बीरेंद्र प्रसाद : बाबूजी से मिली सीख बना जीवन का संबल

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आज पितृपक्ष का अंतिम दिन है। आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या है। आज सभी पितर पृथ्वी पर रहने वाले अपने परिजनों और समस्त शुभचिंतकों को आशीर्वाद प्रदान कर अपने लोक को गमन करते हैं।

आज मेरे बाबूजी खूब याद आ रहे हैं। उनका नाम श्री बिरेंद्र प्रसाद। वे मूल रूप से बिहार के तत्कालीन रोहतास जिले के सोनबरसा थाना के चंवरडिहरी गांव में हुआ था। आरंभिक जीवन में गांव में बीता। उसके बाद टाटा स्टील में नौकरी करने जमशेदपुर चले आए। यहीं से अवकाश ग्रहण किया और हम भाईयों समेत पूरे परिवार का करियर संवारने के लिए उन्होंने रिटायरमेंट के बाद जमशदेपुर में ही रहने का फैसला किया।

बाबूजी को दिवंगत हुए तीन वर्ष हो गये। लेकिन हर दिन घर में उनकी उपस्थिति की उनके दिए संस्कारों से अनुभूति होती है। हमें गर्व है कि बाबूजी के दिए संस्कार हमें नैतिक रूप से इतना मजबूत बनाए हुए हैं कि तमाम झंझावतों के बावजूद भी हम उनके मूल्यों के सहारे खड़े हैं। बाबूजी कहा करते थे परिवार समाज के लिए जितना हो सके करना चाहिए। संयुक्त परिवार चलाने के लिए या संयुक्त परिवार में रहने के लिए त्याग से बढ़कर कुछ भी नहीं।

उनकी एक और सीख हमें हमेशा याद रहती है। कि भरसक कोशिश करो कि किसी से कुछ मांगना ना पड़े। यदि किसी कारणवश मांगने की नौबत आ भी जातीहै तो उसे ससमय लौटाने का भी इरादा रखो। जो कोई इंसान ऐसा करता है उसकी राह में चुनौतियां तो अनगिनत आती हैं लेकिन कठिनाईयों से उबरने के रास्ते भी भगवान निकालते जाते हैं। पितृपक्ष अमावस्या के दिन बाबूजी को हृदय से नमन करते हुए यही आशीष मांग रहा कि उनकी कृपा हम पर बनी रहे और पूरा परिवार सुख और शांति के साथ रहते हुए आर्थिक उन्नति की राह पर आगे बढ़ता रहे।

बाबूजी को कोटि-कोटि नमन।

एसएन श्रीवास्तव

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