगों का कल्याण होता है। वास्तु शास्त्र अथर्ववेद से लिया गया है। वास्तु वस् धातु से बना है जिसका अर्थ रहना होता है। इसका तात्पर्य यह है कि हम जहां रहते है, वहां की दिशा सही हो, पंचतत्वों जल, अग्नि, जमीन , हवा और आकाश का संतुलन सही हो। तभी वहां पर निवास करने वाले लोगो को सकारात्मक उर्जा प्राप्त होगी तथा सकारात्मक वातावरण के माध्यम से अपने जीवन को सुखी बना सकते है।
वास्तुशास्त्र धर्म, अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय है अर्थात मिलाजुला रूप है। वास्तु युक्त घर या फ्लैट मे निवास करने से कम परिश्रम मे भी सफलता मिलती है, भाग्योदय होता है, इसके विपरीत वास्तुदोष वाले घर मे रहने से नानाप्रकार की परेशानियां, कलह, विवाद, असफलता, संघर्ष, हर कार्य मे विलंब तथा बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, विवाह व नौकरी- व्यवसाय में संघर्ष और कठिनाई आती है, जिसके कारण घर मे तनाव होता है।
ऐसा अनुभव मे देखा गया है कि किसी जन्मकुण्डली मे अरिष्ट ग्रह की दशा चलरही हो, या गोचर मे पापप्रभाव हो,मार्केश, अष्टमेश आदि का प्रभाव होया जातक वास्तुदोष से युक्त भवन मे रहता हो तो उपरोक्त कुप्रभाव ज्यादा दिखायी पड़ता है।
इसमे निराश न होकर योग्य ज्यौतिषाचार्य से जन्मकुण्डली दिखाकर एवं वास्तुपरीक्षण कराकर एवं उसका उपाय ,जैसे वास्तुपूजन कराकर, ग्रहशांति कराकर हवनादि कार्य करके, शुद्ध और आपके लिये अनुकुल ग्रह का रत्न धारण कर जीवन को सुखमय और सफलता प्राप्त कर सकते है।
कुछ महत्वपूर्ण वास्तुसूत्र-
- घर का मुख्य द्वार किसी अन्य घर के ठीक सामने नही बनाना चाहिये।
- ईशानकोण किसी भी घर का मुख होता है, अत: इस भाग को सदैव पवित्र रखना चाहिए। इधर शौचालय न बनायें। भारी सामान न रखें।
- किसी भी बीम के नीचे बैठने या सोने से या कार्य करने से असफलता और तनाव प्राप्त होता है।
- सीढ़ी के नीचे रसोईघर, पूजागृह और शौचालय नही बनाना चाहिये।
- बच्चों का अध्ययन कक्ष उतर या पूर्व हो, यदि बच्चें उतर या पूर्व की तरफ मुख करके पढ़ाई करें तो एकाग्रता तथा यादाश्त में वृद्धि होती है जिसके कारण वह अधिक सफलता प्राप्त करता है।
- भारतीय ज्यौतिष अध्यात्म परिषद्
शिव सरस्वती सदन, इच्छापुर आदित्यपुर-2, एन आई टी जमशेदपुर ,झारखंड ।