श्री चाकुलिया गौशाला: देसी गायों के संरक्षण व विकास के साथ सेहत व पर्यावरण रक्षा पर भी ध्यान

Share this News

संजय लोधा

आज यानी 12 नवंबर शुक्रवार को गोपाष्टमी पूजा की धूम है। प्राय: हर गौशाला में इसे लेकर कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। चाकुलिया गौशाला में भी गोपाष्टमी उत्सव पूरी श्रद्धा व उत्साह के साथ सादगी भरे माहौल में मनाया जा रहा है।झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित धर्म नगरी चाकुलिया की राष्ट्रीय पहचान यहां की गौशाला से भी है। देसी गौ वंश के संरक्षण व संरक्षण के साथ साथ इस गौशाला में गौ उत्पादों के जरिए सेहत, कृषि व पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हो रहा है। रोजगार प्रदान करने के साथ-साथ गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर भी चाकुलिया गौशाला समाज के सामने नजीर पेश कर रहा है। कलकत्ता पिजंरापोल सोसाइटी की चाकुलिया शाखा के सचिव संजय जी लोधा की कलस से पढि़ए इस इस गौशाला के बारे में विस्तार से: चंद्र देव सिंह राकेश।

चाकुलिया गौशाला कोलकाता स्थित कलकत्ता पिंजरापोल सोसाईटी की एक शाखा है.
कलकत्ता पिंजरापोल सोसाईटी की स्थापना के 31 वर्ष बाद सन् 1916 ई. में चाकूलिया में गोशाला के लिए स्थान देखने के निमित्त बाबू शिव प्रसाद जी झुनझुनवाला, बाबू चतुर्भुजजी रूईया, बाबू मांगीलाल जी जयपुरिया एवं बाबू छोटेलाल जी चौधरी कलकत्ता से यहां आये थे।

सुरम्य जंगलों से भरा चाकुलिया सबों को काफी पसन्द आया, सर्वश्री जुगल किशोर सूरजमल प्रतिष्ठान ने 25 बीघा जमीन खरीद कर चौथी शाखा के रूप में इस गोशाला का शुभारंभ किया।

सभापति श्री चतुर्भुज जी रूईया के नेतृत्व में पशु एवं प्रबंधक आवास के लिए भवन निर्माण का कार्य तत्परता एवं उत्साह के साथ प्रारंभ हुआ। गोशाला के संचालन हेतु बाबू डालूरामजी के सभापतित्व में कार्यकारिणी समिति का गठन किया गया और तभी से यह गोशाला एक व्यवस्थित रूप लेने लगा।

कलकत्ता पिंजरापोल सोसाइटी के कार्यकर्ता भी चाकुलिया गोशाला के लिए काफी उत्साहित थे और प्रत्येक रविवार को यहां आकर सहयोग करने लगे। श्री चतुर्भुज रूईया ने एक हजार गोवंश के चरने के लिए विशाल चारागाह का प्रबंध किया। अवशेष भूमि पर कृषि कार्य शुरू हुआ।

1920 ई. आते आते लगभग 600 बीघा जमीन पर फसलें एवं चारा लहलहाने लगा। यहां की सुव्यवस्था के कारण टाटानगर गौशाला और भद्रक (ओडिशा ) की गोशाला बंद होने पर वहां के गोवंश को सोसाइटी ने चाकुलिया गोशाला भेजा, जहां उन्हें स्थान मिला। यह मील का पत्थर साबित हुआ, जब उजड़े हुए गोशालाओं के गोवंश को चाकुलिया में संरक्षण, संवर्द्धन एवं पालन-पोषण का समुचित स्थान मिला।

दूसरे विश्व युद्ध में हुआ जमीन का अधिग्रहण

वर्ष 1942 ई. में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस गोशाला की 1640 बीघा जमीन एवं भवन, हवाई अड्डा निर्माण एवं प्रतिरक्षा कार्यों के लिए केन्द्र सरकार ने अधिग्रहण कर लिया। विवशतावश गोशाला को यहां से 10 कि.मी. दूर कालापथरा गांव में ले जाना पड़ा। बाद में पुन: इसका स्थानान्तरण चाकुलिया नया बाजार में किया जहां अब यह शाखा अवस्थित है।

1962 ई. में श्री रामकृष्णजी सरावगी ने चाकुलिया शाखा की जिम्मेदारी सम्हाली। बूढ़ी-ठाठ गायों को देखभाल होने के कारण यहां आमदनी कम और खर्च अधिक स्वभाविक था। 1965 ई. में गोपाष्टमी मेला काफी भव्य एवं उत्साहवर्द्धक रहा। मेले में गोरक्षा सम्बन्धित प्रर्दशनी को लोगों ने काफी सराहा। गोशाला निरंतर गतिशील रही।

1978 ई. में श्रीगोपालजी सुरेका के नेतृत्व एवं प्रयास में सामाजिक वानिकी के तहत गौशाला की सैकड़ों एकड़ जमीन में अकाशिया एवं यूक्लिप्ट्स के पेड़ लगाये गये। इस बीच स्वर्गीय सावरमलजी सेकसरिया 40 वर्षों तक अध्यक्ष एवं मंत्री रहे। उन्होंने इस शाखा का कार्य सेवाभाव एवं सक्रियता से देखा।

