पंडित ब्रज कुमार ओझा: हमारे बाबा, समाज के पथ प्रदर्शक

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माधुरी त्रिपाठी

पितृपक्ष का समय है। आश्विन कृष्ण पक्ष की इस अवधि में हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं। हिंदू संस्कारों के अनुसार इस पक्ष में पूर्वजों के लिए तर्पण-पिंडदान-श्राद्ध को भी संपादित किया जाता है।

बहुत याद आ रहे

इस क्रम में आज हमारे बाबा पूज्य पंडित ब्रज कुमार ओझा, वकील (बक्सर) बहुत याद आ रहे हैं। मैंने अपना बचपन बाबा (दादाजी) के सान्निध्य में व्यतीत किया है। उनका निधन 78 वर्ष की उम्र में 1971 में हुआ था।

बचपन के शुरुआती 15 वर्ष के कालखंड में बाबा से बहुत कुछ सीखने को मिला जिसे आज अपने जीवन में अंगीकार करते हुए दूसरों को भी इससे प्रेरित करने का प्रयास करती हूं। उनके साथ बिताये वे पल अविस्मरणीय हैं।

समझ में नहीं आ रहा कि बाबा के व्यक्तित्व के वर्णन का काम कहां से आरंभ करूं। उनसे जुड़े अनेक संस्मरण आंखों में तैर रहे हैं, मस्तिष्क को उद्वेलित कर रहे हैं और मन को थोड़ा विचलित भी कर रहे। गहरा भावनात्मक संबंध जो रहा है।

मैं खुद को 1955 के दशक में पा रही। याद आ रहा बाबा का गौरवर्ण वाला आकर्षक व्यक्तित्व। उनकी विलक्षण प्रतिभा। जबरदस्त यादाश्त। अकूत ज्ञान भंडार। बेमिशाल दानशीलता। सत्यनिष्ठा के प्रति अडिगता और जीवन की व्यवहारिकता का बारीक अनुभव।

बक्सर के निमेज के निवासी

हमारे बाबा के गांव का नाम निमेज है। यह आज के बक्सर (तब शाहाबाद) जिले के ब्रह्मपुर थाना-प्रखंड में स्थित है। निमेज की पहचान 52 गांव के ओझा के गांव के रूप में भी है।

बाबा के पिताजी का नाम श्री यदुनंदन ओझा था जो अपने समय की प्रख्यात हस्ती श्री लालजी ओझा के पुत्र थे।

विलक्षण प्रतिभा के धनी
बाबा पढऩे में अति मेधावी थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने फौज की नौकरी ज्वाइन कर ली थी।

प्रथम विश्वयुद्ध में वीरता दिखाकर उन्होंने तत्कालीन सरकार से सिविल लाइन में जाने की इच्छा जताई और वकालत की पढ़ाई के अपने सपने को पूरा करने देने की अनुमति मांगी। उनकी बेमिसाल सेवा को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने सेना से मुक्त कर दिया।

पटना से किया बीएल

इसके बाद हथुआ राज में शिक्षण का कार्य किया और फिर पटना लॉ कॉलेज से बीएल की डिग्री लेकर बक्सर कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू किया।

अपनी बेमिसाल याददाश्त और बातों को तार्किक तरीके से सटीकता प्रदान करने में बाबा का कौशल अलौकिक किस्म का था।

पहला केस लड़ा नैनीजोर का

शायद यही कारण रहा कि उन्होंने तब के डुमरांव राज और अंग्रेजी शासन के खिलाफ नैनीजोर गांव के ग्रामीणों का एक केस लड़ा और उसमें उन्होंने अपनीे मुवक्किलों को विजय दिलाई।

इस पहले ही केस से वकालत की दुनिया में बाबा का डंका बज गया। अदालत में उन्हें उभरते हुए वकील के रूप में देखा जाने लगा और धीरे-धीरे उन्होंने बक्सर कचहरी में अपनी खास पहचान बना ली।

बाबा अपने समय में तत्कालीन शाहाबाद जिले के सफलतम वकीलों में से एक रहे। उन्होंने प्रतिष्ठा कमाई, यश कमाया और पैसा भी। वे अपने जूनियर वकीलों के लिए प्रेरणास्त्रोत रहे हैं.

वकील के साथ कुशल प्रशासक भी

मेरे बाबा एक सफल वकील ही नहीं थे वे कुशल प्रशासक भी थे। बक्सर नगरपालिका और शाहाबाद जिला परिषद के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने विकास कार्यों को नया आयाम दिया था। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए अधिक से अधिक नये स्कूल खुलवाये थे। पुराने स्कूलों का जीर्णोंद्धार कराया था और सुदूर इलाकों को सड़कों से जोडऩे के लिए भी यथासंभव काम किया था।

चुनाव लड़ दिया संदेश

मेरे बाबा किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े नहीं थे लेकिन चुनावी राजनीति में किस्मत जरूर आजमाई थी। 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में वे निर्दलीय उम्मीदवार बने थे और अपनी बातों और वादों को लोगों के सामने रखा था।

तब उनका संदेश था कि मैं चुनाव में इसलिए खड़े हुए हें ताकि दलीय उम्मीदवार यह जान सकें कि जितने के बाद उनसे लोगों की क्या-क्या अपेक्षाएं रहेंगी और एक विधायक क्या-क्या काम कर सकता है।

