पुण्य तिथि पर समाज कर रहा नमन
जमशेदरपुर से मुकेश कुमार ़
झारखंड के कोल्हान क्षेत्र के जानेमाने समाजसेवी व उद्यमी चंदूलाल जी भालोटिया की आज 10 नवंबर को पुण्य तिथि है. पांच साल पहले आज की तिथि को ही वे अपना नश्वर शरीर त्याग उस अनंत यात्रा पर निकल गए जहां से कोई न तो लौटकर आता है और न ही उस इंसान से किसी तरह से संवाद की गुंजाइश रहती है. वह इंसान अपने पुण्य कर्मो के साथ-साथ आचरण व व्यवहार से लोगों की स्मृतियों में बसा रहता है.
चंदूलाल जी भालोटिया आज शिद्दत से याद आ रहे हैं तो इसके पीछे समाज को दिया गया उनका योगदान है. वे अपने लिए नहीं आए थे इस दुनिया में, परमात्मा ने उन्हें समाज के लिए भेजा था.
अंत समय तक जुड़े रहे धर्म सेवा से
समाजसेवा व धर्मसेवा के साथ चंदू बाबू के लगाव का प्रतिफल रहा कि जीवन के अंतिम समय में भी उन्होंने गौशाला के कार्यक्रम में भाग लिया था. वर्ष 2016 में श्रीटाटानगर गौशाला के गोपाष्टमी समारोह के मौके पर कार्यक्रम के दौरान ही उनकी तबीयत बिगडऩे लगी और कार्यक्रम को बीच में छोड़कर वे चले गए थे लेकिन किसे पता था कि अब उनसे आमने-सामने भेंट नहीं होगी. उस साल गोपाष्टमी के 3 दिन बाद उनका निधन हो गया.
शीर्ष संस्थाओं से रहा जुड़ाव
कोल्हान में शीर्ष संस्थाओं में कोई भी ऐसा नाम नहीं लिया जा सकता जिसमें चंदू बाबू ने अग्रणी भूमिका न निभाई हो. सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स, राजस्थान सेवा सदन, श्रीटाटा नगर गौशाला और प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष रहे चंदू बाबू हमेशा सुर्खियों में रहे. अपने अग्रज स्व. चिमनलाल भालोटिया से उन्हें समाजसेवा के संस्कार विरासत में मिले थे. उन्होंने इस विरासत को संभाल कर रखा और अपनी जिम्मेवारी का ठीक ढंग से निर्वाह भी किया.
उतार-चढ़ाव से नहीं घबराए
हर किसी के जीवन में उतार चढ़ाव तो आता ही है और व्यक्ति को कई बार आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ता है. लेकिन शायद ही ऐसा कोई मौका आया हो कि सार्वजनिक रूप से चंदू बाबू आलोचना के पात्र बने हों. समाजसेवा के क्षेत्र में ऐसा हो तो अच्छा ही रहता है, समाज सेवियों को इस से सबक भी लेनी चाहिए और प्रेरणा भी।
गौ सेवा के रहा खास लगाव
श्रीटाटा नगर गौशाला से उन्हें खास लगाव था और इसके विकास के लिए उन्होंने जी भर प्रयास किया। उनकी एक तमन्ना थी कि इसी गौशाला की तरह आसपास ग्रामीण क्षेत्र में भी एक गौशाला खोली जाए. अपने सहयोगियों के साथ उन्होंने जमीन की तलाश भी शुरू कर दी थी. लेकिन उनके जीवनकाल में यह सपना साकार नहीं हो सका. इसी तरह वह चाहते थे कि शहर के मारवाड़ी समाज संचालित एक विद्यालय हो जिसकी खास पहचान बने. इस काम के लिए वह अपनी ओर से भरपूर मदद देने की इच्छा जताते थे लेकिन बात नहीं बनी. इन
सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी समाज की
अब चंदू बाबू के सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी समाज की है. उनके परिजनों व शुभचिंतकों को भी इस ओर आगे आना चाहिए. जिस शख्स ने समाजसेवा को अपना कर्म और धर्म माना उसकी याद में ऐसा करना निहायत जरूरी है.
जमशेदपुर के बागबेड़ा में जन्म
जमशेदपुर के बागबेड़ा क्षेत्र में 8 अक्टूबर 1939 को जन्में चंदूलाल भालोटिया किसी जमाने में चावल किंग के रूप में प्रसिद्ध हुए. वर्ष 1917 के आसपास इनका परिवार अपने मूल प्रदेश पंजाब के कोर कंपरा गांव से आकर यहां बसा. फिर यही का हो गया. राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर और भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी को
अपना आदर्श माननेवाले चंदूलाल जी भालोटिया चाहते थे कि युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गों की मान-मर्यादा बरकरार रखे. भारतीय संस्कृति का पालन करें और संस्कारों को न भूले.
पांच हजार की पूंजी से शुरू किया था कारोबार
वर्ष 1975 में ऑटोमोबाइल उद्योग के क्षेत्र में हाथ आजमाया और सफलता मिली. वर्ष 1957 में पांच हजार रुपये की पूंजी के साथ कारोबार शुरू करने वाले चंदू बाबू ने वर्ष 7975 तक अपना कारोबार बदल लिया. सन् 1970 से सार्वजनिक सामाजिक सक्रियता शुरू की. तीन पुत्र-अशोक, रमेश एवं अजय भालोटिया, तीन पुत्री-उषा मित्तल, आशा स्वाइका, आभा अग्रवाल एवं भरे-पूरे परिवार के अगुवा रहे चंदू बाबू विवाह सन् 1957 में गिरिडीह निवासी स्व. भगवानदास अग्रवाल की सुपुत्री विद्या देवी के साथ हुआ था.आलोचना से कभी भी नहीं घबराने वाले चंदू बाबू के ज्येष्ठ पुत्र अशोक भालोटिया सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के लगातार दो कार्यकाल में अध्यक्ष रह चुके हैं।. पुत्र रमेश भालोटिया, अजय भालोटिया अपने बड़े भाई अशोक भालोटिया के नेतृत्व में व्यापार में संलग्न है.
कई संस्थाओं से रहा जुड़ाव
चंदू बाबू सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, श्रीटाटानगर गौशाला, राजस्थान सेवा सदन अस्पताल, जिला मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष रहे. इनके कार्यकाल में ही सम्मेलन को वर्ष 1998 में बिहार के राज्यपाल के द्वारा सम्मानित किया गया था.
इंडियन रेडक्रास सोसाइटी, राम मनोहर लोहिया सेवा संस्थान के संरक्षक रहे. झारखंड मारवाड़ी रिलीफ कमिटी, राम मनोहर लोहिया सेवा संस्थान से जुड़े रहे.चंदू बाबू ने न केवल राजस्थानी समाज की संस्थाओं बल्कि कई अन्य समाज की अच्छी संस्थाओं को सहयोग देकर रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित किया.
चंदू बाबू की पुण्य तिथि पर ये पंक्तियां उन्हीं पर चरितार्थ हो रहीं और उनकी याद भी दिला रहीं –
मौत आती है सभी को, एक दिन मर जाएंगे.
याद सदियों तक रहे, वह मौत मरना सीखिए.