प्रभुदुयालजी झुनझुनवाला के कार्यकाल में ही गोशाला द्वारा निर्मित दुकानों के भाड़े की व्यवस्था हुई। तत्पश्चात 1918 ई. तक अध्यक्ष के रूप में श्री पुरूंषोत्तरदासजी झुनझुनवाला तथा सचिव के रूप में श्री दुर्गादत्तजी लोधा, ब्रह्मा प्रसादजी अग्रवाल आदि ने गोशाला के व्यवस्थित संचालन एवं विकास के लिए सराहनीय कार्य किया।

इसी प्रकार गोशाला की विकास यात्रा एवं संचालन में उतार-चढ़ाव चलता रहा। श्री श्रीगोपालजी करवा के मार्ग दर्शन से 1965 में गोमूत्र एवं गोबर से सामग्री बननी शुरू हुई जिसका मुफ्त वितरण तीन वर्षों तक चला जिससे इन सामग्रियों का प्रचार प्रसार हुआ।
हमारा वर्तमान : 1968 ई. के अगस्त माह में श्री श्रीगोपालजी करवा की प्रेरणा से शाखा के अध्यक्ष श्री पुरूषोत्तमदासजी झुनझुनवाला के नेतृत्व में इस गोशाला के मंत्री श्रीरघुनाथ प्रसादजी रूंगटा एवं अन्य सभी पदाधिकारी बैठे और यह गंभीरता से विचार किया गया कि गोशाला का जो कर्तव्य एवं दायित्व है उसके अनुरूप काम नहीं कर पा रहे हैं। गोशाला के क्रिया-कलाप को नयी दिशा दी जाय।
इसके लिए एक ओर गो पालन की समुचित व्यवस्था करना तथा दूसरी तरफ पंचगव्यं, पंचामृत व गो-उत्पादों के आधार पर उसे स्वस्थ जीवन, शुद्ध पर्यावरण और स्वावलम्बी समाज संरचना के अग्रदूत के रूप में फिर से स्थापित करना था। गोशाला सही रास्ते पर चल सके।

इसके लिए नया रूप एवं आवरण देने के लिए कई ठोस योजनाएं बनायी गयीं।
यहां जितनी पुरानी इमारतें बनी थीं उनका जीर्णोद्धार और काया-कल्प किया गया। पक्के मकान जहां पानी चूता था उसकी मरम्मत की गई। जहां छावनी में एसवेस्टस या कर्कट टीन खराब हो गये थे उन्हें बदला गया।

टूटी-फूटी दीवारों की मरम्मत की गई। हर गो आवास के साथ बाड़ों का निर्माण किया गया ताकि गायें खुले रूप में घूम सकें। गो-प्रसूति गृह एवं गो चिकित्सालय भवन का निर्माण हुआ। 20 फीट गुणा 20 फीट 12फीट की पानी की टंकी बनायी गयी ताकि सभी गो आवासों में हमेशा पानी उपलब्ध हो सके।

पहले से दो ट्यूबवेल थे, दो और नये ट्यूबवेल भी गाडे गये। फब्बारों से सिंचाई की व्यवस्था की गई। जहां पहले मात्र तीन चार एकड़ में हरे चारे का उत्पादन होता था वहां अब 20 एकड़ में चारा लगाया जाने लगा। चारागाह का निर्माण तार से घेरा घेरकर बनाया गया है। जिससे गायों का हरा-चारा पर्याप्त मिलने लगा।

मिश्रण यंत्र एवं चक्की बैठायी गई है। जिससे गायों को दाना देने के लिए यहीं मिश्रण किया जाने लगा। 45 घन मीटर का एक गोबर गैस सयंत्र का निर्माण कर 5 किलोवाट बिजली पैदा की जा रही है। गो आवासों में पंखे एवं ध्वनि विस्तार यंत्रों द्वारा संगीत की व्यवस्था की गई।

गोबर खाद रखने के लिए गड्ढे बनाये गये हैं, जिनमें प्रतिदिन डाले गये गोबरों के उपर मिट्टी की पंरत लगायी जा सके। नँडेप पद्धति से खाद बनाने के 26 टांके तैयार किये गये हैं। एक टांके में 150 किलो गोबर देकर तीन से चार माह में तीन टन खाद प्राप्त किया जा सकता है।

गोबर और गोमूत्र से 16 तरह की सामग्री एवं दवा बनाने का कार्य शुरू हुआ है। जिससे करीब एक लाख रूपये की आमदनी गोशाला को प्रति वर्ष बढ़ी है। गीर नस्ल की करीब 60 गाय एवं दो सॉँड़ गुजरात से लाया गया। 500 कृषकों के बीच 1000 लीटर गौमूत्र से निर्मित कीटनाशक औषधि का नि:शुल्क वितरण किया गया है। जिन्होंने इसका उपयोग किया है उन्हें इसका बड़ा लाभ मिला।

संप्रति यहां 250 गोवंश से करीब 200 लिटर दूध रोजाना उत्पादन हो रहा है। दो कमरों का अतिथि गृह, शिशु उद्यान तथा भगवान श्रीकृष्ण एवं गोमाता मंदिर का निर्माण भी पूरा हो गया है। 35 एकड़ का चारागाह भी बनकर तैयार है। हम विशेष रूप से आभारी हैं श्रीगोपालजी करवा, जिनके उदात्त सहयोग एवं प्रेरक मार्गदर्शन के बिना इतनी महत्वपूर्ण योजनाएं अल्प समय में पूरी नहीं की जा सकती थी। साथ ही प्रधान कार्यालय का भी पूर्ण सहयोग मिला।

(संजय लोधा जी कोलकाता पिंजरा पोल सोसाइटी की चाकुलिया शाखा (श्री चाकुलिया गौशाला के सचिव हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *