अर्जुन ठाकुर : परिवार को संयुक्त रखने के संस्कार कोरोनाकाल में दूसरों के लिए बना अनुकरणीय

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हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का आज समापन हो रहा है। मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है।

सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।

ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि।

मेरे पिताजी के रोम-रोम में सनातन संस्कार भरे हुए थे। टाटा मोटर्स में नौकरी के दौरान उन्हें भारत की विभिन्न संस्कृतियों को देखने-समझने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। वे कई राज्यों के मूल निवासियों के रहन-सहन को काफी पैनी नजर से देखा करते थे।

संयुक्त परिवार में उनका जन्म हुआ था। पले-बढ़े भी उसी माहौल में। उनके मन और मस्तिष्क पर संयुक्त परिवार की खूबियां इस कदर मजबूत थीं कि वे न सिर्फ अपने स्तर से इस परंपरा को मजबूत रखने का ध्यान रखते थे बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते थे।

हम भाईयों सुधीर कुमार, सरोज कुमार, मनोज कुमार, संतोष कुमार और मुकेश कुमार के भीतर पिताजी के ये संस्कार उन्हीं की कृपा से विरासत में मिले हैं। एकल परिवार के बढ़ते चलन के बीच भी हम गर्व से कहने की स्थिति में हैं कि हमारा परिवार आज भी संयुक्त है और पूरी मजबूती के साथ हमलोग इसे आगे बढ़ा रहे हैं। संयुक्त परिवार के फायदे ही फायदे होते हैं।

खुशी मनाने का आनंद अलग तरह का होता है। अगर किसी तरह की परेशानी आती है तो उससे उबरने में भी समय नहीं लगता। संसाधन जुटाना भी आसान होता है।

कोरोना काल में सबने एकल परिवार की कमियों और खामियों को नजदीक से देखा व जाना। इस महामारी के दौर में संयुक्त परिवार हर तरह से फायदेमंद नजर आया। पितृपक्ष की अमावस्या को हमारा पूरा परिवार सिद्दत से पिताजी को याद कर रहा।

हम भाईयों के बाद परिवार में आए नये सदस्यों चीकू, रानी, छोटू, मुस्कान उनकी तस्वीर को देखकर अक्सर उनके बारे में पूछा करते हैं। हम भाईयों में जब भी कोई फुरसत में होता है तो पिताजी से जुड़े संस्मरण कहानियां और उनसे मिली सीख के बारे में बच्चों को अवश्य बताते हैं ताकि पिताजी से विरासत में मिले अच्छे संस्कार नई पीढ़ी में भी उसी तरह आगे बढ़ सके। जैसा हमारी पीढ़ी में आत्मसात किया था।

पूज्य पिताजी को हमारा कोटि-कोटि नमन। पूरा विश्वास है कि उनकी कृपा हमारे परिवार पर यूं ही बरसती रहेगी।

मुकेश

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