जमशेदपुर। झारखंड में समाजसेवा, व्यवसाय, राष्ट्रीयता तथा धार्मिक क्षेत्र में एक जानामाना नाम है मूनका परिवार। इसी परिवार के स्व. बनारसी लालजी मूनका ने अपने पिता स्व. बदरी दास जी मूनका से विरासत में मिली धार्मिकता और समाजसेवा की परंपरा को लगन, परिश्रम, निष्ठा तथा समर्पण के साथ आगे बढ़ाया और अपने पुत्रों व परिवार के अन्य सदस्यों को इसी के संस्कार दिए।
आज बनारसी लालजी मूनका का परिवार राष्ट्रीयता, धार्मिकता और सुसंस्कृति को समर्पित है तो इसका श्रेय उनके द्वारा किए गए बीजारोपण को जाता है। राजस्थान के उदयपुर शेखावाटी क्षेत्र के उदयपुर बाटी गांव निवासी बनारसी लालजी के पूर्वज आज से करीब 160 साल पहले झारखंड में आए थे। उन्होंने चांडिल को केंद्र बनाकर कारोबार और समाज सेवा की शुरुआत की। उनके पिता स्व. बदरीदास जी मूनका एक कट्टर राष्ट्रवादी थे। लिहाजा देश की आजादी के आंदोलन को भी तन-मन-धन से सहयोग करते थे।
समाजसेवा के क्षेत्र में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किए। धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। साथ ही साथ जरूरतमंदों की मदद में करने में कभी भी ना नहीं करते थे। शिक्षा के प्रचार-प्रसार में भी उनकी सक्रियता ताउम्र बरकरार रही।
ऐसे ही धार्मिक और सामाजिक व्यक्तित्व के धनी पिता से सनातन भारतीयता की दीक्षा लेकर बड़े हुए बनारसी लालजी मूनका ने 1942 में जमशेदपुर का रुख किया। 20 अक्टूबर 1920 को पैदा हुए बनारसी लालजी ने पुरुलिया से हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के बाद बंगभाषी कॉलेज कलकत्ता (अब कोलकाता) से बीएससी क पढ़ाई पूरी करने के बाद पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कारोबार के क्षेत्र में ही करियर बनाने का फैसला किया।
कारोबार के साथ-साथ वे समाज सेवा और धार्मिक गतिविधियों में भी समय देते रहे और बहुत ही कम समय में जमशेदपुर के समाज में उनका नाम एक प्रतिष्ठित कारोबारी-समाजसेवी के रूप में स्थापित हो गया।
पिता बदरीदास जी मूनका और माता अन्नपूर्णा देवी ने बनारसी लालजी को संस्कारी नागरिक बनाया था। उन्हें सीख दी थी कि कारोबार करो जीवनयापन के लिए और जीवन जियो समाज के लिए। पिता और माता से मिली इसी दीक्षा का प्रतिफल था कि उन्होंने अपने जीवन को कारोबार तक उतना ही समर्पित किया जितनी आवश्यकता हुआ करती थी। बाकी जीवन वे समाजसेवा और धर्म और धार्मिक गतिविधियों को समर्पित किए हुए थे।उनके व्यक्तित्व की एक विशेषता यह भी थी कि वे दूसरे संस्कृतियों का भी भरपूर आदर करते थे। गरीबों, जरूरतमंदों की मदद करना उनकी आदत में शुमार था।ाष्ट्रीयता व हिंदुत्व के वाहक