हिंदू पंचाग के अनुसार पितृ पक्ष का आज समापन हो रहा है। मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर लोग अपने लोक से पृथ्वी वोक पर आते हैं। इस दौरान उनके सम्मान में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है।
सनातन सिंध परिवार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के अवसर पर कुछ ऐसी दिव्यात्माओं को आदर के साथ स्मरण कर रहा जिन्होंने अपने जीवन काल में सनातन धर्म व समाज की सेवा में उल्लेखनीय कार्य किये।
ऐसे महापुरूष हमेशा हम सबके के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उनका नश्वर शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन ये अपने विराट व्यक्तित्त व कृतित्व से हमेशा समाज को आलोकित करते रहेंगे. उन्हें सनातन सिंधु परिवार की ओर से कोटि-कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि।
अपने बच्चों में धर्म और समाजसेवा की ललक पैदा करने के संस्कार देने के लिए किसी को कारोबार करना ही जरूरी नहीं। सामान्य गृहस्थ रहते हुए भी यह काम बखूबी किया जा सकता है। इसे उदाहरण के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत किया महेंद्र कुमार ने। अविभाजित बिहार के बक्सर क्षेत्र के सिमरी अंचल अंतर्गत डुमरी गांव में लाल मोहर कुंवर के इकलौते पुत्र के रूप में 18 अप्रैल 1941 को पैदा हुए महेंद्र कुमार ने पारिवारिक कृषि कार्य में करियर बनाने की जगह जमशेदपुर में नौकरी करने के विकल्प को आजमाया।
वे यहां आकर टाटा घराने की कंपनी से जुड़ गए। उस जमाने में कंपनी की नौकरी करना भी आसान काम नहीं हुआ करता था। भौतिक सुख-सुविधाएं भी आज जैसी नहीं थी। जीवन में कई तरह की चुनौतियों और कई तरह की परिस्थितियों से जूझते हुए महेंद्र कुमार ने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि बच्चों में धर्म और संस्कृति के संस्कार रहें। उन्होंने हमेशा इस बात का भी ख्याल रखा कि बच्चे आधुनिकता के साथ अपने सांस्कृतिक मूल्यों को कभी नहीं भूलें। वे लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि यदि मन साफ रहे, काम करने का भाव पवित्र रहे तो जीवन में अतिकठिन चुनौतियों का भी बखूबी सामना किया जा सकता है। उनकी सीख का ही प्रतिफल है कि उनके पुत्र हिंदुत्व और हिंदू धर्म को आगे बढ़ाने में तन-मन-धन से लगे हुए हैं। परिवार के दूसरे सदस्य भी अपने स्तर से इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं।
गंगा, गाय और शिव में असीम श्रद्धा और विश्वास रखने वाले महेंद्र कुमार का मानना था कि गंगा समेत किसी भी नदी प्रदूषित करने में मनुष्य को कोई भूमिका नहीं निभानी चाहिए। अव्वल तो यह कि नदियों को साफ-सुथरा रखने में जो कुछ संभव करना चाहिए। गंगा क्षेत्र में जन्म होने के कारण वे नदी की अहमियत को समझते थे। वे आजीवन इस प्रयास में लगे रहे कि गंगा समेत तमाम नदियां साफ हों, साफ रहें।
गाय को तो वे अपनी धार्मिक विरासत का वाहक मानते थे। वे गौ सेवा को भगवान सेवा के रूप में देखते थे। संयोग देखिए कि उनके द्वारा दिए गए संस्कारों के साए में पला-बढ़ा उनका परिवार गाय के संरक्षण एवं संवद्र्धन को अपना मिशन बना चुका है। गरीबों की सेवा करना, असहायों की मदद करना, समाज का विकास करना और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाना-इसे भी महेंद्र कुमार के पुत्र संजय कुमार व अन्य परिजन अपने गृहस्थ जीवन का एक अभिन्न अंग बना चुके हैं। धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन कराकर लोगों के बीच वितरित करने का काम भी उनके परिजन कर रहे हैं। उद्देश्य सिर्फ यह होता है कि यदि भगवान ने कुछ दिया है तो उसका कुछ अंश धर्म-समाज की सेवा में अवश्य अर्पित करना चाहिए। उनका मानना है कि हिंदू धर्म है तभी मानवता है और सही अर्थों में मनुष्य का अस्तित्व भी।