माधवी उपाध्याय
हमार झारखंडी संस्कृति नीमन।
ढोल बाजे,मांदर बाजे,पायल बाजे
छन-छन।।
दशम फॉल,जोन्हा फॉल, हिरनी के झरना।
मांदर के थाप प नाचे नव यौवना।।
सोहराय परब में झूमें नाचे रे मन।
करमा के रंग में सजल रहे जीवन।।
झर-झर से झरना झरे,बहेला पवन,
ढोल बाजे मांदर बाजे पायल बाज छन -छन।।
नागपुरी, मुंडारी, कुरमाली भाषा।
बड़ी निक लागे खडिय़ा,संताली भाषा।
सोना से भरल पुरल स्वर्णरेखा नदी।।
कोयल, दामोदर के संग चले सदी।
कल-कल स्वर लहरी छेड़े खरकाई पावन।
ढोल बाजे, मांदर बाजे, पायल बाजे छन- छन।।
दूर- दूर पसरल बा हरियाली छटा।
ऊंच-ऊंच शाल पेड़,सखुआ के घटा।।
पूजा-पाठ,ध्यान-दान संस्कारी जीवन।
पुरुखन के याद ऊ करेला आजीवन।।
हरसिंगार फूल झरे, गमकेला वन।
ढोल बाजे, मांदर बाजे, पायल बाजे छन- छन।।