पुरुषोत्तम झुनझुनवाला : गो सेवा से झारखंड को दी राष्ट्रीय पहचान, जीवन पर्यन्त रहे संस्था की तरह

Share this News

रवि झुनझुनवाला

स्वर्गीय श्री पुरुषोत्तमदास झुनझुनवाला की पुण्य तिथि पर आज हम उन्हें सादर श्रद्धांजलि देते हुए गर्व के साथ कह सकते हैं कि वो एक ऐसे ब्यक्तित्व थे जो सही मायने में अपने आप में एक संपूर्ण संस्था के रूप में जीवन पर्यन्त कार्यरत रहे। जब भी हम उन्हें याद करते हैं तो उनकी विशिष्टताएं हमारी आंखों के सामने घूमती रहती हंै। उनकी समय की पाबंदी, किसी भी कार्य को सही तरीके से करने की क्षमता, समाज के विभिन्न बर्गो के लोगो के साथ जुड़ाव एवं अपनत्व की भावना- ये उनके विशिष्ट गुण रहे जिनके चलते उन्होंने खासी लोकप्रियता प्राप्त की. इसी से वे लोगो के लिए प्रेरणादायक बने।

गो सेवा के लिए उन्होंने अनगिनत कार्य किये और इस छेत्र में अग्रणी गोसेवक के रूप में प्रसिद्ध हुए। वो हमारे आदर्श रहे हैं और उनके रास्ते पर हम चल पाए यही ईश्वर से प्रार्थना है।

भारतीय संस्कृति के प्रबल पक्षधर, गोमाता के अनन्य सेवक रहे झुनझुनवाला ने उद्योग जगत से लेकर खेती-बारी तक में अपने विराट व दूरदर्शी व्यक्त्वि की छाप छोड़ी थी. उन्होंने चाकुलिया पंचायत का मुखिया रहते सियासत में नैतिकता का उदाहरण सामने रखा था. वे स्वभाव से धार्मिक तो थे ही. एक कुशल संगठनकर्ता व योग्य मार्गदर्शन भी थे. उनकी छवि प्रखर हिन्दुत्ववादी एवं निर्भीक नेतृत्वकर्ता की रही,.
चाकुलिया को कर्मस्थल बना विश्व के कई देशों तक गोक्रांति की किरण पहुंचाने वाले पुरुषोत्तम झुनझुनवाला का जन्म 30 नवंबर 1930 को चाकुलिया में हुआ था. स्कूली शिक्षा जमशेदपुर के केएमपीएम हाई स्कूल एवं उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हुई थी.

वे युवा काल में ही समाज सेवा से जुड़ गए थे. छात्र रहते ही जुगसलाई में जगतचंधु पुस्तकालय की स्थापना में भूमिका निभाई थी. कालेज की पढ़ाई के बाद वे पैतृत कारोबार संभालने लगे और एक सफल उद्योगपति के साथ साथ प्रभावी नेता के रूप में अपने को प्रस्तुत किया. वे सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष भी रहे, तब यह कोल्हान का सबसे बड़ा कारोबारी संगठन हुआ करता था.

वे विश्व हिंदू परिषद से भी जुड़े रहे. सिंहभूम से संगठन को मजबूत करने का काम शुरू किया. इसी मेहनत की बदौलत अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष का भी दायित्व संभाला. विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बाद भारत के सांस्कृतिक मानचित्र पर चाकुलिया चर्चित होता रहा, जब 1976 में मानस चतुशती समापन समारोह एवं 1986 में चैतन्य पंचशील समारोह पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्र्रम आयोजित हुए. झुनझुनवाला ने अपने पूर्वजजों की स्मृति में चाकुलिया में मॉडल हाई स्कूल भी स्थापित कराया. दर्जनों संस्थायें उनके द्वारा स्थापित किया गया.

मारवाड़ी खानदान की इस हस्ती ने विदेशों में भी भारतीय संस्कृति का प्रचार किया. मॉरीशस में भारतीय मजदूरों के प्रवास का 150 वर्ष पूरे होने पर भारतीय प्रतिनिधिमंडल में मॉरीशस गये. लंदन में आयोजित विश्व हिन्दू परिषद सम्मेलन में भाग लिया एवं पूरे यूरोप के दौरे पर गये. 1986 में काठमांडू में विश्व हिन्दू सम्मेलन में भाग लिया. भूटान में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया. जापन भी गये. 1970 में कृषि विशेषज्ञ के रूप में जापान के टोकियो में आयोजित ‘एक्सपो 70’ में बिहार का नेतृत्व किया.

1994 में इन्हें भारतीय गो संरक्षण एवं संवर्धन परिषद की प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. गो रक्षा के लिए स्थल आंदोलन चलवाया एवं गोवंश के लिए ले जायी जाने वाली गायों की रक्षा की. चाकुलिया गोशाला के अध्यक्ष के रूप में इन्होंने गोबर एवं गोमूत्र के निर्माण के क्षेत्र में कई शोध किये और कराये. बीआईटी मेसरा के कुलपति डॉ. एसके मुखर्जी आईआईटी खडग़पुर के निदेशक शिशिर कुमार दूबे, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति एवं वैज्ञानिकों ने हमेशा चाकुलिया गौशाला आकर यहां के शोध एवं औषधियों को स्वीकारा. आज चाकुलिया में 52 प्रकार की औषधियां निर्मित होती हैं. आईआईटी खडग़पुर ने झुनझुनवाला को अपने यहां आमंत्रित कर उनके व्याख्यान आयोजित किए और उन्हें सम्मानित किया.

वर्ष 2006 में इन्हें झारखंड सरकार ने राज्य आयोग सेवा आयोग का अध्यक्ष बना केबिनेट मंत्री का दर्जा दिया. उन्होंने अपने जीवन की अधिकांश अवधि सिंहभूम जनपद की सेवा में लगाई. अस्वस्थ रहने के बावजूद 89 वर्ष की उम्र में भी झुनझुनवाला चाकुलिया गौशाला में प्रतिदिनन आठ घंटा समय देते थे एवं सारा काम स्वयं करते थे. यही कारण है कि वे आज भी पूरे राज्य के लिए प्रेरणास्र्रोत थे. खासकर गो सेवकों के लिए. गौशाला संचालकों के लिए.

रवि झुनझुनवाला

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *