अर्चना सिंह
भगवान शिव के पवित्र माह सावन में उनकी पूजा-अर्चना करने से जुड़ी अनेक लौकिक-अलौकिक जानकारी पढऩे-सुनने और देखने को मिलती है. इसी क्रम में झारखंड के जमशेदपुर-आदित्यपुर से संचालित एक ऐसे शिव भक्तों के समूह देशबंधु कांवरिया संघ के बारे में आपको हम बता रहे जो कांवड़ (कांवर) यात्रा को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहा है. खास बात यह कि इसमें नारी शक्ति की भी पूरी अहमियत रहती है. जब कोई स्त्री या पुरुष कांवरिया वृद्घ होने लगता है तो हर साल कांवर यात्रा पर जाने का अपना संकल्प अपनी आने वाली पीढ़ी को सौंप देता है और नई पीढ़ी उसी भक्ति, शक्ति और उत्साह के साथ अपने सनातन संस्कारों को आगे बढ़ाने में पूरे मनोयाग के साथ जुट जाती है.
जमशेदपुर के बिष्टुपुर गुरूद्वारा एरिया (बस्ती) में दो अगस्त मंगलवार को अद्भुत नजारा दिखा. शिव भक्तों के अनोखे संगठन देशबंधु कांवरिया संघ के सदस्य गेरूवा वस्त्र धारण कर बोलबम का जयघोष करते हुए उस बस पर चढऩे की तैयारी कर रहे थे जो खासतौर से उन्हें सुल्तानगंज-देवघर तीर्थयात्रा पर ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी.
बिहार के भागलपुर में सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा से पवित्र जल भरकर देशबंधु कांवरिया संघ के करीब चार दर्जन सदस्य पैदल चलकर देवघर पहुंचेंगे और वहां बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करेंगे.
देशबंधु कांवरिया संघ की यह सालाना कांवड़ यात्रा पिछले 40 वर्षों से लगातार चल रही है. हर साल उसी उत्साह और उमंग के साथ भक्त सुल्तानगंज से जल भरकर देवघर में बाबा भोलेनाथ को जल अर्पित करते हैं.
मंगलवार को बिष्टुपुर गुरूद्वारा एरिया में बस पर सवार होने के लिए जुटे देशबंधु कांवरिया संघ के सदस्यों ने गर्व के साथ सनातन सिंधु डॉट इन को बताया कि यह उनका सौभाग्य है कि माता-पिता व अन्य पूजनीय बुजुर्गों के आशीर्वाद से वे उनके द्वारा प्रदत्त कांवर यात्रा के संस्कार को आगे बढ़ा रहे हैं.
अपने करीब चार दशक पुराने संघ के बारे में बताते हुए सदस्यों ने कहा कि करीब 40 वर्ष पहले और उसके कुछ वर्ष बाद तक जो लोग संघ के बैनर तले कांवर यात्रा पर जाते थे उनमें से सभी लोगों ने इस विरासत को अपने उत्तराधिकारी को सौंप दिया है. उनके बच्चे कांवर यात्रा को हर साल आगे बढ़ा रहे हैं.
संघ के पुराने सदस्यों से पता चला है कि कांवर यात्रा का संकल्प नई पीढ़ी को उसी तरह हस्तांतरित किया जाता है जिस तरह छठ महाव्रत करने की परंपरा को नई पीढ़ी को सौंपा जाता है या कोई अन्य व्रत-त्यौहर को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उत्तराधिकारियों को दी जाती है.
संघ के सभी सदस्य गेरूवा वस्त्र धारण करते हैं. महिलाएं भी एक ही रंग का वस्त्र पहनतीं हैं. सुल्तानगंज से देवघर की 108 किलोमीटर की यात्रा को सभी सदस्य सेवा भाव के साथ एक दूसरे का सहयोग करते हुए पूरा करते हैं. कांवरियों का जत्था आगे-आगे चलता है और बस पीछे-पीछे. बस में खाने-पीने से लेकर आराम करने तक की सारी सुविधाएं उपलब्ध रहती है. सुल्तानगंज से देवघर की यात्रा पूरी करने में लगभग चार दिन का समय लगता है.
देवघर में बाबा को जलार्पण करने और आसपास के अन्य देवस्थलों में पूजा-अर्चना के बाद संघ के सदस्य किसी अन्य प्रमुख धर्मस्थल या शक्तिपीठ की यात्रा करते हुए जमशेदपुर-आदित्यपुर लौटते हैं.
इस साल की खास बात यह है कि इस कांवर यात्रा में उत्तर प्रदेश, ओडिशा और झारखंड के अन्य शहरों से भी लोग कांवर यात्रा में शामिल होने के लिए आए हैं.
बस के प्रस्थान करने के पूर्व इन भक्तों के चेहरे की चमक बता रही थी कि वे अपने माता-पिता व अन्य बुजुर्गों की परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए आज के आधुनिक युग में भी अपनी मिट्टी, अपने संस्कारों और अपने धर्म से जुड़े हुए हैं.