नई दिल्ली: प्रयागराज में हर साल होने वाला माघ मेला बेहद मशहूर है. इस मेले में हिस्सा लेने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं. हर साल बड़ी तादाद में लोग यहां एक महीने के कल्पवास में रहने के लिए आते हैं. कल्पवास पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक यानी पौष माह के 11वें दिन से शुरू होकर माघ माह के 12वें दिन तक चलता है.
कल्पवास करने वाले लोग यानी कि कल्पवासी एक महीने तक सख्त नियमों का पालन करते हैं. जैसे भीषण सर्दी में उठकर ब्रह्म मुहूर्त में नहाना,जमीन पर सोना, सादा भोजन ग्रहण करने जैसे कई नियम इसमें शामिल हैं.जो भी एक बार कल्पवास का संकल्प लेता है उसे यह कम से कम 12 वर्षों तक जारी रखना होता है. मान्यता है कि कल्पवास करने से से एक कल्प (ब्रह्मा का एक दिन) का पुण्य प्राप्त होता है.
कल्पवासी करते हैं दान
प्रयागराज के संगम पर कल्पवास कर रहे लोग यहां से विदा लेने से पहले तीर्थ पुरोहितों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करते हैं. मान्यता है कि कल्पवासी यहां जितना दान करता है उसे परलोक में उतना ही ज्यादा सुख मिलता है. सम्राट हर्षवर्धन तो इस दान क्षेत्र में आकर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर जाते थे. तभी से दान की यह परंपरा चली आ रही है.
दान में स्कूटी, लेपटॉप और फ्रिज
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल माघ मेले में आए श्रद्धालु तीर्थ पुरोहितों को दान में स्मार्टफोन, स्कूटी, लेपटॉप, एलईडी टी.वी., फ्रिज जैसी दान कर रहे हैं. इन श्रद्धालुओं में देश के अलावा विदेशों से आए लोग भी शामिल हैं. ये दान शैया दान के तहत दिए जाते हैं. इसके पीछे श्रद्धालुओं का मानना है कि रोजमर्रा की चीजें दान में देने से पुरोहितों को भी लाभ होता है क्योंकि वे इनका उपयोग अच्छे से कर पाते हैं.
यहां के पुरोहित बताते हैं कि समय के साथ दान परंपरा में बड़ा बदलाव आ रहा है. पहले के समय में अमीर लोग हाथी, घोड़ा दान में देते थे, वहीं अब श्रद्धालु अपनी सामर्थ्य के अनुसार दैनिक उपयोग की चीजें दान कर रहे हैं. कई बार कल्पवासी तीर्थ पुरोहितों से उनकी जरूरत की चीजों के बारे में पूछ भी लेते हैं. ताकि वे उनकी जरूरत के मुताबिक वह चीज दान कर सकें.