बजरंग लाल जी अग्रवाल: शिक्षा के सारथी, सेवा के दूत

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हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का आज समापन हो रहा है। मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है।

सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।

ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि।

अपने देश में अमूमन यही धारणा देखने को मिलती है कि लोग अपने उत्तराधिकारी को विरासत में धन संपदा छोड़कर जाने में यकीन करते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो चाहते हैं कि उनका उत्तराधिकारी शिक्षा से लैस रहे, संस्कारों का वाहक रहे और अपने पुरुषार्थ की बदौलत जीवन में नई मिसाल कायम करने का जज्बा रखे।

हालांकि इस श्रेणी में लोगों की संख्या बहुत कम होती है। जुगसलाई निवासी स्व. बजरंग लाल जी अग्रवाल इसी श्रेणी के व्यक्ति थे। जमींदार मारवाड़ी परिवार में जन्मे बजरंग लाल जी ने उस जमाने में शिक्षा को पूरी अहमियत दी जब लोग स्कूल-कॉलेज जाने से, किन्हीं न किन्हीं वजहों से, परहेज करते थे। उन्होंने उस जमाने में ज्ञान अर्जित करने के लिए सात समंदर पार अमेरिका की यात्रा की जब मारवाड़ी समाज में लाख खोजने पर विदेश जाने वाला कोई एक व्यक्ति मिलता था। उन्होंने उस जमाने में नौकरी (निजी क्षेत्र में) मैनेजर के रूप में शुरू की जब मारवाड़ी समाज में नौकरी को बहुत मान-सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता था। कुछ इसी तरह के नये रास्ते के गढऩे वाले थे बजरंगलाल जी।

जुगसलाई के प्रसिद्ध गौरी दत्त अग्रवाल जी के परिवार में मातादीन अग्रवाल के पुत्र के रूप में 11 अक्टूबर 1928 को जन्म लेने वाले बजरंग लाल जी बचपन से कुशाग्र थे। जमशेदपुर में स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे कॉलेज की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद चले गए। तब इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पहचान इंग्लैंड के प्रसिद्ध कैंब्रिज विश्वविद्यालय की तरह हुआ करती थी। इलाहाबाद में उन्होंने अपनी प्रतिभा का डंका बजाया। आलम यह रहा कि जब पढ़ाई पूरी कर जमशेदपुर लौटे तो 1955 में अविभाजित बिहार सरकार ने उन्हें अमेरिका में कृषि कार्य के अध्ययन के लिए 18 महीनों के प्रशिक्षण के लिए चयनित कर लिया। तब बिहार से चुने जाने वाले वे एकमात्र युवक थे।

इंटरनेशनल यूथ फॉर्मर एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत उनका चयन हुआ था। तब भारत के सभी राज्यों से एक-एक युवक का चयन किया जाता था। बिहार के तत्कालीन कृषि मंत्री अनुग्रह नारायण सिंह ने भविष्यवाणी की थी कि यह युवक देश का नाम रौशन करेगा। बजरंगलाल जी ने किया भी ऐसा ही। उनकी प्रतिभा का लोहा अमेरिकियों ने भी माना। वहां पर वे एक अमेरिकी किसान परिवार के साथ डेढ़ साल तक प्रशिक्षणार्थी के तौर पर रहे और आधुनिक तकनीक से खेती करने के गुर सीखकर स्वदेश लौटे। उनके सुझाव पर तत्कालीन बिहार सरकार ने कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कई कदम उठाए।

कहा जा सकता है कि कालांतर में हुई हरित क्रांति में कुछ अंश बजरंग बाबू का भी था। उनकी असाधारण प्रतिभा को देखते हुए बिड़ला समूह ने उन्हें नरकटियागंज स्थित अपनी चीनी मिल के फार्म का मैनेजर बना दिया। हालांकि अपने परिवार के मुखिया और चाचाजी मुरली बाबू के निर्देश पर बजरंग लाल जी ने नौकरी छोड़ दी और जमशेदपुर लौट आए।

यहां पर इन्होंने खेती और बागवानी के विकास में अहम भूमिका निभाई। जुगसलाई-बागबेड़ा क्षेत्र में लगाया गया उनका बागीचा बिहार समेत दूसरे राज्यों तक में चर्चित हुआ। बजरंग बाबू शिक्षा में यकीन करते थे। बच्चों में अच्छे संस्कार देने के हिमायती थे। उनका मानना था कि बच्चों को अगर ये चीजें दे दी गईं तो चल-अचल संपत्ति उनके लिए कोई मायने नहीं रखेगा।

अगर बच्चे सपूत निकलेंगे तो सारी चीजें खुद ब खुद कर लेंगे। बजरंग बाबू के परिवत्र भाव का कमाल देखिए कि उनके सभी पुत्र अनिल अग्रवाल, अरुण अग्रवाल, अजय अग्रवाल और आनंद अग्रवाल आज कारोबार की दुनिया में अपनी सफलता का परचम लहरा रहे हैं। सभी भाई इस उदाहरण को चरितार्थ कर रहे हैं कि यदि पिता से शिक्षा, सेवा और संस्कार के गुण विरासत में मिले तो शून्य से शिखर तक की यात्रा की जा सकती है। इसके लिए सिर्फ पिता-पूर्वजों के पुण्य प्रताप का आशीर्वाद चाहिए।

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