चंद्रदेव सिंह राकेश
जमशेदपुर : कल्पना नहीं की थी कि अपने कुनू बाबू यानी द्विजेन षडंगी के बारे में हमें इस रूप में लिखना पड़ेगा. लेकिन विधि के विधान के आगे किसी मनुष्य का कुछ चलता है क्या? होता वही है जो ईश्वर को मंजूर होता है. महज 71 वर्ष की उम्र में कुनू बाबू को भगवान ने अपने पास बुला लिया. बुधवार यानी 21 दिसंबर 2022 को अंतिम संस्कार के साथ वे उस अनंत यात्रा पर निकल गए जहां के न तो कोई लौटकर आता है और न ही किसी तरह के संवाद की गुंजाइश ही छोड़ता है. सिर्फ अपनों के बीच यादों में रहता है.
प्रतिष्ठित व प्रभावशाली षड़ंगी परिवार का चमकता सितारा झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के बहरागोड़ा इलाके के अति प्रतिष्ठित व प्रभावशाली षड़ंगी परिवार में जन्मे कुनू बाबू के हमारा रिश्ता लगभग पचास साल पहले तब बना था जब हम पत्रकारिता के क्षेत्र में आए थे और वे सियासी गतिविधियों से जन सेवा से जुड़े थे. धीरे-धीरे कुनू बाबू से ही वैसा ही व्यक्तिगत संबंध बन गया जैसा उनके बड़े भाई व झारखंड के प्रथम स्वास्थ्य मंत्री दिनेश षडंगी के साथ हमारा करीबी रिश्ता था.
कुनू बाबू की बीमारी के बारे में पता था. हर आदमी इंतजार कर रहा था कि वे मुंबई से सफल इलाज कराकर लौटेंगे. लेकिन यह क्या? उनके भतीजे व बहागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल के फेसबुक पोस्ट से जानकारी मिली कि कुनू बाबू नहीं रहे.इसके साथ ही फोन घनघनाने लगे. अनगिनत लोगों से बात होती रही. हर कोई उनके व्यक्तित्व से एक से बढक़र एक विशेषताओं की चर्चा करता रहा. निधन को अपूरणीय क्षति बताता रहे.
बेशक, कुनू बाबू के निधन से जमशेदपुर समेत पूरे पूर्वी सिंहभूम जिले को अपूरणीय क्षति हुई है. वे थे ही ऐसा. सच में वे जरुरतमंदों के सेवक थे. राजनीति में तो लंबे समय से सक्रिय थे ही. एक सफल अधिवक्ता के साथ साथ एक सच्चे समाजसेवी थे.
हमेशा लोगों के बीच रहे
वे हमेशा लोगों के बीच रहे. उनके दुख सुख में खड़े रहते थे. पिछले पांच दशक से उनकी यही जीवनशैली रही. उन्होंने एक सच्चे, ईमानदार और समर्पित समाजसेवी के रूप में अनगिनत लोगों की मदद की, कई लोगों को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहने के लिए प्रेरित किया. समाजसेवा के लिए आगे बढऩे का हौसला दिया. इसीलिए वे कई लोगों के प्रेरणास्रोत रहे.
1971 मे आए सिसायत में
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुनू बाबू 1971 में इंदिरा गांधी के प्रेरित होकर राजनीति में आए.कांग्रेस से राजनीतिक सफर की शुरुआत की. लेकिन तीन साल बाद ही जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर जेपी आंदोलन में कूद गए. उस कालखंड में हमभी उनके साथ आंदोलन में सक्रिय रहे. भूमिगत रहते हुए आंदोलन को ताकत प्रदान की. बाद में वे जगजीवन राम के साथ कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी में जुड़े गए. उसके बाद जनता पार्टी में शामिल हो गए.
1980 में झारखंड पार्टी से लड़ा चुनाव
कुनू बाबू ने 1980 में एन ई होरो के नेतृत्व वाली झारखंड पार्टी से बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा. तब आज का झारखंड बिहार का ही अंग हुआ करता था. वे जीत तो नहीं सके लेकिन अच्छा खासा वोट पाकर सियासी हलकों में हलचल जरूर मचा दी थी. उसके बाद वे जनता दल में शामिल हो गए. 1998 में केएन गोविंदाचार्य की मौजूदगी में अपने बड़े भाई दिनेश षड़ंगी के साथ भाजपा में शामिल हो गए.
बहरागोड़ा में उनकी एक अलग छवि थी. जिसका लाभ चुनाव में दिनेश षाड़ंगी को मिला. कानून की पढ़ाई करने के कारण उन्होंने वकालत में ध्यान देना शुरु किया. जमशेदपुर बार एवं घाटशिला बार में वे प्रैक्टिस करते थे.
झारखंड अलग राज्य की बुलंद की आवाज
कुनू बाबू ने अपने क्षेत्र में झारखंड अलग राज्य की आवाज बुलंद की थी जबकि उस समय लोग झारखंड बोलने से कतराते थे. उस समय जब भी इस विषय पर बात होती थी वे अलग राज्य की जोरदार वकालत करते थे. उनके भीतर प्रमाणिक तथ्यों के साथ तर्क करने की अद्भूत क्षमता थी.छात्र जीवन से ही झारखंडी विचारधारा के थे. झारखंड राज्य के प्रबल समर्थक थे. जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड अस्तित्व में आया तो कुनू बाबू की खुशी का ठिकाना नहीं था.
हमेशा जुड़े रहे अपने गांव से
वे हमेशा अपने गांव व अपनी माटी से जुड़े रहे. अंतिम समय तक गांव की बात करते रहे. पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोडा प्रखंड की पाथरा पंचायत के गंढानाटा उनका पैतृक गांव है. जमशेदपुर में कई साल से वकालत करते थे लेकिन कोई भी ऐसा दिन नहीं होता था जब वे गांव का हालचाल नहीं लेते थे.
अंतिम संस्कार में दिखा लोगों का प्रेम
कुनू बाबू का अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुरूप उनके गांव में कर दिया गया. इस दौरान उन्हें श्रद्धांजिल देने लोगों का ऐसा सैलाब उमड़ा कि देखने वाले कहते मिले कि निधन के बाद ऐसा सम्मान विरले लोगों को ही नसीब होता है.
मंगलवार रात को उनका पार्थिव शरीर मुंबई से रांची होते हुए बहरागोड़ा पहुंची. रात से ही लोगों को हुजूम उमडऩे लगा था. बुधवार सुबह से गांवों से लोगों का जो आना शुरू हुआ वह अंतिम संस्कार होने तक जारी रहा. जिन रास्तों से कुनू बाबू की अंतिम यात्रा गुजरी अनगिनत लोग अपने आंसू पर नियंत्रण नहीं रख पाए.
उन्हें अंंतिम विदाई देने हर वर्ग के लोग पहुंचे. आम आदमी से लेकर खास तबके तक के लोग. साफ नजर आ रहा था कि इंसान को अपनी करनी का सुफल ईश्वर अवश्य प्रदान करते हैं. हर कोई अपने कुनू बाबू को ही याद कर रहा था. बार-बार हर कोने से यही सुनने को मिल रहा था – हे भगवान हमारे कुनू बाबू को इतनी जल्दी धरती से क्यों उठा लिया?
क्या कहा जाए? अच्छे लोग ही जल्दी चले जाते हंै इस धरती से और रह जाती हैं उनकी मधुर स्मृतियां. आपके साथ ही यही बात लागू हुई है कुनू बाबू.
हमारा कोटि कोटि प्रणाम व भावभीनी श्रद्धांजलि
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