द्वितीय पुण्यतिथि पर नमन: राष्ट्र, धर्म व समाज के सेवा के पर्याय रहे जमशेदपुर के राधेश्याम जी जवानपुरिया

Share this News

चंद्रदेव सिंह राकेश

आज 9 अगस्त है. इतिहास के पन्नों में खास अहमियत रखता है. संयोग देखिए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों में रचे बचे झारखंड के जमशेदपुर के साकची निवासी राधेश्याम जवानपुरिया जी से जब कभी राष्ट्र और धर्म की बात होती थी तो वे अक्सर 9 अगस्त का जिक्र किसी न किसी संदर्भ में अवश्य करते थे. लेकिन उस समय किसको पता था कि यही 9 अगस्त उनके व्यक्तिगत जीवन में भी एक ऐसी तिथि बन जाएगा जो हमेशा इतिहास के पन्नों में अंकित रहेगा. 

ऐतिहासिक 9 अगस्त को निकले अनंत यात्रा पर

9 अगस्त को ही आज से ठीक दो साल पहले राधेश्याम जवानपुरिया जी इस भौतिक संसार और नश्वर शरीर को छोडक़र उस अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए जहां से लौटकर कोई नहीं आता और न ही किसी भी तरह से संवाद की ही गुंजाइश छोड़ता है.

आज राधेश्याम जवानपुरिया जी की दूसरी पुण्यतिथि है. सही कहा गया है कि जाने वाले कभी नहीं आते उनकी सिर्फ यादें आती हैं. आज उनका विराट व्यक्तित्व जेहन में बारबार उतर आ रहा. समाजसेवा के प्रति पूरा समर्पण, धर्म के प्रति अटूट आस्था और राष्ट्र के प्रति शत प्रतिशत कर्तव्य पालन की भावना रखने वाले राधेश्याम जवानपुरिया जी का जीवन संसार इतना व्यापक था कि उसे शब्दों में सहेजना बहुत कठिन है.

मदद मांगने पर निराश नहीं करते

संघ की विचारधारा में रचे बसे रहने के कारण राष्ट्र और समाज के विकास के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. प्राकृतिक आपदा हो या व्यक्तिगत समस्या कोई भी अगर मदद मांगने उनके पास पहुंच जाता था तो निराश होकर नहीं लौटता था. यह गुण उन्हें अपने माता-पिता से विरासत में मिला था और बिना किसी प्रचार-प्रसार के इस संस्कार वे आगे बढ़ाते रहे. 

राजनीति में भी उनकी अच्छी समझ थी.

भारतीय जनसंघ से जुड़ाव

 भारतीय जनसंघ जो अप्रैल 1980 में भारतीय जनता पार्टी के नाम से नए राजनीतिक दल के रूप में सामने आया, से भी उनका गहरा जुड़ाव था. राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत रहने के कारण ही अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में भी उन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और मंदिर निर्माण के आंदोलन में जेल यात्रा के भी पथिक बने थे. 

राम मंदिर आंदोलन में गये जेल

राम मंदिर आंदोलन के दौरान जेल में वे विश्व हिंदू परिषद के शीर्ष नेतृत्व के साथ रहे. लिहाजा उनका संपर्क और सोच का स्तर और व्यापक रहा. उसके बाद से वे लगातार राम मंदिर के लिए काम करते रहे. कारोबार का गुण तो उन्हें ईश्वर प्रदत्त पूर्वजों के संस्कारों से मिला था. लेकिन कारोबार भी वे एक सिद्घांत के साथ करते थे. ग्राहकों को भगवान का दर्जा देते थे और गुणवत्तापूर्ण सामग्री उचित कीमत पर मुहैया कराते थे. वे कहा करते थे रोजगार तो जीवनयापन का एक जरिया भर है. भगवान इतना दे देते हैं जितना आवश्यकता होती है. गलत तरीके से कमाया गया पैसा कई मुसीबतों को साथ लेकर आता है. लिहाजा इससे परहेज करना चाहिए. 

कई संस्थाओ से रहा जुड़ाव

राधेश्याम जवानपुरिया जी की धर्म के प्रति आस्था का ही परिणाम रहा कि वे साकची बाजार दुर्गापूजा कमेटी के लाइसेंसी रहे और इसकी कमेटी में वर्षों तक विभिन्न पदों पर रहकर सेवा करते रहे. मारवाड़ी सम्मेलन की साकची शाखा के रूप में उन्होंने संगठन को मजबूत करने के कई कदम उठाए थे. 

26 दिसंबर 1948 को जन्मे राधेश्याम जवानपुरिया जी के सेवा भाव का अक्श लावारिश लाश दाह संस्कार समिति के कार्यों में भी दिखता रहा.उनका मानना था कि जिसका कोई नहीं यदि उसके लिए कुछ किया जाए तो भगवान इसे जरूर देखते हैं. 

वे राजस्थान मैत्री संघ, सिंहभूम जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन, सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, राजस्थान सेवा सदन अस्पताल, पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन, साकची थाना शांति समिति, फर्नीचर विक्रेता संघ समेत अनेक संगठनों और संस्थाओं से जुड़े रहे. इन संस्थाओं की गतिविधियों में वे बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते और गलत को गलत कहने में तनिक भी संकोच नहीं करते थे. 

आदर्श जीवन मंत्र को अपनाया

जवानपुरिया जी के जीवन का मूलमंत्र यही था कि समाज में कुछ ऐसा कीजिए जो दूसरों के लिए उदाहरण बने और लोग उसे नजीर के रूप में देखें. तभी तो जीवन सही अर्थों में अपना प्रभाव डाल सकेगा. वे ऐसा करने में पूर्णत: सफल रहे.

 इसीलिए हमारे जैसे अनगिनत मित्रों, शुभचिंतकों और चाहने वालों को वे हमेशा याद आते हैं. 9 अगस्त को वे बार-बार याद आते हैं. अनगिनत बार याद आएंगे. 

संभवत: राधेश्याम जवानपुरिया जी जैसी सख्शियत के बारे में ही फिराक गोरखपुरी लिखकर गए हैं-

ऐ मौत आकर खामोश कर गई तू

सदियों दिलों के अंदर हम गूंजते रहेंगे.

दूसरी पुण्यतिथि पर अपनी आजीज, समाज के सच्चे सेवक और राष्ट्रीय मूल्यों व धरोहर के पैरोकार राधेश्याम जवानपुरिया जी को कोटि-कोटि प्रणाम और विनम्र श्रद्घांजलि.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *