द्विजेन्द्र षाडंगी उर्फ कुनू बाबू : आपने भी काम किया बुद्धि से जीवन जिया शुद्धि से, झारखंड को हमेशा आप पर रहेगा गर्व

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चंद्रदेव सिंह राकेश

अंग्रेजी नव वर्ष 2022 का आज अंतिम दिन है. 31 दिसंबर को एक बड़ी सीख आप सभी से साझा करने जा रहा जिसे एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने माताजी हीराबेन मोदी के निधन के बाद सार्वजनिक किया था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनकी मां यही सीख देकर गई है कि काम करो बुद्धि से जीवन जियो शुद्धि से.

30 दिसंबर को सुबह में टेलीविजन पर प्रधानमंत्री की माताजी से जुड़ी तमाम तस्वीरों को देखा उनके अंतिम संस्कार के टीवी कवरेज पर गौर किया प्रधानमंत्री की भाव भंगिमा देखी उनका आचार व्यवहार देखा और उन्होंने जो आचरण दिखाया उससे अभिभूत भी हुआ.

इसके कुछ देर बाद झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा इलाके में अपने पुराने घनिष्ठ मित्र,  जनता के सच्चे हमदर्द, समाजसेवी , राजनेता अधिवक्ता और हर दिल अजीज रहे द्विजेन्द्र षाडंगी उर्फ कुनू बाबू  के श्राद्ध कर्म में सम्मिलित हुआ.उनके पैतृक गांव बहरागोड़ा के गंडानाटा में इसका आयोजन किया गया था.

कार्यक्रम में जिस बड़े पैमाने पर लोगों का हुजूम उमड़ा था उसे साफ पता चलता था कूनू बाबू ने जीवन में क्या कमाया है. इस हुजूम में आम भ थे और खास भी. समाज के हरेक तबके का प्रतिनिधित्व था। आम जनता थी .नेता बिरादरी थी,. अधिकारी वर्ग था.समाजसेवी थे. धर्म समाज के लोग थे .कारोबार और कारपोरेट जगत भी नजर आया.  चूंकि कुनू बाबू एक सफल अधिवक्ता भी रहे इसलिए इस बिरादरी की भी अनेक जानी-मानी हस्तियां उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंची थी.

सच कहा जाए तो उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था अपने भीतर कई तरह के व्यक्ति को समेटे हुए थे मेधावी तो थे ही लेकिन सेवा को लेकर उनका समर्पण काबिले तारीफ था हर काम पूरी बुद्धि और विवेक के साथ करते थे लिहाजा सही नतीजे पर आते थे आचरण और व्यवहार में सरलता इतनी थी कि कोई कभी भी उनसे मिलकर अपनी किसी भी समस्या से अवगत करा कर समाधान में मदद की. कहा जा  सकता था कर सकते हैं कि उन्होंने आजीवन शुद्धि का ख्याल रखा और बुद्धि से काम करते रहे.

वे एक राजनीतिक परिवार से आते थे. झारखंड के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ दिनेश कुमार षाड़ंगी के उनके बड़े भाई और पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी के भतीजा है.

बहरागोड़ा के गंडानाटा में जन्म

द्विजेन कुमार षाड़ंगी का जन्म पैतृक गांव गंडानाटा में 11 नवंबर 1951 में हुआ था. उन्होंने गंडानाटा एसएस हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की और ओडिशा के बारिपदा के एमपीसी कॉलेज से बीए पास किया. बीए के बाद कटक स्थित मधुसूदन राव कॉलेज से एलएलबी ( उत्कल यूनिवर्सिटी ) किया.सीपीएम नेता विमान बोस उनके सहपाठी थे.

लॉ कॉलेज से राजनीति में प्रवेश

उन्होंने लॉ कॉलेज के छात्र एवं युवा नेता के रूप में ओडिशा की राजनीति में प्रवेश किया. ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के वे चहते युवा नेता रहे. बाद में मंत्री विजय महापात्र, श्रीकांत जेना,नलिनी महंती, चित्त महंती के साथ उत्कल कांग्रेस के युवा संगठन का नेतृत्व किया. तब बीजू पटनायक चाहते थे कि षाड़ंगी उनके साथ ओडिशा की राजनीति में सक्रिय रहें लेकिन अपने गृह राज्य से गहरा और भावनात्मक जुड़ाव होने के कारण उन्होंने बहरागोड़ा का रुख किया. तब झारखंड नहीं बना था और बहरागोड़ा  भी बिहार का अंग था.

लौटे गांव,  कांग्रे से शुरू की सियासत

एलएलबी करने के बाद वे अपने पैतृक गांव गंडानाटा लौटे और युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने. सरदार बलदेव सिंह, सुरेश खेतान, विश्वनाथ रथ, मनमथ दास के साथ जिला युवा कांग्रेस का नेतृत्व किया. इमरजेंसी में वे जेपी आंदोलन के आंदोलनकारियों की ढाल बने. फिर वे रवि राय, किशन पटनायक , दिनेश दास गुप्ता, युधिष्ठिर दास , राजा राम सिंह के सम्पर्क में आये. 1972 से 1980 तक वे अविभाजित सिंहभूम के युवा जनता पार्टी के महामंत्री के रूप में अध्यक्ष मेवा लाल होनहारा के साथ दायित्व निभाया.

1980 के विधानसभा चुनाव में आजमाई किस्मत

1980 के विधान सभा चुनाव मे एनई होरो की नेतृत्व वाली झारखंड पार्टी के नागाड़ा छाप पर बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र में विधान सभा चुनाव लड़ा और 18000 से अधिक मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे. 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से जुड़े और संगठन का दायित्व निभाया. 1998 में एन गोविंदाचार्य के समक्ष अपने बड़े भाई डॉ दिनेश कुमार षाड़ंगी के साथ भाजपा की पूर्वी सिंहभूम जिला कमेटी में शामिल हुए थे. सन् 2000 से लेकर 2019 के आम चुनाव तक बहरागोड़ा विधानसभा में मुख्य भूमिका निभाई. वे चाकुलिया कृषि उत्पादन बाजार समिती के पांच बार उपाध्यक्ष रहे.

अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में निभाई अहम भूमिका

वनवासी पंचायत के साथ जुड़ कर झारखंड अलग राज्य आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई. क्षेत्र की जनजातिय लोगों से उन्हें गहरा प्रेम था. ओडिया, बांग्ला, हिन्दी, अंग्रेजी, संथाली और मुंडारी भाषा के वे धारा प्रवाह वक्ता थे. उन्हें बहरागोड़ा की राजनीति का चाणक्य कहा जाता था. उनकी रणनीति में ही उनके बड़े भाई डॉ दिनेश षाड़ंगी वर्ष 2000 और 2004 में तथा भतीजा कुणाल षाड़ंगी 2014 के विधानसभा चुनाव में बहरागोड़ा विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए. 

मुंबई में ली अंतिम सांस

72 वर्ष की उम्र में कुनू बाबू ने मुंबई स्थित अपने पुत्र के आवास में अंतिम सांस ली. उनके निधन पर गहरा शोक जताते हुए उनके बड़े भाई पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ दिनेश कुमार षाड़ंगी ने कहा कि मेरा लक्ष्मण भाई चला गया और मेरा दाहिना हाथ ही कट गया.

अंतिम संस्कार व श्राद्ध क्रम में दिखी लोकप्रियता

अति सहज, सरल और सामाजिक कुनू बाबू को उनके पैतृक गांव बहरागोड़ा के गंडानाटा में अंतिम विदाई देने जन सैलाब उमड़ा था.  सभी ने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी थी. विशाल शव यात्रा निकली. ग्रामीण क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता का ही असर था कि उनका अंतिम दर्शन करने के लिए गांव के लोग सड़क पर उतर आए. 30 दिसंबर को उनके पैतृक गांव में उनका श्राद्ध कर्म हुआ. उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित करने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ा. इस दृश्य देखकर स्पष्ट रुप से प्रमाणित हुआ

यदि कोई आदमी बुद्धि से काम लेते हुए सही अर्थों में जनसेवा का कार्य करता है और अपने आचरण को शुद्ध रखता है तो नश्वर शरीर त्यागने पर भी उसे उसी तरह आदर और स्नेह मिलता है जैसा कुनू बाबू को मिला.

कुनू बाबू के साथ-साथ हीराबेन को भी मेरा शत-शत नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि

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