कमाल की बात तो यह कि बाबा ने चुनाव प्रचार के लिए जितने रुपये में वाहन खरीदा था, चुनाव बाद उसे उतने ही रूपये में बेच दिया। एक तरह से देखा जाए तो चुनाव प्रचार पर उनका कोई पैसा जाया नहीं हुआ।

जिम्मेदार अभिभावक
मेरे बाबा सफल अधिवक्ता तो थे ही वे अतिजिम्मेदार अभिभावक भी थ। दूरदर्शिता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। अपने बड़े बेटे यानी मेरे पिताजी श्री प्रोफेसर तारकेश्वर ओझा जो आज के उत्तराखंड के एक प्रमुख कॉलेज में संस्कृत के विभागाध्यक्ष थे. के असामयिक निधन के बाद भी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति हमेशा सचेत और सचेष्ठ रहे। अंदर से वे भले दुखी थे लेकिन परिवार के पालन-पोषण पर इस दुख को जरा भी प्रकट नहीं होने दिया।

नारी सशक्तीकरण के प्रबल पैरोकार

उस जमाने में लड़कियों का स्कूल जाना लगभग असंभव सा था। लेकिन शिक्षा के विकास के प्रति अटूट विश्वास रखने वाले मेरे बाबा ने नारी सशक्तीकरण के प्रबल पैरोकार थे। यह उनकी दृढ़ता व दूरदर्शिता का ही कमाल रहा कि हम चार बहनों समेत गांव की अन्य लड़कियों ने हाई स्कूल में कोएजुकेशन किया। लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए यह मानक बना।

लड़कों की तरह दिया विकास का मौका

हर शनिवार को वे बक्सर से गांव चले आते थे और सोमवार को गांव से बक्सर प्रस्थान करते थे। आज इस अवधि को लोग वीकेंड हॉलीडे के रूप में मनाते हैं। कह सकते हैं कि जब बाबा इस वीकेंड पर गांव आते थे तो मुझे और मेरी जीजी को सबसे ज्यादा खुशी होती थी हमलोग लगातार उनके सान्निध्य में रहते थे और ऐतिहासिक और पौराणिक कहानियों के सुनने के साथ-साथ व्यवहारिक जीवन का भी पाठ पढ़ते थे। तब उनसे मिलने के लिए लोगों और मुवक्किलों का जमावड़ा लगा रहता था। बाबा इन सभी लोगों की मौजूदगी में हम दोनों बहनों का हौसला अफजाई करते थे और हिसाब-किताब कराने से लेकर खेतों की मालगुजारी की गणना कराने का काम भी हम बहनों को दे देते थे। वे कहीं से यह अहसास नहीं होने देते थे कि हम लड़की हंैं और हमें लड़कों की तरह विकास करने का मौका नहीं मिल रहा।

वकील के साथ नेक समाजसेवी भी

मेरे बाबा के नेक समाजसेवी भी थे। अपना कर्मा का दस प्रतिशत हिस्सा लोक कल्याण में खर्च किया करते थे। गरीब लोगों को अन्न, कपड़ा व कंबल आदि का वितरण इसी राशि से करते थे।

दिखावट से रहे दूर

हां एक बात और। बाबा दिखावट से बिलकुल दूर रहते थे। वे सेहत के प्रति हमेशा सतर्क रहे और जब भी मौका मिलता था तो पैदल चलने से गुरेज नहीं करते थे। वीकेंड पर जब वे बक्सर से गांव आते थे थे तो रघुनाथपुर स्टेशन से उतरकर करीब तीन किलोमीटर तक पैदल चलकर घर पहुंचते थे। कुछ लोग उनकी इस दिनचर्या को कंजूसी के रूप में प्रस्तुत करते थे। लेकिन यह सत्य बहुत कम लोग जानते हैं कि वे उन दिनों टमटम का भाड़ा बचाने के लिए पैदल नहीं चलते थे बल्कि स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए ऐसा करते थे। बक्सर से लाई जाने वाली उनकी मोटरी (झोला) टमटम से आया करती थी और पूरी सवारी का पैसा वे टमटम वाले को दिया करते थे। हां इतना जरूर है कि पैसे के सदुपयोग पर उनका दृढ़ विश्वास था। वे मानते थे कि पैसा बचाकर रखा जाना चाहिए क्योंकि गाढ़े दिन में यह बहुत काम का साबित होता है।

आज बस इतना ही। फिर जब मौका मिलेगा अपने बाबा समेत तमाम पूर्वजों बाबा से जुड़ी स्मृतियों या संस्मरणों को फिर प्रकट करने का प्रयास करूंगी।

इस पितृपक्ष में श्रद्धेय बाबा समेत सभी पितरों को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम और भावभीनी श्रद्धांजलि।

मेरा विश्वास है कि इन सबका आशीर्वाद हम सभी लोगों पर बना रहेगा और जीवन पथ पर आगे बढऩे के लिए ये पितर हमें अपने लोग से भी मार्गदर्शित करते रहेंगे। आर्शीवचनों की बारिश कराते रहेंगे।

प्रणाम बाबा। प्रणाम सभी पितरदेव।

(माधुरी त्रिपाठी ने इतिहास में एमए किया है। पठन-पाठन में गहरी अभिरूचि रखती हैं। यदा-कदा कुछ लिखने का भी प्रयास करती हैं।)

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