बसंत भाई वखारिया : जुबिली पार्क हमेशा मिस करेगा अपने प्रकृति प्रेमी यार को

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धर्मेद्र कुमार

हाल ही पुणे जाना हुआ. चिकित्सकीय यात्रा थी. डॉक्टर से बातचीत के दौरान प्राकृतिक तरीके से जिंदगी को गुजारने की सलाह मिली. तब पता नहीं क्यों अपने बसंत भाई बहुत याद आ रहे थे. प्रकृति के करीब रहने और इससे होने वाले फायदों को लेकर अनुभव साझा करते थे और बार-बार हिदायत भी देने से नहीं चुकते थे कि प्रकृति ने जो मापदंड निर्धारित किए हैं उनकी अवहेलना भारी पड़ सकती है. पुणे की डॉक्टर की सलाह भी अपने बसंत भाई यानि गुरुजी की सीख को रेखांकित कर रही थी.

सपने में भी नहीं सोचा था कि अपने बसंत भाई, जिन्हें हर दिन जमशेदपुर के जुबिली पार्क में सुबह की सैर करने वाले लोग उन्हें प्यार और आदर से गुरुजी कहा करते थे, की सीख को उन्हें श्रद्घांजलि देने के क्रम में सबके साथ साझा करना पड़ेगा.
जमशेदपुर के एक कुलीन कारोबारी गुजराती परिवार से ताल्लुक रखने वाले बसंत राय त्रिभुवन दास वखारिया सही मायनों में यारों के यार थे. वे वास्तविक जीवन के सरल सुखों को सच्चे दिल से महत्वपूर्ण मानते थे। चाहे वह परिवार के साथ नये स्थानों पर जाने की बात हो अथवा विभिन्न रेस्तरां में परिवार और दोस्तों के साथ विभिन्न भोजनों का आनंद लेने का क्षण हो, वे हमेशा आनंद के साथ हर पल को जीते थे.

खुद को खुश रखते थे और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करते थे. उनके चेहरे पर हमेशा रहने वाली आनंदमय मुस्कान उनकी वास्तविक दयालुता को प्रदर्शित करती थी. उनके निजी जीवन में यह भाव हमेशा दृष्टिïगोचर होता था.
बसंत भाई जब आपके जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं की चर्चा आपकी तरह ही जमशेदपुर के प्रमुख कारोबारी पाल बाबू करने लगे तब इस बात का अहसास हुआ कि आपके होने का मतलब हमारे जैसे दोस्तों, शुभचिंतकों और समाज के लोगों के लिए कितना अहम था. वैसे इसका अहसास हमें तब भी हुआ था जब जमशेदपुर के ही समाजसेवी सुभाष मूनका के साथ आपके घर पर गया था.

माला पहने दीवार पर टंगी मोहनी मुस्कान वाली आपकी तस्वीर जीवन की हकीकत भी बयां कर रही थी और बहुत कुछ जानने, समझने और सोचने का अवसर भी दे रही थी. हमेें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस बसंत भाई को हमलोगों ने जुबिली पार्क में हंसते मुस्कुराते और पेड़ पौधों के पत्तों के सेवन से सेहत सुधारने का गुर सीख रहे थे वे भला अचानक उस अनंत यात्रा पर कैसे चले जायेंगे जहां से कोई वापस लौट के नहीं आता. जीवन जीने की उनकी अपनी पद्घति का ही यह तकाजा था कि चलते-फिरते और सबसे बोलते-बतियाते उन्होंने इस लोक का त्यागकर परलोक गमन कर लिया.

बसंत भाई ने नई चीजों को जानने-समझने और नये स्थानों को घूमने-फिरने का बड़ा शौक था. इसी शौक का प्रतिफल रहा कि उन्होंने दो-तीन बार अमेरिका की यात्रा की. कई दूसरे देशों में भी गये और अनगिनत स्थानों का भ्रमण किया.

विभिन्न स्थानों की यात्राओं से उनका जीवन विविध अनुभवों से समृद्घ हुआ. वे खाने के भी शौकीन थे और दोस्तो व यारों को खिलाना भी उन्हें बहुत पसंद था.

विशेष रूप से, उन्हें मैक्सिकन, इटैलियन, अमेरिकन और भारतीय खाना का उन्हें काफी शौक था. लेकिन इसके बावजूद भी वे भारतीय जीवन मूल्यों और प्रकृति आधारित जीवन प्रणाली के पक्के पैरोकार थे.

वसंत भाई को कम्प्यूटर गतिविधियों में रुचि थी. वे रेकी और एक्यूप्रेशर के उपचार के माध्यम से भी सकारात्मकता फैलाने में रुचि रखते थे. उन्हें सुबह और शाम की सैर करना बेहद पसंद था. सैर के क्षणों का वे वे शांति के साथ आनंद लेते थे. उनकी इसी अदा से हर कोई उन्हें दिल से चाहता था और रश्क भी करता था.

आप बहुत याद आओगे बसंत भाई. कम से कम सुबह में तो निश्चित रूप से जुबिली पार्क और हम जैसे मॉर्निंग वॉकर्स आपको याद करेंगे. बेशक अपने नश्वर शरीर के रूप में आप हमारे बीच नहीं हैं लेकिन स्मृतियों में हमेशा बने रहेंगे.
आपको कोटि-कोटि नमन व विनम्र श्रद्घांजलि.

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