लघुकथा : कहीं खुशी कहीं गम

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नीता सागर चौधरी

गीता ओ गीता—- जा देख तो खाना देने वाली गाड़ी आई है कि नहीं। रोज तो दो /तीन बजे तक आ जाती है आज पांच बजने को आए अब तक आया क्यों नहीं?

हां मैं जाती हूं कहकर गीता हाथ में एक बड़ी सी अल्मुनियम की कटोरी लेकर रेलवे स्टेशन के सामने मंदिर के पास पहुंचती है। वहां

पर पहले से ही बहुत सारे लोग बूढ़े जवान औरतें बच्चे सब बैठे थे। वे भी शायद खाना देने वाली गाड़ी का ही इंतजार कर रहे थे।
अरे गीता आज इतनी देर से आ रही हो?

हां देर तो हो गई ।पर खाना वाली गाड़ी भी तो आज नहीं आई ।
हां हम सब भी तो यही सोच रहे हैं।

गीता अपनी नजर इधर उधर दौड़ा रही थी। कब आएगी पता नहीं । कम से कम घर बैठे बिना मेहनत दो वक्त का खाना तो मिल रहा हैं। शहर में न जाने कौन सी बीमारी आई है, सब कुछ बंद ।ट्रेन बस दुकाने बाजार सब।

अब तो भीख मांगना भी दूभर हो गया भीख मांगे तो कहां मांगे भीख मांग कर ही बहुत से लोगों के परिवार चलते हैं?।अब भीख कहां मांगे ?भूख से परेशान गीता खाना देने वाली गाड़ी का इंतजार कर रही थी।

थोड़ी देर बाद गीता की मां साथ में और 4 बच्चों को लेकर मंदिर पहुंचती है सबके हाथ में एलमुनियम की बड़ी कटोरियां और प्लास्टिक के थैले। जितने हाथ उतना ज्यादा खाना। सबके चेहरे पर भूख और उदासी साफ झलक रही थी।

अचानक सब कोई एक साथ चिल्लाने लगे। आई आई —–वह देखो खाना वाली गाड़ी आ रही है ।खाना ला रही है ।सब उछल कूद मचाने लगे। सबकी आंखों में खुशी झलकने लगी ।जय करोना मैया ,जय करोना देवी ,तेरा महिमा अपरंपार।

आज इस बीमारी की वजह से इन भूखे नंगे को दो वक्त का खाना नसीब हो रहा है वह भी बिना मेहनत और मुफ्त।
लगाओ लगाओ लाइन लगाओ— और गरमा गरम की खिचड़ी सब को मिलने लगी।

भैया आज रात को आओगे ना?
अरे रात की बात रात को सोचना पहले तो खाना खा लो,शिवा बोला ।
सारे लोग कटोरी और प्लास्टिक के थैले भर भर कर खिचड़ी लेकर अपने झुग्गी झोपड़ी में चले गए।
ना मास्क ना सैनिटाइजर ना साफ सफाई ना दवा दारू मस्त है वे लोग। जाको राखे साइयां मार सके ना कोई।

शिवा मन ही मन यही बात सोच रहा था। शिवा ईश्वर को धन्यवाद दिया। और खाना गाड़ी लेकर कहीं और जरूरतमंद लोगों को खाना बांटने निकल पड़ा। इन लोगों की मुस्कुराहट देखकर लग रहा था करोना इनके लिए वरदान बन कर आई हैं।

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