चंद्रदेव सिंह राकेश
करीब तीन दशक पहले जमशेदपुर के काशीडीह में काशीराम जी बाधान (अब दिवंगत) से हुई पहली मुलाकात में ही ऐसा अपनापन जगा कि पता ही नहीं चला कि उनसे कब व कैसे परिवार के सदस्य जैसा संबंध बन गया. इस लंबे कालखंड में हमें बाधान जी के साथ-साथ उनकी धर्मपत्नी रत्नी देवी बाधान से काफी प्रभावित किया. सादगी भरे व्यक्तित्व की धनी रत्नी देवी जी के मन का सेवा भाव हमेशा प्रेरित करता था. वो थीं तो पूरी तरह से हाउस वाइफ लेकिन समाज में किसी की मदद को लेकर वे हमेशा सक्रिय रहा करती थीं. दूसरो को मदद करने से उन्हें आंतरिक खुशी होती थी. शायद यही कारण रहता था कि वो बिना बताए हमेशा इस तरह से किसी न किसी की मदद किया करती थीं. काशीराम जी के परलोक गमन के बाद उनका यह सेवाभाव और विस्तार पा गया था. धार्मिक गतिविधियों के साथ साथ लोगों की मदद उनका दिनचर्या का अंग बन गया था.
यही कारण रहा कि जब रत्नी देवी बाधान के निधन की सूचना मिली तो स्तब्ध रह गया. मन ही मन कहा- हे ईश्वर, ये क्या किया? यदि कुछ साल रत्नी देवी जी नश्वर शरीर के साथ हम लोगों के बीच रह ही जातीं तो स्वर्गलोक मे कौन सी बात बिगड़ जाती.
लेकिन जीवन व मरण पर किसी का कोई वश तो चल नहीं सकता. इसलिए इसे नियति का अंग मानकर मन को काबू में रखा. पर जब भुइंयाडीह श्मशानघाट पर उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचा तो उनसे जुड़ी कई स्मृतियां जेहन में आ गयीं, उनके कई रूप आंखों के सामने थे.उनका व्यक्तित्व काफ़ी सादगी भरा रहा, उनके पास कोई छोटा से छोटा काम करने वाला आदमी उनसे काफ़ी आत्मीयता रखता था. वास्तव में वे एक अच्छी हाउस वाइफ होने के साथ साथ हमेशा सबको समाज के प्रति कुछ देने के लिए प्रेरित किया. वे हर किसी से हमेशा अपनत्व का भाव रखती थीं.
काशीराम जी के सौजन्य से उनके भीतर आई विद्वता भी दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखती थी. वे वेद पुराणों की मर्मज्ञ थी. साथ ही सात्विक विचारधारा की पोषक, धर्मपरायण व आजीवन ईष्वरीय सत्ता में विश्वास रखने वाली महिला थीं.
बर्निंग घाट में जिस भारी संख्या में लोग उन्हेंअंतिम विदाई देने पहुंचे थे. इससे पता चल रहा था कि उन्होंने कितना सम्मान बटोरा था. ऐसे ही कई लोगों ने उनके व्यक्तित्व के बारे में चर्चा की. जैसे वे बहुत ही विवेकशील विद्वान थीं. उन्हें धार्मिक कार्यो में बड़ी रुचि रहती थी. उनको रामचरितमानस की चौपाइयाँ मौखिक रूप से याद रहती थीं तथा वेद पुराणों का श्रवण भी उनकी आदत में शामिल था, अपने जीवन मे वह गरीबों पर सदैव रहमदिली रहीं. इतना ही नहीं परिवार संचालन का भी गुण उनमें समाहित था.
खुशी व संतोष की बात यह है कि काशीराम जी ने जिन संस्कारों को आत्मसात किया था, उन्हें रत्नी देवी जी ने बखूबी परिवार में रोपा. बच्चों को संस्कारित किया. सीख दी कि गरीबी में न हौसला टूटने दो और न ही अमीरी में इतराने का भाव दिखाओं. हमेशा ईश्वर में पूरा विश्वास रखते हुए अपने दातिय्वों का निर्वहन करो. सच्चे मन व पवित्र भाव से किया गया काम हमेशा उम्मीद से ज्यादा प्रतिफल देता है. वास्तव में भले ही उनका नश्वर शरीर अब हमारे बीच नहीं है लेकिन अपनी धार्मिक आस्था, सेवाभाव व संस्कारों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए वे हमेशा दिलों में रहेंगी.
ऐसी महान आत्मा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम व विनम्र श्रद्धांजलि
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